नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को क्यों मारा | Nathuram Godse ne Gandhi ji ko Kyon Mara

Nathuram Godse ne Gandhi ji ko Kyon Mara
Nathuram Godse ne Gandhi ji ko Kyon Mara

नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को क्यों मारा (Nathuram Godse ne Gandhi ji ko Kyon Mara), अदालत में नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान, महात्मा गांधी पर आरोप, क्या था 55 करोड़ का मामला?

देश की आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का निधन 30 जनवरी 1948 को हो गया था। दिल्ली में प्रार्थना सभा से पहले नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उन्हें बुरी तरह से घायल कर दिया था, जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई। हर साल उनकी पुण्य तिथि को देशभर में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी ने अपनी उच्च शिक्षा इंग्लैंड में प्राप्त की। देश में हो रहे अत्याचारों को देखकर उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को ‘सत्य और अहिंसा’ का परिचय दिया। आज भी पूरी दुनिया में उनके आदर्शों का पालन किया जाता है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाने में विशेष योगदान दिया। उन्होंने पिता की तरह देश के नागरिकों को सही रास्ते पर चलने और ब्रिटिश गुलामी के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। अहिंसा और सत्य का मार्ग दिखाया। उन्होंने भारत को आजाद कराने के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, लेकिन सबसे खास बात यह थी कि तमाम जुल्मों के बीच भी उन्होंने अहिंसा का रास्ता कभी नहीं छोड़ा।

गांधीजी के आंदोलनों में दांडी मार्च, सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन सबसे प्रसिद्ध थे। ब्रिटिश शासकों द्वारा उन्हें कई बार जेल भेजा गया, उस दौरान गांधीजी ने ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों पर हो रहे अत्याचार के कारण अनिश्चितकालीन अनशन किया और बिना कुछ कहे ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दीं।

Nathuram Godse ne Gandhi ji ko Kyon Mara | नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को क्यों मारा

30 जनवरी 1948 की शाम को दिल्ली के बिड़ला भवन में हमेशा की तरह प्रार्थना का समय तय किया गया। उस दिन शाम पांच बजे सरदार पटेल गांधीजी से मिलने आये थे। कुछ देर तक दोनों के बीच बातचीत चलती रही और महात्मा को समय का पता नहीं चला। प्रार्थना सभा में पहुंचने में कुछ देर हो गयी। गांधीजी अपने भतीजियों का हाथ पकड़कर 5.15 बजे प्रार्थना सभा में पहुंचे।

लोगों में शोर मच गया, ‘बापू आ गए’। तभी खाकी बुश जैकेट और नीली पैंट पहने एक व्यक्ति आया और बापू के पैर छूने लगा। मनुबेन ने उस आदमी से कहा, ‘बापू पहले ही 10 मिनट लेट हो चुके हैं, उन्हें क्यों शर्मिंदा करते हो’।

यह शख्स नाथूराम गोडसे था। मनु बेन ने अपनी किताब ‘लास्ट ग्लिम्पसेस ऑफ गांधी’ में लिखा है, जैसे ही गोडसे ने उन्हें जोर से धक्का दिया, उनके हाथ की सारी चीजें जमीन पर गिर गईं। जैसे ही मनुबेन सामान उठाने के लिए नीचे झुकीं, उन्हें पीछे से गोली चलने की आवाज आई। जब उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो गांधी नीचे गिरे पड़े थे। उन्हें अंदर ले जाया गया लेकिन उस दिन कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। उनका बहुत खून बह गया था और कुछ ही मिनटों में उन्होंने प्राण त्याग दिए।

बाहर नाथूराम हाथ उठाकर पुलिस-पुलिस चिल्ला रहे थे। इस मामले में अलग-अलग सूत्र अलग-अलग कहानियां बताते हैं। 31 जनवरी, 1948 की न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, हर्बर्ट रेनर नाम के एक अमेरिकी व्यक्ति ने नाथूराम को पकड़ लिया और उसकी पिस्तौल छीन ली। मौके पर मौजूद कुछ लोगों ने बाद में कहा कि गोडसे ने भागने की कोशिश नहीं की और आत्मसमर्पण कर दिया। गोडसे को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी पिस्तौल छीन ली गयी।

शुरुआती जांच के बाद पुलिस ने नाथूराम गोडसे, उनके भाई गोपाल गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, दत्तात्रय परचुरे और विनायक सावरकर इन 8 लोगों को आरोपी बनाया। इस केस की सुनवाई लाल किले में बनी ट्रायल कोर्ट में शुरू हुई, जिसका फैसला 10 फरवरी 1949 को दिया गया।

जज आत्माचरण ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा सुनाई। सावरकर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया, बाद में दत्तात्रेय परचुरे और शंकर किस्तैया को संदेह के लाभ से बरी कर दिया गया। बाकी 3 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। दोषियों ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब हाई कोर्ट में अपील की।

उस समय पंजाब का उच्च न्यायालय शिमला के मिंटो कोर्ट में था। मामले की अंतिम सुनवाई 1904 में बनी इसी भवन में हुई। गोडसे ने वकील की सेवा लेने से इनकार कर दिया और खुद ही अपनी पैरवी की। उनका उद्देश्य खुद को निडर और हिंदू विचारधारा के नायक के रूप में पेश करना था। उसे कोई पछतावा नहीं था। दूसरे आरोपियों के लिए अलग-अलग वकील केस लड़ रहे थे।

आपने गांधी जी की हत्या क्यों की?

गिरफ़्तारी के बाद गांधीजी के छोटे बेटे देवदास नाथूराम से मिलने आये। नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक ‘गांधी मर्डर एंड आफ्टर’ में इस घटना का विस्तार से वर्णन किया है। देवदास को नाथूराम के बारे में कुछ भी पता नहीं था, उन्होंने सोचा कि वह कोई पागल आदमी होगा जो गांधी को गोली मार देगा। लेकिन जब जेल में उनकी मुलाकात गोडसे से हुई तो गोडसे ने उन्हें पहचान लिया और कहा, ”मुझे लगता है कि आप देवदास गांधी हैं।”

तब देवदास ने नाथूराम से पूछा, आपने उनकी हत्या क्यों की? जिस पर नाथूराम ने जवाब दिया, “मेरी वजह से आपने अपने पिता को खो दिया है। आपको और आपके परिवार को जो दुःख हुआ है, उसके लिए मुझे खेद है। लेकिन गांधीजी की हत्या का मेरा कोई निजी मकसद नहीं था, बल्कि यह राजनीतिक था। अगर मुझे पौन घंटे का वक्त मिले तो मैं आपको बताऊंगा कि मैंने गांधीजी को क्यों मारा।”

उस दिन नाथूराम गोडसे को इसके लिए समय नहीं दिया गया, लेकिन जब उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई गई तो उन्होंने अपने 6 घंटे के बयान में गांधीजी की हत्या के पीछे का कारण विस्तार से बताया। यह 93 पेज का बयान था जिसे 8 नवंबर 1949 को कोर्ट में पढ़ा गया था।

नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान
नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान

अदालत में नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान:

इसमें नाथूराम ने इन पहलुओं का जिक्र किया है-

पहली बात, वे गांधीजी का सम्मान करते थे। उन्होंने कहा था, ”वीर सावरकर और गांधीजी ने जो कुछ भी लिखा या कहा, उसे मैंने गंभीरता से पढ़ा है। मेरी राय में, इन दोनों ने पिछले तीस सालों के दौरान किसी भी अन्य की तुलना में भारतीय लोगों की सोच और कार्यों को सबसे अधिक प्रभावित किया है।”

दूसरी बात, नाथूराम ने कहा, “इन्हें पढ़ने और सोचने के बाद, मुझे विश्वास हो गया है कि मेरी पहली जिम्मेदारी हिंदुत्व और हिंदुओं के प्रति है, एक देशभक्त और वैश्विक नागरिक के रूप में मैं 30 करोड़ हिंदुओं की स्वतंत्रता और हितों की रक्षा करना अपने आप पूरे भारत की रक्षा होगी, जहां दुनिया का हर पांचवां व्यक्ति रहता है। यही सोच मुझे हिंदू संगठन की विचारधारा और कार्यक्रम के करीब ले आई। मेरी राय में, यह विचारधारा भारत को आज़ादी की ओर ले जा सकती है और उसे कायम भी रख सकती है।”

इस परिप्रेक्ष्य के बाद नाथूराम ने गांधीजी के बारे में सोचा। “32 वर्षों तक विचारों को प्रेरित करने वाले गांधी ने जब मुसलमानों के पक्ष में अपना आखिरी उपवास रखा, तो मैंने निष्कर्ष निकाला कि गांधी जी का अस्तित्व तुरंत खत्म करना होगा। गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के अधिकारों के लिए बहुत शानदार काम किया था, लेकिन जब वे भारत आये तो उनकी मानसिकता ऐसी हो गयी कि वे स्वयं को ही अंतिम निर्णायक मानने लगे कि क्या सही है और क्या गलत।

यदि देश उनका नेतृत्व चाहता था तो यह उनकी अजेयता को स्वीकार करने जैसा था। यदि देश ने उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं किया होता तो वे कांग्रेस से अलग राह पर चल पड़ते।”

इसी विचारधारा ने नाथूराम को गांधी की हत्या के लिए प्रेरित किया। नाथूराम ने यह भी कहा, “इस सोच के साथ दो रास्ते नहीं हो सकते। या तो कांग्रेस को गांधी के लिए अपना रास्ता छोड़ना होगा और गांधी की सभी विलक्षणताओं, विचारों, दर्शन और दृष्टिकोण को स्वीकार करना होगा या फिर गांधी के बिना ही आगे बढ़ना होगा।”

तीसरा आरोप यह था कि गांधीजी ने पाकिस्तान के निर्माण में मदद की। नाथूराम ने कहा, “जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने गांधी की सहमति से देश को विभाजित करने का फैसला किया, जिस देश की हम पूजा करते हैं, तो मुझे बहुत गुस्सा आया। मेरे मन में किसी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि मैं वर्तमान सरकार का सम्मान नहीं करता क्योंकि उनकी नीतियां मुसलमानों के पक्ष में थीं। लेकिन साथ ही, मैं देखता हूं कि ये नीतियां केवल गांधी की उपस्थिति के कारण थीं।

महात्मा गांधी पर आरोप

गोडसे का मानना ​​था कि देश के विभाजन के लिए गांधी जिम्मेदार थे। गोडसे को लगता था कि गांधीजी ने दोनों तरफ अपनी अच्छी छवि बनाने के लिए देश का बंटवारा कर दिया।

गोडसे का यह भी मानना ​​था कि तत्कालीन सरकार गलत तरीके से मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रही थी और यह सब गांधीजी की नीतियों के कारण था।

गोडसे को जब पता चला कि कश्मीर समस्या के बावजूद जिन्ना ने गांधीजी की पाकिस्तान यात्रा को सहमति दे दी है तो वह बहुत तनाव में आ गये। उन्हें लगा कि यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि गांधीजी मुसलमानों के प्रति बहुत दयालु थे और उन्हें हिंदुओं की भावनाओं की परवाह नहीं थी।

315 पेज के फैसले में गोडसे और आप्टे की मौत की सजा को बरकरार रखा गया और 15 नवंबर, 1949 को फांसी की तारीख तय की गई। गोडसे के परिवार ने तत्कालीन गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी के पास दया याचिका भी दायर की थी। कहा जाता है कि गोडसे को दया याचिका के बारे में जानकारी नहीं थी।

5 नवंबर 1949 को गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी के सामने दया याचिका आई और 7 नवंबर को उन्होंने उसे खारिज कर दिया। 15 नवंबर 1949 को गोडसे और आप्टे को अंबाला जेल में फाँसी दे दी गई। 12 अक्टूबर 1964 को गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे और मदनलाल पाहवा को आजीवन कारावास की सजा काटने के बाद रिहा कर दिया गया।

एक तर्क यह भी दिया जाता है कि कांग्रेस सदस्यों ने आश्वासन के बावजूद पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये नहीं देने का फैसला किया था। गांधीजी चाहते थे कि कांग्रेस इस निर्णय को वापस ले। उन्होंने इसके लिए आमरण अनशन की भी धमकी दी थी। गोडसे को लगा कि गांधीजी मुसलमानों के लिए ऐसा कर रहे हैं।

हत्या का समर्थन करने वालों का दावा है कि महात्मा गांधी ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिए भूख हड़ताल की थी।

क्या था 55 करोड़ का मामला?

Godse ne Gandhi ko Kyon Mara

दरअसल बंटवारे के वक्त देश की संपत्ति का भी बंटवारा हो गया था। जानवरों से लेकर अनाज, लाइब्रेरी की किताबों से लेकर बैंकों में पड़े पैसे तक सबका बंटवारा हुआ।

अशोक कुमार पांडे ने अपनी पुस्तक “Why They Killed Gandhi” में बताया है कि उस समय भारतीय रिजर्व बैंक के पास 400 करोड़ रुपये थे, जिसमें से 75 करोड़ रुपये पाकिस्तान के हिस्से में आए। तो कई लोगों का तर्क था कि उस समय आरबीआई के पास 155 करोड़ रुपये थे, जिसमें से 75 करोड़ रुपये पाकिस्तान को देने का फैसला किया गया था।

यह भी निर्णय लिया गया कि भारतीय रिज़र्व बैंक अक्टूबर 1948 तक दोनों देशों के राष्ट्रीय बैंक के रूप में काम करेगा और इसे चलाने के लिए 6 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। समिति में पाकिस्तान से गुलाम मोहम्मद, जाहिद हुसैन और कुरेशी थे, जबकि भारत से के.जी. अंबेगांवकर, संजीव रो और एम.वी. रंगाचारी शामिल थे।

पाकिस्तान के हिस्से के 75 करोड़ रुपये में से 20 करोड़ रुपये विभाजन के समय दिए गए और बाकी 55 करोड़ रुपये पाकिस्तान की जरूरत के मुताबिक धीरे-धीरे दिए जाने थे।

इसी बीच पाकिस्तान की सेना ने कबायली भेष में कश्मीर पर हमला कर दिया, जिससे भारत और पाकिस्तान के रिश्ते ख़राब हो गये। तनावपूर्ण संबंधों का असर रिजर्व बैंक तक पहुंचा। 7 जनवरी, 1948 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि ये 55 करोड़ रुपये पाकिस्तान को नहीं दिये जायेंगे।

याद रखने वाली बात यह भी है कि इससे पहले आरबीआई गवर्नर सी.डी. देशमुख ने भारत सरकार को सुझाव दिया था कि पैसा एक साथ देने के बजाय 3-3 करोड़ रुपये की किश्तों में दिया जाना चाहिए।

7 जनवरी को कैबिनेट ने 55 करोड़ रुपये न देने का फैसला किया और ठीक 6 दिन बाद 13 जनवरी को महात्मा गांधी दिल्ली के बिड़ला हाउस में अनशन पर बैठ गये। लोगों का तर्क है कि गांधीजी ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलाने के लिए अनशन किया था।

क्या 55 करोड़ के लिए किया था अनशन?

12 जनवरी को प्रार्थना सभा में अनशन की घोषणा की गई, लेकिन उस समय 55 करोड़ रुपये का कोई जिक्र नहीं किया गया था। उसी दिन गांधीजी ने वायसराय माउंटबेटन से भी मुलाकात की। माउंटबेटन ने कहा कि भारत सरकार का ये निर्णय राजनीतिक रूप से कमजोर और अविवेकपूर्ण है।

यह असम्मानजनक कार्रवाई का कारण बन सकता है। माउंटबेटन ने सरदार पटेल से भी यही बात कही थी, हालाँकि इस अपमानजनक शब्द से सरदार पटेल नाराज हो गये। इस बीच पाकिस्तान ने भारत को समझौते से पीछे हटने पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने की धमकी भी देनी शुरू कर दी थी।

आख़िरकार भारतीय नेताओं को भी यह एहसास होने लगा कि अगर मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चला गया तो भारत मुश्किल में पड़ जाएगा, क्योंकि भारत ने 55 करोड़ रुपये देने के लिए एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। यहां 14 जनवरी को प्रार्थना सभा में गांधीजी की चर्चा कराची से लेकर गुजरात तक भड़के दंगों पर केंद्रित थी।

अगले दिन 15 जनवरी को कैबिनेट की फिर से बैठक हुई और पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने का फैसला किया गया। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस कैबिनेट बैठक में गांधीजी मौजूद नहीं थे, बल्कि नेहरू, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी समेत सभी मंत्री मौजूद थे।

दूसरा तथ्य, अगर गांधीजी 55 करोड़ रुपये के लिए भूख हड़ताल पर बैठे होते, तो 15 जनवरी को भारत सरकार के इस फैसले के बाद वह इसे खत्म कर देते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। गांधी जी का अनशन 19 जनवरी को समाप्त हुआ। 19 जनवरी को दिल्ली में सभी धर्मों के प्रतिनिधियों ने हिंसा ख़त्म करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद गांधीजी ने अपना अनशन ख़त्म कर दिया।

इन सभी तर्कों को देखने के बाद जो स्पष्ट है वह यह है कि गांधीजी का अनशन उस समय दिल्ली में चल रही हिंसा के खिलाफ था, न कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिए।

आइंस्टीन ने कभी गोडसे की दलीलें नहीं सुनीं लेकिन गांधी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “अंत में वे अपने अहिंसा के आदर्शों के शिकार बन गए। उनकी मृत्यु हो गई क्योंकि उन्होंने अराजकता और अशांति के दौर में अपने लिए सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया था। उनका अटूट विश्वास था कि बल का प्रयोग अपने आप में एक बुराई है, इसलिए जो लोग सर्वोच्च न्याय के लिए प्रयास करते हैं उन्हें बल के प्रयोग से बचना चाहिए।”

“अपने दिल और दिमाग पर विश्वास करके, उन्होंने एक महान राष्ट्र को मुक्ति की ओर अग्रसर किया है। उन्होंने दिखाया कि राजनीतिक जोड़-तोड़ लोगों को एक साथ लाने का एकमात्र तरीका नहीं है। नैतिक रूप से अच्छे आचरण का ठोस उदाहरण प्रस्तुत करके लोग आपसे जुड़ सकते हैं। विश्व के सभी देशों में महात्मा गांधी की प्रशंसा इसी मान्यता पर आधारित है।”

गांधी जी का असली नाम क्या है?

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी है, लेकिन लोग प्यार से उन्हे बापू कहकर बुलाते हैं।

गांधी को बापू की उपाधि किसने दी?

महात्मा गांधी को “बापू” की उपाधि सुभाष चंद्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को दी थी।

महात्मा गांधी के कुल कितने बच्चे थे?

गांधी के में हरिलाल (1888), मणीलाल (1892), रामदास (1897) और देवदास (1900) पुत्र थे।

गांधी जी के गुरु का क्या नाम था?

जी. के. गोखले (गोपाल कृष्ण गोखले) को महात्मा गांधी का राजनीतिक गुरु माना जाता है।

महात्मा गांधी ने कितने आंदोलन किए थे?

1917 में चंपारण आंदोलन, 1918 में खेड़ा आंदोलन, 1919 में खिलाफत आंदोलन, 1920 में असहयोग आंदोलन, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन सभी महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा हैं।

Deepak Devrukhkar
Deepak Devrukhkar

मेरा नाम दिपक देवरुखकर हैं, और मैं मुंबई, महाराष्ट्र में रहता हूँ। मैंने Commercial Art में डिप्लोमा किया है। मैं GK, भारतीय इतिहास आदि विषयों पर ज्ञान प्रयास के लिए लिखता हूँ।

Articles: 35

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *