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क्या है एक देश एक चुनाव (One Nation One Election): जानें कैसे लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की योजना से देश में चुनावी प्रक्रिया और प्रशासनिक खर्चों में सुधार होगा, और इससे काले धन पर कैसे लगेगी लगाम।
एक देश एक चुनाव (One Nation One Election) पर विचार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में गठित समिति ने गुरुवार (14 मार्च 2024) को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। 18,626 पन्नों की यह रिपोर्ट हितधारकों और विशेषज्ञों के साथ चर्चा के बाद 191 दिनों के शोध का परिणाम है।
फिलहाल भारत में राज्यों के विधानसभा चुनाव और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। One Nation One Election का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हों। यानी, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए मतदाता एक ही दिन, एक साथ या चरणों में मतदान करेंगे।
आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। फिर 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई, जिससे एक देश एक चुनाव की परंपरा टूट गई।
पिछले साल 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में 8 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। One Nation One Election समिति की पहली बैठक 23 सितंबर 2023 को दिल्ली के जोधपुर ऑफिसर्स हॉस्टल में आयोजित की गई थी।
इसमें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद समेत 8 सदस्य थे। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को समिति के स्पेशल मेंबर बनाए गए थे।
‘एक देश एक चुनाव’ पर उच्च स्तरीय समिति को प्राप्त 21,558 सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं में से 80 प्रतिशत से अधिक (17,342) भारत में एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन करते हैं। केवल 4,216 प्रतिक्रियाओं ने इस विचार का विरोध किया।
ये प्रतिक्रियाएँ ईमेल, वेबसाइट और पोस्ट द्वारा प्राप्त हुईं। एक साथ चुनाव का मतलब एक ही समय में लोकसभा, विधानसभा, शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों के चुनाव कराना है। वर्तमान में कार्यकाल समाप्त होने पर चुनाव होते हैं। समिति ने अपनी 21-खंड और 18,626 पेज की रिपोर्ट में एक साथ चुनाव बहाल करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
त्रिशंकु संसद एक शब्द है जिसका उपयोग मुख्य रूप से वेस्टमिंस्टर प्रणाली (आमतौर पर बहुसंख्यक चुनावी प्रणालियों को नियोजित करने) के तहत विधानसभाओं में उस स्थिति का वर्णन करने के लिए किया जाता है जिसमें किसी एक राजनीतिक दल या पहले से मौजूद गठबंधन के पास संसद या अन्य विधानसभाओं में विधायकों का पूर्ण बहुमत नहीं होता है।
इस स्थिति को एक संतुलित संसद, या एक ऐसी विधायिका के रूप में भी जाना जाता है जो पूर्ण नियंत्रण (एनओसी) के अधीन नहीं है, और अल्पमत सरकार का कारण बन सकती है। इस शब्द का प्रयोग कभी-कभी सेक्स स्कैंडलों के लिए वर्डप्ले के रूप में किया जाता है।
बहुदलीय प्रणालियों में, विशेष रूप से जहां आनुपातिक प्रतिनिधित्व कार्यरत है, किसी एक पार्टी के लिए अधिकांश सीटें जीतना दुर्लभ है, और किसी एक पार्टी के लिए अपने दम पर सरकार बनाना भी उतना ही दुर्लभ होता है (यानी गठबंधन सरकार आदर्श है)। नतीजतन, “त्रिशंकु संसद” की अवधारणा इन प्रणालियों में काफी हद तक अप्रासंगिक है, क्योंकि एकदलीय बहुमत के बिना विधायिका आदर्श है।
वेस्टमिंस्टर प्रणाली में, स्पष्ट बहुमत के अभाव में, किसी भी पार्टी या गठबंधन के पास कार्यपालिका को नियंत्रित करने का स्वचालित जनादेश नहीं होता है – संसदीय प्रणालियों में, इस स्थिति को आमतौर पर “सरकार बनाना (forming government)” के रूप में जाना जाता है।
एक नई गठबंधन सरकार के गठन या पहले से मौजूद गठबंधन में पहले से असंबद्ध सदस्यों को शामिल करने से भी पूर्ण बहुमत प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा, अल्पमत सरकार के परिणामस्वरूप अधिकांश सदस्यों वाली पार्टी को पूर्ण बहुमत के बिना सरकार बनाने की अनुमति मिल सकती है यदि उसके पास अल्पसंख्यक दलों और/या स्वतंत्र विधायकों जैसे असंबद्ध सदस्यों का स्पष्ट, निरंतर समर्थन हो।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान के 5 अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा।
इसके अलावा दल-बदल के आधार पर अयोग्यता से संबंधित संविधान की दसवीं अनुसूची में भी कुछ बदलाव करने होंगे।
लोकसभा चुनाव के बाद रिपोर्ट कैबिनेट के सामने रखी जाएगी। कैबिनेट के फैसले के मुताबिक, कानून मंत्रालय संविधान में विधि आयोग द्वारा अनुशंसित नए खंड शामिल करेगा, ताकि एक साथ चुनाव कराए जा सकें।
इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाएगा और राज्य विधानसभाओं में भी प्रस्ताव पारित करने की सिफारिश की जाएगी। इसके बाद 2029 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ तीन चरणों में सुनिश्चित किए जा सकेंगे।
‘एक देश एक चुनाव’ रिपोर्ट तैयार करने से पहले कोविंद पैनल ने 7 देशों की चुनावी प्रक्रियाओं का अध्ययन किया। इनमें दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, स्वीडन, बेल्जियम, जापान, इंडोनेशिया, फिलीपींस शामिल हैं। कोविन्द पैनल के मुताबिक एक साथ चुनाव को लेकर अन्य देशों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया। इसका उद्देश्य चुनावी निष्पक्षता और पारदर्शिता के लिए सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं का अध्ययन करना और अपनाना था।
दक्षिण अफ्रीका – यहां मतदाता नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानसभाओं दोनों के लिए एक साथ मतदान करते हैं। हालाँकि, नगर निगम चुनाव प्रांतीय चुनावों से अलग होते हैं। 29 मई को, दक्षिण अफ्रीका में नई नेशनल असेंबली के साथ-साथ प्रत्येक प्रांत के लिए प्रांतीय विधानसभाओं के लिए चुनाव होंगे।
स्वीडन – यह देश आनुपातिक चुनावी प्रणाली का पालन करता है, यानी राजनीतिक दलों को उनके वोटों के आधार पर निर्वाचित विधानसभा में सीटें दी जाती हैं। उनके पास एक ऐसी प्रणाली है जहां संसद (रिक्सडैग), काउंटी और नगर परिषदों के चुनाव एक साथ होते हैं। ये चुनाव हर चार साल में सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं जबकि नगर निगम विधानसभा चुनाव हर पांच साल में सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं।
जर्मनी/जापान – समिति के सदस्य सुभाष सी कश्यप ने बुंडेस्टाग के माध्यम से चांसलर की नियुक्ति की प्रक्रिया के अलावा अविश्वास के रचनात्मक वोट के जर्मन मॉडल की वकालत की। उन्होंने जापान की प्रक्रिया का समर्थन किया। जापान में प्रधान मंत्री को पहले नेशनल डाइट द्वारा चुना जाता है और फिर सम्राट द्वारा अनुमोदित किया जाता है। उन्होंने जर्मन या जापानी मॉडल जैसे मॉडल अपनाने का सुझाव दिया।
इंडोनेशिया – यह 2019 से एक साथ चुनाव करा रहा है। यहां राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों का चुनाव एक ही दिन होता है। मतदाता गुप्त मतदान करते हैं, और अपनी उंगलियों को अमिट स्याही में डुबोते हैं ताकि दोहरे मतदान को रोका जा सके। 14 फरवरी 2024 को इंडोनेशिया में एक साथ चुनाव हुए। इसे दुनिया का सबसे बड़ा एक दिवसीय चुनाव कहा जा रहा है क्योंकि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद सदस्य, क्षेत्रीय और नगरपालिका सभी पांच स्तरों पर लगभग 200 मिलियन लोगों ने मतदान किया।
One Nation One Election पर 47 राजनीतिक दलों ने समिति को अपनी राय दी। इनमें से 32 ने पक्ष में और 15 ने विपक्ष में वोट किया। इनमें 15 राजनीतिक दलों के अलावा हाई कोर्ट के तीन सेवानिवृत्त जज और एक पूर्व राज्य चुनाव आयुक्त भी शामिल थे।
कोविन्द समिति की रिपोर्ट में इसका भी जिक्र है कि इसका विरोध किसने किया है। इनमें दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह, कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गिरीश चंद्र गुप्ता और मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी के नाम शामिल हैं। वहीं, तमिलनाडु चुनाव आयुक्त वी पलानीकुमार ने भी एक देश एक चुनाव का विरोध किया।
इनके अलावा सुप्रीम कोर्ट के सभी चार सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबडे और जस्टिस यय ललित एक साथ चुनाव के पक्ष में थे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने One Nation One Election कराने के पक्ष में अपनी राय जाहिर की है। वहीं इसका विरोध कांग्रेस और उसके सहयोगी दल DMK, NCP और TMC ने किया है। इसे BJD और AIADMK का समर्थन प्राप्त हुआ है।
इस रिपोर्ट में चुनाव आयोग, विधि आयोग और कानूनी विशेषज्ञों की राय भी शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साथ चुनाव कराना जनहित में होगा। इससे आर्थिक विकास को गति मिलेगी और महंगाई पर नियंत्रण होगा।
‘One Nation One Election’ को लागू करने के लिए कई राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल छोटा किया जाएगा। जिन राज्यों में 2023 के अंत तक विधानसभा चुनाव हुए है, वहां उनका कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर विधि आयोग के प्रस्ताव पर सभी दल सहमत हो गए तो इसे 2029 से ही लागू कर दिया जाएगा। साथ ही इसके लिए दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभाओं का कार्यकाल 6 महीने बढ़ाकर जून 2029 तक करना होगा। इसके बाद सभी राज्यों में एक साथ विधानसभा और लोकसभा चुनाव हो सकते हैं।
जुलाई 2018 में विधि आयोग ने एक साथ चुनाव कराने पर राजनीतिक दलों की बैठक बुलाई थी। सिर्फ 4 पार्टियों ने इसका समर्थन किया जबकि 9 पार्टियों ने इसका विरोध किया। इस पर बीजेपी और कांग्रेस ने अपनी कोई राय नहीं दी थी।
विरोध करने वाली पार्टियों की कई चिंताएं थीं। उन्होंने कहा कि अगर एक साथ चुनाव के कारण विधानसभा समय से पहले भंग हो जाती है और सत्तारूढ़ दल या गठबंधन चुनाव हार जाता है तो क्या होगा? पार्टियों ने यह भी कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से मतदाता स्थानीय मुद्दों के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट करेंगे।
ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां देश में एक साथ चुनाव कराने के खिलाफ हैं। दरअसल, इन पार्टियों का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से केंद्रीय मुद्दे राज्य के मुद्दों को गायब कर सकते हैं, इससे बड़ी पार्टियों को चुनाव में ज्यादा फायदा मिलेगा।
इसके ख़िलाफ़ एक और तर्क यह दिया जाता है कि, यदि पाँच साल में केवल एक बार चुनाव होंगे, तो नेता मतदाताओं से दूर हो जायेंगे। चूंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, इसलिए नेताओं को समय-समय पर मतदाताओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है और उन्हें सतर्क रहना पड़ता है।
देशव्यापी चर्चा के बावजूद 1967 के बाद एक साथ चुनाव की जो गाड़ी पटरी से उतर गई थी, वह पटरी पर नहीं आ सकी। भारत के चुनाव आयोग ने खुद महसूस किया कि एक साथ चुनाव कराने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनों की बड़े पैमाने पर खरीद की आवश्यकता होगी।
एक साथ चुनाव कराने के लिए आयोग को ईवीएम और वीवीपैट की खरीद पर आज की दर से कुल 9284.15 करोड़ रुपये की लागत आने की उम्मीद है। हर पंद्रह साल में मशीनों को बदलना भी पड़ेगा, जिस पर फिर से खर्च आएगा। इसके अलावा, इन मशीनों की भंडारण लागत भी बढ़ जाएगी।
इसके पक्ष में कहा जा रहा है One Nation One Election विधेयक के लागू होने से देश में हर साल होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली भारी धनराशि की बचत होगी। 1951-1952 के लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये का भारी भरकम खर्च हुआ था। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, इससे देश के संसाधनों की बचत होगी और विकास की गति धीमी नहीं होगी।
हाँ। एक उम्मीदवार अपना प्रचार खर्च स्वयं वहन करता है, लेकिन चुनाव कराने का पूरा खर्च सरकार द्वारा वहन किया जाता है।
अक्टूबर 1979 में विधि आयोग ने चुनावी खर्च को लेकर दिशानिर्देश जारी किये थे। इस गाइडलाइन के मुताबिक, लोकसभा चुनाव का सारा खर्च केंद्र सरकार वहन करती है। इसी तरह विधानसभा चुनाव के खर्च की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की है।अगर किसी राज्य में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव होते हैं तो केंद्र और राज्य सरकारें आधा-आधा खर्च उठाती हैं।
One Nation One Election के समर्थन के पीछे एक तर्क यह भी है कि भारत जैसे विशाल देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। इन चुनावों के आयोजन के लिए राज्य की पूरी मशीनरी और संसाधनों का उपयोग किया जाता है। हालांकि इस बिल के लागू होने से बार-बार होने वाली चुनावी तैयारियों से राहत मिलेगी। पूरे देश में चुनाव के लिए एक ही मतदाता सूची होगी, जिससे सरकार के विकास कार्यों में कोई बाधा नहीं आएगी।
एक देश एक चुनाव के पक्ष में एक तर्क यह है कि इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर चुनाव के दौरान काले धन का इस्तेमाल करने का आरोप है। लेकिन कहा जा रहा है कि इस बिल के लागू होने से काफी हद तक इस समस्या से छुटकारा मिल जाएगा।