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1971 भारत पाकिस्तान युद्ध की कहानी, The Ghazi Attack Real Story Hindi, समंदर में कैसे बनी PNS गाजी की कब्र (How PNS Ghazi was Destroyed)
पाकिस्तान को भारत से पंगा लेना हमेशा महंगा पड़ा है। जब भी उसे 1971 का युद्ध याद आता है तो उसे दिन में भी तारे नजर आने लगते हैं। उसके नापाक इरादों और रणनीतियों को भारतीय सेना ने पलक झपकते ही विफल कर दिया था, इससे पहले कि उसे कुछ पता चलता, उसके पैरों तले जमीन खिसक गई और वह सोचने लगा कि करें तो करें क्या और जाएं तो जाएं कहां…
1971 में भारतीय नौसेना ने उसकी पनडुब्बी पीएनएस गाजी (PNS Gazi) को समुद्र के अंदर दफना दिया था। भारतीय योद्धाओं को उसकी कब्र खोदने में जरा भी देर नहीं लगी।
1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद पाकिस्तान दो भागों पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान में विभाजित हो गया। अब स्थिति यह थी कि पश्चिमी पाकिस्तान संसाधनों और सरकार के मामले में बहुत समृद्ध था। दोनों हिस्सों की भाषा भी अलग-अलग थी।
राजनीतिक नेतृत्व के मामले में भी पूर्वी पाकिस्तान खुद को कटा हुआ महसूस करता था। धीरे-धीरे पूर्वी पाकिस्तान में ये नाराजगी बढ़ती गई और बाद में शेख मुजीब-उर-रहमान नाम के नेता ने ‘अवामी लीग’ नाम से पार्टी बनाई और पाकिस्तान में स्वायत्तता की मांग की।
1970 के आम चुनावों में उनकी पार्टी ने पूर्वी क्षेत्र में भारी जीत हासिल की। उनकी पार्टी के पास संसद में बहुमत था लेकिन पाकिस्तान की मौजूदा सरकार ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के बजाय जेल में डाल दिया। यह घटना और सालों का असंतोष गृह युद्ध का कारण बनी। पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ने जनरल टिक्का सिंह को वहां भेजा लेकिन उसके नेतृत्व में मामला और बिगड़ गया।
मार्च 1971 में एक भयानक नरसंहार हुआ, स्थानीय लोग सेना की क्रूरता और अत्याचार से क्रोधित हुए और उन्होंने ‘बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी’ नामक अपनी सेना बनाई। पाकिस्तान में गृह युद्ध शुरू हो गया। और अपने घर के इस लड़ाई के बिच पाकिस्तान ने भारत पर भी हमला कर दिया, जो पाकिस्तान की सबसे बड़ी गलती थी।
भारत और पाकिस्तान की इस लड़ाई में अमेरिका ने भी पाकिस्तान का साथ दिया। अमेरिका ने पाकिस्तान को कई अत्याधुनिक हथियार दिए थे, जिसमें नौसेना की अत्याधुनिक पनडुब्बी पीएनएस गाजी भी शामिल थी, जिसे भारत के एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत को तबाह करने के लिए भेजा गया था। हालाँकि, भारतीय नौसेना ने इसे विशाखापत्तनम के पास डुबो दिया।
14 से 22 नवंबर के बीच पाकिस्तान ने अपनी कई पनडुब्बियां बिना बताए भारत की ओर भेज दीं। इन पनडुब्बियों को भारत के पश्चिमी भाग में गश्ती क्षेत्रों में भेजा गया था, लेकिन आईएनएस विक्रांत की खोज के लिए पीएनएस गाजी को बंगाल की खाड़ी में भेजा गया था। आईएनएस विक्रांत पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को पश्चिमी पाकिस्तान से अलग करते हुए पूर्वी मोर्चे पर नौसैनिक नाकाबंदी कर रहा था।
8 नवंबर, 1971 को पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस गाजी का कैप्टन जफर मोहम्मद खान ने ड्राई रोड पर गोल्फ क्लब में गोल्फ खेलना शुरू ही किया था कि उसे तुरंत लियाकत बैरक स्थित नौसेना मुख्यालय पहुंचने का संदेश मिला।
वहां नेवेल वेलफ़ेयर और ऑपरेशन प्लान्स के निदेशक कैप्टन भोम्बल ने उसे बताया कि नौसेना प्रमुख ने उसे भारतीय नौसेना के Aircraft Carrier INS Vikrant को नष्ट करने की जिम्मेदारी दी है। वह एक लिफाफा उठाकर जफर को देता है और कहता है कि विक्रांत के बारे में जो भी जानकारी है वह इस लिफाफे में है।
जफर को गाजी में तैनात सभी नौसैनिकों की छुट्टियां रद्द करने और सौंपे गए काम को अगले दस दिनों के भीतर पूरा करने के लिए कहा गया था।
युद्ध के 20 साल बाद प्रकाशित किताब ‘द स्टोरी ऑफ द पाकिस्तान नेवी’ में बताया गया है कि 14 से 24 नवंबर के बीच पाकिस्तानी नौसेना ने अपनी सभी पनडुब्बियों को अपने पूर्व-निर्धारित गश्ती क्षेत्रों में जाने का आदेश दिया था। PNS गाजी को बंगाल की खाड़ी में भेजा गया जहां उसे भारतीय Aircraft Carrier INS Vikrant को खोजने और नष्ट करने की जिम्मेदारी दी गई।
इस निर्णय की रणनीतिक समझदारी पर कभी सवाल नहीं उठाया गया। PNS गाजी पाकिस्तान के पास एकमात्र ऐसी पनडुब्बी थी जो दुश्मन-नियंत्रित जल क्षेत्र में अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सक्षम थी। अगर गाजी विक्रांत को डुबाने या नुकसान पहुंचाने में सफल होती, तो उसका भारत की नौसैनिक योजनाओं को भारी नुकसान पहुंचता। संभावित सफलता का लालच इतना बड़ा था कि, कई आशंकाओं के बावजूद इस मिशन को आगे बढ़ने की मंजूरी दे दी गई थी।
कमांडर जफर और कैप्टन भोम्बल के बीच हुई इस बातचीत से एक साल पहले विक्रांत के कमांडर कैप्टन अरुण प्रकाश अपने चीफ इंजीनियर द्वारा भेजी गई एक रिपोर्ट पढ़ रहे थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि विक्रांत के बॉयलर वॉटर ड्रम में दरारें हैं जिसे भारत में रिपेयर नहीं किया जा सकता। 1965 के युद्ध में भी कुछ यांत्रिक समस्याओं के कारण विक्रांत को युद्ध में भाग लेने के योग्य नहीं समझा गया था।
इस बार भी बॉयलर में दरार के कारण विक्रांत अधिकतम 12 नॉट की गति से ही आगे बढ़ सकता था। किसी भी विमानवाहक पोत को वहां से विमान उड़ाने में सक्षम होने के लिए 20 से 25 नॉट की गति की आवश्यकता होती है।
विक्रांत का पहले नाम एचएमएस हरक्यूलिस था जिसे भारत ने 1957 में ब्रिटेन से खरीदा था। इसका निर्माण 1943 में हुआ था लेकिन इसने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग नहीं लिया था। विक्रांत तब पश्चिमी बेड़े में तैनात था, लेकिन उसकी खराब हालत को देखते हुए नौसेना मुख्यालय ने फैसला किया कि उसे पूर्वी बेड़े का हिस्सा बनाना बेहतर होगा।
इयान कार्डोज़ो ने अपनी किताब ‘1971 स्टोरीज़ ऑफ़ ग्रिट एंड ग्लोरी फ्रॉम इंडो-पाक वॉर’ में लिखा है, “नवंबर 1971 में मुंबई के एक होटल में ठहरे पाकिस्तानी जासूसों ने अपने संचालकों को सूचित किया कि Aircraft Carrier INS Vikrant मुंबई में ही खड़ा है। लेकिन 13 नवंबर को उन्हें विक्रांत कहीं नहीं दिखा, विक्रांत मुंबई से अचानक गायब हो गया था।
इस बीच, पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति रखने वाले एक पश्चिमी देश का एक सहायक नौसेना अटैशे ने पश्चिमी कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ के एडीसी से Aircraft Carrier INS Vikrant के ठिकाने के बारे में पूछने की कोशिश करता है।
इसके बारे में भारतीय नेवेल इंटेलिजेंस को तुरंत सूचित किया गया। बाद में पाकिस्तानी जासूसों को विक्रांत के मद्रास आने की खबर मिल गई। उन्हीं दिनों, पाकिस्तान का समर्थन करने वाले उसी पश्चिमी देश का एक जहाज मद्रास गया और उसमें कुछ समस्याएँ आ गईं जिसके कारण उसने मद्रास बंदरगाह के आसपास कई परीक्षण उड़ानें भरीं। क्या इन उड़ानों का उद्देश्य यह पुष्टि करना था कि विक्रांत मद्रास में है या नहीं?
8 नवंबर, 1971 को, मेजर धर्म देव दत्त, एक वायरलेस जासूस, अपने रकाल आरए 150 रेडियो रिसीवर के नॉब को घुमाकर कराची और ढाका के बीच आने वाले संदेशों को सुनने की कोशिश कर रहे थे। उस दिन संदेशों की संख्या में अचानक वृद्धि के कारण, उन्हें यह आभास हो गया था कि कुछ बड़ा होने वाला है और यह महत्वपूर्ण था कि भारत को इसके बारे में पूरी जानकारी दी जाए।
एनडीए के दौर से ही धरम को उनके सहकर्मी 3डी कहकर बुलाते थे क्योंकि आधिकारिक रिकॉर्ड में उनका नाम धर्म देव दत्त दर्ज था। उनका टेप रिकॉर्डर आईबीएम मेनफ्रेम कंप्यूटर से जुड़ा था। अचानक 10 नवंबर को वह पाकिस्तानी नौसेना का कोड तोड़ने में सफल हो गए और सारी पहेली एक पल में सुलझ गई।
उन्होंने पूर्वी कमान के स्टाफ ऑफिसर जनरल जैकब को फोन करके उन्हें कोड वर्ड बताया, जिसका मतलब था कि हम पाकिस्तानी नौसैनिक कोड को तोड़ने में सफल हो गए हैं। वहीं से पहली बार पता चला कि पाकिस्तानी नौसेना का मुख्य मकसद भारतीय Aircraft Carrier INS Vikrant को डुबाना था। उनका दूसरा उद्देश्य भारत के पश्चिमी बेड़े के जहाजों को डुबाने के लिए अपनी डाफ्ने श्रेणी की पनडुब्बियों का उपयोग करना था।
14 नवंबर 1971 को गाजी सबमरीन अपने मिशन के लिए कराची से रवाना हुई। गाजी सबसे पहले श्रीलंका गई जहां 18 नवंबर को उसने त्रिंकोमाली में ईंधन भरा। वह चेन्नई आने के लिए तैयार ही थी, तभी उसे कराची से संदेश मिला कि विक्रांत अब मद्रास में नहीं है।
चूंकि Aircraft Carrier INS Vikrant ग़ायब हो जाता है, जफर कराची को संदेश भेजता है कि उसके लिए अगला ऑर्डर क्या है? कराची ने पाकिस्तान के पूर्वी बेड़े के कमांडर रियर एडमिरल मोहम्मद शरीफ को एक कोडेड संदेश भेजा, जिसमें पूछा गया कि क्या उसके पास विक्रांत की गतिविधियों के बारे में कुछ पता है। इन सभी संदेशों की 3डी में निगरानी की जा रही थी और कोडित भाषा में नौसेना मुख्यालय को भेजा जा रहा था।
दूसरी तरफ पाकिस्तान भी भारतीय संदेशों पर नजर रख रहा था और उसने कमांडर जफर खान को बताया कि विक्रांत अब विशाखापत्तनम पहुंच गया है। पाकिस्तानी नौसेना मुख्यालय और गाजी का कप्तान दोनों को एहसास हुआ कि विशाखापत्तनम में ही Aircraft Carrier INS Vikrant को तबाह करने अच्छा मौका है। जब 3D को इस बात का पता चला तो वह बहुत परेशान हो गए।
इयान कार्डोज़ो लिखते हैं, ”उन्हें लगा कि अगर पाकिस्तानी नौसेना ने अपने संदेशों के माध्यम से अपने इरादे जाहिर करके खुद को मूर्ख बनाया है, तो भारतीय नौसेना भी पीछे नहीं है। उन्होंने सेना के सिग्नल इंटेलिजेंस तक अपनी बात पहुंचाते हुए कहा कि विक्रांत की लोकेशन पाकिस्तानियों को पता चल गई है और इससे बचने के लिए भारत को एतिहाती कदम उठाने होंगे।
गाजी ने 23 नवंबर 1971 को त्रिंकोमाली से विशाखापत्तनम की ओर बढ़ना शुरू किया। 25 नवंबर को, उसने चेन्नई को पार किया और 1 दिसंबर को रात 11.45 बजे विशाखापत्तनम बंदरगाह के नेविगेशनल चैनल में प्रवेश किया।
मेजर जनरल फजल मुकीम खान अपनी किताब ‘पाकिस्तान्स क्राइसिस इन लीडरशिप’ में लिखते हैं कि उनके सामने समस्या यह थी कि नेवीगेशनल चैनल की गहराई कम होने के कारण गाजी बंदरगाह से केवल 2.1 नॉटिकल मील तक ही जा सकती थी, उससे आगे नहीं।
कमांडर जफर जहां है वहीं रहने और Aircraft Carrier INS Vikrant के बाहर आने का इंतजार करने का फैसला करता है। इस बीच, गाजी के मेडिकल अफ़सर ने चिंता व्यक्त की कि गाजी से निकलने वाले फ़्यूम्स ने न केवल गाजी पर सवार नौसैनिको की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को बढ़ा दिया है, बल्कि पनडुब्बी की सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर दिया है। इसलिए उसने गाजी को ताजी हवा लेने के लिए रात में सतह पर आने और इसी समय बैटरियां बदलने की सलाह दी।
कमांडर खान को यह भी एहसास हुआ कि यदि पनडुब्बी का हाइड्रोजन स्तर पूर्व निर्धारित सुरक्षा मानकों से अधिक हो गया, तो गाजी के आत्म-विनाश का खतरा बढ़ जाएगा। लेकिन जफर को यह भी पता था कि अगर गाजी को मरम्मत के लिए सूरज की रोशनी में लाया जाएगा तो वह तुरंत दिखाई देगी, गाजी एक बड़ी पनडुब्बी थी और उसे दूर से भी देखा जा सकता था।
शाम 5 बजे पनडुब्बी के कार्यकारी अधिकारी और चिकित्सा अधिकारी दोनों ने कैप्टन जफर को सूचित किया कि पनडुब्बी के अंदर की हवा बेहद प्रदूषित हो गई है, जिसके कारण एक नाविक बेहोश हो गया है।
उन्होंने सलाह दी कि रात होने तक इंतजार करने का समय नहीं है और गाजी को तुरंत ही सतह पर ले जाना चाहिए। इस बीच, पनडुब्बी के अंदर की हवा तेजी से प्रदूषित होती जा रही थी, जिसकी वजह से कई नाविकों को खांसी होने लगी थी और इसका असर उनकी आंखों पर भी पड़ रहा था।
कैप्टन जफर ने आदेश दिया कि गाजी को पेरिस्कोप स्तर तक ले जाया जाए और पहले बाहर का निरीक्षण किया जाए। गाजी को धीरे-धीरे समुद्र की सतह से 27 फीट निचे ले जाया गया। वहां से पेरिस्कोप से नजारा देख रहा कैप्टन जफर दंग रह गया, उसने देखा कि बमुश्किल एक किलोमीटर दूर एक बड़ा भारतीय जहाज उनकी ओर बढ़ रहा है।
बिना समय बर्बाद किए जफर ने गाजी को नीचे गोता लगाने का आदेश दिया, जफर के आदेश के 90 सेकंड के भीतर, गाजी वापस समुद्र की तलहटी में चली गई। एक मिनट के अंदर ही भारतीय जहाज गाजी के ऊपर से गुजर गया। कैप्टन खान नीचे स्थिति सामान्य होने का इंतजार करता रहा।
इसी बीच मेडिकल ऑफ़िसर ने फिर आकर कहा कि स्थिति बहुत गंभीर होती जा रही है। पनडुब्बी को सतह पर लाना आवश्यक था, जिसके बाद यह निर्णय लिया गया कि गाजी 3-4 दिसंबर की रात को 12 बजे ऊपर जाएगी और चार घंटे की मरम्मत के बाद सुबह 4 बजे फिर से नीचे आएगी। ज़फ़र ने नौसैनिकों को आदेश दिया कि यदि वे चाहें तो इस बीच अपने परिवार वालों को पत्र लिखें, जो उनके लौटने पर त्रिंकोमाली से पोस्ट किया जाएगा।
जफर को इस बात की जानकारी नहीं दी गई कि 3 दिसंबर की शाम 5.45 बजे पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया है। पाकिस्तान में वाइस एडमिरल मुजफ्फर हुसैन कराची में अपने दफ्तर में टहल रहे थे। वह जफर की खबर का इंतजार कर रहे थे कि उसने Aircraft Carrier INS Vikrant को नष्ट कर दिया है, लेकिन गाजी पूरी तरह से चुप थी।
3-4 दिसंबर की आधी रात को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश को संबोधित किया और पाकिस्तान के हमले की जानकारी दी। जब प्रधानमंत्री का भाषण चल रहा था, तभी विशाखापत्तनम बंदरगाह से कुछ दूरी पर एक बड़ा विस्फोट हुआ। धमाका इतना तेज था कि बंदरगाह के सामने बने घरों के शीशे टूट गए।
लोगों ने दूर से देखा कि समुद्र का पानी बहुत ऊँचाई तक उछलकर निचे गिरा। कुछ लोगों को लगा कि भूकंप आ गया है तो कुछ को लगा कि पाकिस्तानी वायुसेना उन पर बमबारी कर रही है। विस्फोट का समय रात 12.15 बजे बताया गया, बाद में गाजी से बरामद एक घड़ी से पता चला कि इस समय उसने काम करना बंद कर दिया था। 4 दिसंबर की दोपहर को कुछ मछुआरों ने गाजी के कुछ अवशेष समुद्र से उठा लिए।
कहानी में सबसे बड़ा ट्विस्ट यह था कि जब पता चला कि Aircraft Carrier INS Vikrant विशाखापत्तनम में नहीं है, तो पाकिस्तानी पनडुब्बी को विक्रांत की तलाश में अंडमान द्वीप भेजा गया था। इसे एक पुराने विध्वंसक आईएनएस राजपूत से बदलकर, पाकिस्तानियों को यह आभास दिया गया कि विक्रांत विशाखापत्तनम में खड़ा है।
1971 में पूर्वी कमान के प्रमुख वाइस एडमिरल एन कृष्णन ने अपनी आत्मकथा ‘अ सेलर्स स्टोरी’ में लिखा, ”राजपूत को विशाखापत्तनम से 160 किलोमीटर दूर ले जाया गया। उससे Aircraft Carrier INS Vikrant के कॉल साइन का उपयोग करने और उसी रेडियो फ्रीक्वेंसी पर इतने बड़े जहाज के लिए आवश्यक बड़ी मात्रा में आपूर्ति की डिलीवरी का अनुरोध करने के लिए कहा गया था।
विशाखापत्तनम के बाजारों से बड़ी मात्रा में राशन, मांस और सब्जियां खरीदी गईं ताकि यह खबर वहां मौजूद पाकिस्तानी जासूसों तक फैलाई जा सके कि विक्रांत वर्तमान में विशाखापत्तनम में तैनात है। भारी वायरलेस ट्रैफिक ने पाकिस्तानियों को यह विश्वास दिला दिया कि एक बड़ा जहाज वहां तैनात है।
जानबूझकर विक्रांत के सुरक्षा प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए, एक नाविक का टेलीग्राम आता है, जिसमें वह अपनी मां के स्वास्थ्य के बारे में पूछता है। इस फर्जी ऑपरेशन की सफलता गाजी के अवशेषों से कराची से आए सिग्नल से साबित हुई, जिसमें लिखा था ‘इंटेलिजेंस इंडिकेट कैरियर इन पोर्ट’ यानी खुफिया जानकारी के मुताबिक जहाज बंदरगाह में ही है।
गाज़ी के डूबने के कारणों के बारे में केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। शुरुआत में भारतीय नौसेना कहती रही कि आईएनएस राजपूत ने गाजी को डुबाया है।
एक अनुमान ये लगाया गया कि गाजी अपनी ही बनाई सुरंग से होकर गुज़र गई। दूसरी परिकल्पना यह थी कि पनडुब्बी जिन बारूदी सुरंगों को ले जा रही थी उनमें विस्फोट हो गया और गाज़ी ने जलसमाधि ले ली। तीसरी संभावना यह थी कि पनडुब्बी में आवश्यकता से अधिक हाइड्रोजन गैस जमा हो गई, जिससे उसमें विस्फोट हो गया।
गाजी के अवशेषों की जांच करने वाले ज्यादातर भारतीय अधिकारियों और गोताखोरों का मानना है कि तीसरी संभावना में सबसे ज्यादा दम है। गाजी के मलबे की जांच करने वालों का कहना है कि गाजी का ढांचा जहां टॉरपीडो रखे गए थे वहाँ से नहीं बल्कि बीच से टूटा था।
यदि कोई टारपीडो या बारूदी सुरंग फट जाती तो पनडुब्बी के अगले हिस्से को अधिक नुकसान होता। इसके अलावा, गाज़ी के मैसेज लॉग बुक से भेजे गए अधिकांश संदेशों में कहा गया था कि पनडुब्बी आवश्यकता से अधिक हाइड्रोजन गैस का उत्पादन कर रही है।
गाजी के डूबने की सूचना सबसे पहले भारतीय नौसेना मुख्यालय ने 9 दिसंबर को दी थी, जबकि गाजी 3-4 दिसंबर को ही डूब चुकी थी।
वाइस एडमिरल जीएम हीरानंदानी अपनी किताब ‘ट्रांज़िशन टू ट्रायम्फ इंडियन नेवी 1965-1975’ में लिखते हैं, ”भारत द्वारा गाज़ी के डूबने और उसकी घोषणा के बीच 6 दिन के अंतराल ने कई सवाल खड़े किए। इससे यह अटकलें भी तेज हो गईं कि पनडुब्बी युद्ध की घोषणा से पहले ही डूब गई होगी। 26 नवंबर के बाद गाज़ी के कराची से संपर्क न कर पाने से भी इन संभावनाओं को बल मिला। कुछ हलकों में यह भी कहा जा रहा था कि भारत ने 9 दिसंबर को खुकरी जहाज के डूबने की खबर से ध्यान भटकाने के लिए गाजी के डूबने की घोषणा की थी।
लेकिन भारत की सफाई ये थी कि ये घोषणा करने से पहले भारत सारे सबूतों की पुष्टि करना चाहता था। समुद्र की लहरें बहुत तेज़ थीं, इसलिए समुद्र के अंदर गाज़ी की जांच करना बहुत मुश्किल था।
5 दिसंबर को ही भारतीय गोताखोरों को इस बात के पुख्ता सबूत मिले कि डूबी हुई पनडुब्बी असल में गाज़ी थी। तीसरे दिन, गोताखोर पनडुब्बी के कोनिंग टॉवर हैच को खोलने में कामयाब रहे और उसी दिन पनडुब्बी से पहला शव बरामद हुआ।
गाजी आज भी विशाखापत्तनम बंदरगाह की सीमा पर दफन है। इस आधार पर कि पनडुब्बी मूल रूप से अमेरिका की थी और पाकिस्तान को लीज पर दी गई थी, अमेरिका ने भारत सरकार को अपने खर्च पर गाज़ी को समुद्र से बाहर निकालने का प्रस्ताव दिया।
भारत ने यह कहते हुए प्रस्ताव खारिज कर दिया कि गाजी ने अवैध रूप से भारतीय जल सीमा में प्रवेश किया था। पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण के बाद इसे नष्ट कर दिया गया। पाकिस्तान ने अपने खर्चे पर गाजी को बाहर निकालने की पेशकश भी की थी, लेकिन उन्हें भी अमेरिकियों जैसा ही जवाब दिया गया।
1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में पाकिस्तान की बुरी तरह हार हुई थी। पाकिस्तान को न केवल ज़मीन पर बल्कि नौसैनिक युद्ध में भी करारी हार का सामना करना पड़ा। भारत के आईएनएस विक्रांत को मार गिराने आयी पाकिस्तान की शान पीएनएस गाजी खुद मुसीबत में फंस गई। उस पाकिस्तानी पनडुब्बी का मलबा विशाखापत्तनम के तट पर मिला है
भारतीय नौसेना के डीप सबमर्सन रेस्क्यू व्हीकल (DSRV) ने पीएनएस गाजी के अवशेष बरामद किए। भारतीय सेना के एक सेवा अधिकारी ने पुष्टि की, कि विशाखापत्तनम के तट से कुछ मील दूर डूबी हुई पाकिस्तानी पनडुब्बी का मलबा पाया गया है। इसे स्कैन किया गया, लेकिन शहीद नौसैनिकों के सम्मान की परंपरा को ध्यान में रखते हुए इसे अछूता छोड़ दिया गया।