जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर कौन थे? J Robert Oppenheimer Biography Hindi

जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर कौन थे - J Robert Oppenheimer Biography Hindi
जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर कौन थे? जीवन, मैनहट्टन प्रोजेक्ट, विवाद और विरासत

जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर: परमाणु युग का विवादित नायक (J Robert Oppenheimer Biography Hindi)

क्रिस्टोफर नोलन की बहुप्रतीक्षित महाकाव्य फिल्म ‘ओपेनहाइमर’ ने दुनिया भर में सिनेमाघरों में धूम मचा दी है। सिलियन मर्फी के शानदार अभिनय ने जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर (J. Robert Oppenheimer) के इस जटिल चरित्र को जीवंत कर दिया है – वह वैज्ञानिक जिसे ‘परमाणु बम का जनक’ (Father of the Atomic Bomb) कहा जाता है, जिसने एक विनाशकारी हथियार बनाने में नेतृत्व किया और फिर उसी के खिलाफ आवाज उठाई।

लेकिन ओपेनहाइमर केवल एक वैज्ञानिक ही नहीं थे; वे एक विचारक, एक विवादित व्यक्तित्व और एक ऐसे व्यक्ति थे जिनका जीवन विज्ञान, नैतिकता और राजनीति के बीच टकराव की कहानी कहता है। आइए, गहराई से जानते हैं इस असाधारण व्यक्ति के बारे में।

1. प्रारंभिक जीवन: एक प्रतिभाशाली प्रारंभ

  • जन्म और शिक्षा: जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर का जन्म 22 अप्रैल, 1904 को न्यूयॉर्क शहर में एक समृद्ध यहूदी परिवार में हुआ। बचपन से ही उनकी असाधारण बुद्धिमत्ता स्पष्ट थी।
  • बाल प्रतिभा: महज 10 साल की उम्र में ही वे भौतिकी और रसायन विज्ञान का गंभीर अध्ययन कर रहे थे। 12 वर्ष की आयु में एक घटना ने उनकी प्रतिभा को रेखांकित किया – न्यूयॉर्क मिनरलोजिकल क्लब ने, यह जाने बिना कि वह एक किशोर हैं, उन्हें अपनी बैठक में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया! उन्होंने खनिजों पर एक शोध पत्र प्रस्तुत किया।
  • शैक्षणिक उत्कृष्टता: ओपेनहाइमर ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से केवल तीन वर्षों में स्नातक की डिग्री पूरी की, जो सामान्य चार साल के कोर्स से कम था। यह उनकी अद्भुत बौद्धिक क्षमता का प्रमाण था। इसके बाद उनकी रुचि सैद्धांतिक भौतिकी में गहराई से बढ़ी।

2. यूरोप में अध्ययन और वैज्ञानिक योगदान

  • यूरोप की यात्रा: उच्च शिक्षा के लिए ओपेनहाइमर यूरोप गए। पहले उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन किया, फिर जर्मनी के गौटिंगेन विश्वविद्यालय में सैद्धांतिक भौतिकी संस्थान में।
  • पीएचडी और प्रारंभिक कार्य: उन्होंने प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी मैक्स बोर्न के मार्गदर्शन में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। बोर्न क्वांटम यांत्रिकी के विकास में अग्रणी थे। इसी दौरान ओपेनहाइमर और बोर्न ने मिलकर “बोर्न-ओपेनहाइमर सन्निकटन” (Born-Oppenheimer Approximation) विकसित किया। यह एक गणितीय सन्निकटन है जो आणविक संरचनाओं और उनकी गतिकी को समझने में मौलिक रूप से महत्वपूर्ण साबित हुआ और आज भी भौतिक रसायन विज्ञान में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।
  • अन्य योगदान: ओपेनहाइमर ने क्वांटम यांत्रिकी, कॉस्मिक रेज, न्यूट्रॉन सितारों और न्यूक्लियर फिजिक्स जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके काम ने बाद में न्यूट्रॉन और मेसॉन जैसे कणों की खोज की नींव रखी।
  • अमेरिका वापसी और शिक्षण: 1929 में ओपेनहाइमर अमेरिका लौट आए और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कैलटेक) में प्रोफेसर नियुक्त हुए। 1929 से 1943 तक उन्होंने बर्कले में पढ़ाया, जहाँ वे एक लोकप्रिय और प्रेरक शिक्षक साबित हुए। उन्होंने अमेरिका में सैद्धांतिक भौतिकी के अग्रणी केंद्रों में से एक की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

3. मैनहट्टन प्रोजेक्ट: परमाणु बम की दौड़

  • पृष्ठभूमि: 1939 में दुनिया भर के वैज्ञानिकों को चौंकाने वाली खबर मिली: नाजी जर्मनी के वैज्ञानिकों ने यूरेनियम परमाणुओं को विभाजित करने (परमाणु विखंडन – Nuclear Fission) में सफलता हासिल कर ली थी। इस प्रक्रिया में भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। डर यह था कि जर्मनी इसका उपयोग अत्यंत विनाशकारी परमाणु हथियार बनाने के लिए कर सकता है।
  • आइंस्टीन-स्ज़िलार्ड पत्र: इस खतरे को भांपते हुए, प्रख्यात भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन और लियो स्ज़िलार्ड ने अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने नाजियों से पहले परमाणु बम बनाने के लिए अमेरिका को तत्काल एक कार्यक्रम शुरू करने की सलाह दी। यह पत्र ऐतिहासिक ‘आइंस्टीन-स्ज़िलार्ड पत्र’ के नाम से जाना जाता है।
  • मैनहट्टन प्रोजेक्ट की शुरुआत: इस चेतावनी के बाद, अमेरिकी सरकार ने गुप्त रूप से मैनहट्टन प्रोजेक्ट (Manhattan Project) की शुरुआत की। इसका नाम इसके शुरुआती मुख्यालय (न्यूयॉर्क शहर के मैनहट्टन जिले) के कारण पड़ा। इस विशाल और अत्यंत गोपनीय परियोजना का नेतृत्व सेना के लेफ्टिनेंट जनरल लेस्ली ग्रोव्स को सौंपा गया।
  • ओपेनहाइमर की नियुक्ति: वैज्ञानिक नेतृत्व के लिए एक प्रतिभाशाली और संगठनात्मक क्षमता वाले व्यक्ति की तलाश थी। अक्टूबर 1942 में, ओपेनहाइमर को हथियार भौतिकी पर शोध करने वाली प्रयोगशाला (तब ‘प्रोजेक्ट वाई’ के नाम से जानी जाती थी) का प्रभारी बनाया गया। इसी प्रयोगशाला का बाद में न्यू मैक्सिको के लॉस एलामोस में विस्तार किया गया। ओपेनहाइमर को 1943 से 1945 तक लॉस एलामोस प्रयोगशाला का निदेशक नियुक्त किया गया।
  • लॉस एलामोस की भूमिका: लॉस एलामोस मैनहट्टन प्रोजेक्ट का हृदयस्थल था। यहीं पर दुनिया के कुछ सबसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों (जिनमें से कई नाजी जर्मनी से भागे यहूदी वैज्ञानिक थे) को एकत्र किया गया था। उनका काम था – परमाणु बम का सैद्धांतिक डिजाइन, निर्माण और परीक्षण करना। ओपेनहाइमर न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के प्रभारी थे, बल्कि वे इन विविध और अक्सर अहंकारी वैज्ञानिकों के बीच तालमेल बिठाने और उन्हें एक लक्ष्य पर केंद्रित रखने में भी कुशल थे। उनकी इसी भूमिका ने उन्हें ‘परमाणु बम का जनक’ उपाधि दिलाई।
मैनहट्टन प्रोजेक्ट क्या था - What was the Manhattan Project
मैनहट्टन प्रोजेक्ट क्या था – What was the Manhattan Project

4. ट्रिनिटी टेस्ट: दुनिया का पहला परमाणु विस्फोट

  • तैयारी: वर्षों के अथक परिश्रम और अरबों डॉलर के खर्च के बाद, पहला परमाणु उपकरण परीक्षण के लिए तैयार था।
  • ‘ट्रिनिटी’ नामकरण: ओपेनहाइमर ने इस परीक्षण का कोड नाम “ट्रिनिटी” (Trinity) रखा। यह नाम उन्हें अंग्रेजी कवि जॉन डोने की एक कविता से प्रेरित होकर सूझा, जिसमें ईश्वर की त्रिमूर्ति (फादर, सन, एंड होली गोस्ट) का उल्लेख था।
  • ऐतिहासिक विस्फोट: 16 जुलाई, 1945 की सुबह, लॉस एलामोस से लगभग 320 किलोमीटर दक्षिण में, न्यू मैक्सिको के जोर्नाडा डेल मुएर्तो (Jornada del Muerto – ‘डेथ जर्नी’) रेगिस्तान में ट्रिनिटी परीक्षण किया गया।
  • विस्फोट का प्रभाव: विस्फोट अकल्पनीय था। विस्फोट से उत्पन्न ऊर्जा ने एक विशाल आग का गोला बनाया और एक मशरूम के आकार का बादल आकाश में लगभग 13 किलोमीटर तक फैल गया। विस्फोट की गूँज 160 किलोमीटर से अधिक दूर तक सुनी गई और झटका लगभग 100 किलोमीटर दूर तक महसूस किया गया। कांच तक टूट गए। यह मानव इतिहास में एक निर्णायक क्षण था – परमाणु युग का आरंभ।
  • ओपेनहाइमर की प्रतिक्रिया: इस भयावह शक्ति को देखकर ओपेनहाइमर के मन में जो विचार आया, वह इतिहास में अमर हो गया। उन्होंने प्राचीन हिंदू ग्रंथ भगवद गीता के ग्यारहवें अध्याय से श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए विश्वरूप दर्शन का वर्णन करने वाला श्लोक उद्धृत किया:

“कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो…”
(अर्थात: “मैं काल हूँ, संहारकर्ता, विश्व का संहार करने के लिए उद्यत हूँ…”)

और विशेष रूप से:
“अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, दुनियाओं का संहारकर्ता।”
(अंग्रेजी अनुवाद: “Now I am become Death, the destroyer of worlds.”)

इस क्षण ने ओपेनहाइमर के मन में उनके द्वारा जारी की गई शक्ति के प्रति एक गहरी नैतिक उलझन और भारी जिम्मेदारी का बोध पैदा कर दिया।

5. हिरोशिमा और नागासाकी: विनाश का साक्षी

  • बमबारी का निर्णय: ट्रिनिटी परीक्षण की सफलता के बाद, अमेरिका के पास दो परमाणु बम तैयार थे। जापान के साथ युद्ध अभी जारी था। अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन ने जापान को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने और अमेरिकी सैनिकों के जीवन बचाने के उद्देश्य से इन बमों के इस्तेमाल का आदेश दिया। यह निर्णय ऐतिहासिक और अत्यंत विवादास्पद साबित हुआ।
  • हिरोशिमा (6 अगस्त, 1945): पहला बम, जिसका कोड नाम “लिटिल बॉय” था, जापान के शहर हिरोशिमा पर गिराया गया। यह यूरेनियम-आधारित बम था। तत्काल ही लगभग 70,000-80,000 लोग मारे गए। अगले हफ्तों और महीनों में विकिरण के प्रभाव से मरने वालों की संख्या बढ़कर लगभग 1,40,000 हो गई। शहर का अधिकांश हिस्सा तबाह हो गया।
  • नागासाकी (9 अगस्त, 1945): जब जापान ने तुरंत आत्मसमर्पण नहीं किया, तो दूसरा बम, जिसका कोड नाम “फैट मैन” था, नागासाकी शहर पर गिराया गया। यह प्लूटोनियम-आधारित बम था। तत्काल लगभग 40,000 लोग मारे गए और अंततः मृतकों की संख्या लगभग 74,000 तक पहुँच गई। भौगोलिक स्थिति के कारण तबाही हिरोशिमा जितनी व्यापक नहीं थी, लेकिन विनाश भयानक था।
  • ओपेनहाइमर की प्रतिक्रिया:
    • पहले बम पर: ऐसा बताया जाता है कि हिरोशिमा पर बम गिरने की खबर मिलने पर ओपेनहाइमर और लॉस एलामोस के कई वैज्ञानिक प्रारंभ में विजय की भावना से उत्साहित थे। एक सभा में ओपेनहाइमर ने कहा कि जापानियों को यह पसंद नहीं आया होगा, लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि परिणाम क्या होंगे। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने यह भी अफसोस जताया कि बम जर्मनी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सका।
    • दूसरे बम पर: नागासाकी की बमबारी ने ओपेनहाइमर पर गहरा प्रभाव डाला। वे “घबराए हुए” और “परेशान” पाए गए। उन्होंने तत्काल राष्ट्रपति ट्रूमैन से मुलाकात की और उनके हाथ चूमने की कोशिश करते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि उनके हाथ खून से सने हैं। ट्रूमैन ने इस प्रतिक्रिया को नापसंद किया और बाद में उन्हें “रोने वाला वैज्ञानिक” कहा। यह घटना ओपेनहाइमर के मन में पैदा हुए गहरे नैतिक संघर्ष और अपराधबोध को दर्शाती है।

6. युद्ध के बाद: परमाणु नियंत्रण और विरोध

  • परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC): युद्ध समाप्त होने के बाद, ओपेनहाइमर लॉस एलामोस से नवंबर 1945 में विदा हो गए। उन्हें नवगठित परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission – AEC) की प्रमुख सलाहकार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस भूमिका में उन्होंने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग और अंतरराष्ट्रीय परमाणु नियंत्रण के लिए प्रयास किए।
  • हाइड्रोजन बम का विरोध: शीत युद्ध की शुरुआत के साथ, अमेरिका ने हाइड्रोजन बम (Hydrogen Bomb या H-Bomb) विकसित करने पर विचार किया। यह परमाणु बम से हजारों गुना अधिक शक्तिशाली था। ओपेनहाइमर ने इसका जोरदार विरोध किया। उनका मानना था कि यह हथियार अत्यधिक विनाशकारी है, इसका कोई सैन्य लक्ष्य नहीं हो सकता (यह पूरे शहरों और क्षेत्रों को मिटा सकता था), और यह एक खतरनाक हथियारों की दौड़ को भड़काएगा। उन्होंने परमाणु निरस्त्रीकरण और सोवियत संघ के साथ बातचीत पर जोर दिया।

7. राजनीतिक विवाद और सुरक्षा मंजूरी की समाप्ति

  • मैकार्थीवाद का दौर: 1950 के दशक की शुरुआत में अमेरिका में ‘मैकार्थीवाद’ (McCarthyism) का दौर चल रहा था। सीनेटर जोसेफ मैकार्थी के नेतृत्व में कम्युनिस्ट विरोधी अभियान चलाया जा रहा था। इस माहौल में किसी भी प्रकार के वामपंथी संबंध संदेह की नजर से देखे जाते थे।
  • ओपेनहाइमर पर आरोप: ओपेनहाइमर के युवावस्था और युद्धपूर्व काल के कुछ संबंध उनके खिलाफ इस्तेमाल किए गए:
    • 1930 के दशक में उनकी मंगेतर जीन टैटलॉक अमेरिकी कम्युनिस्ट पार्टी की सक्रिय सदस्य थीं।
    • उनके भाई फ्रैंक ओपेनहाइमर और पत्नी किट्टी ओपेनहाइमर के पूर्व पति (जो स्पेनिश गृहयुद्ध में मारे गए थे) भी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे।
    • ओपेनहाइमर स्वयं भी 1930 के दशक में कई वामपंथी संगठनों और कार्यक्रमों से जुड़े थे, हालांकि उन्होंने कभी भी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता लेने से इनकार किया।
    • सबसे गंभीर आरोप यह था कि उन्होंने सोवियत जासूसों से संपर्क किया और उन्हें जानकारी दी (हालाँकि इसके ठोस सबूत कभी नहीं मिले)। उनके H-बम विरोध को भी सोवियत संघ के प्रति सहानुभूति के रूप में देखा गया।
  • सुरक्षा मंजूरी निलंबन और सुनवाई: दिसंबर 1953 में, एईसी के अध्यक्ष लुईस स्ट्रॉस (जो ओपेनहाइमर के विरोधी थे और H-बम के समर्थक थे) ने ओपेनहाइमर को सूचित किया कि उनकी सुरक्षा मंजूरी (जो गोपनीय जानकारी तक पहुँच के लिए जरूरी थी) निलंबित कर दी गई है और उन्हें एईसी से इस्तीफा देने के लिए कहा गया। ओपेनहाइमर ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया और अपने बचाव में सुनवाई की मांग की।
  • सुनवाई (अप्रैल-मई 1954): यह सुनवाई अप्रैल-मई 1954 में चली। यह एक गैर-न्यायिक, प्रशासनिक प्रक्रिया थी, लेकिन इसका स्वरूप एक अभियोग जैसा था। ओपेनहाइमर पर गंभीर आरोप लगाए गए। उनके कई पूर्व सहयोगियों और मित्रों ने उनके पक्ष में गवाही दी, लेकिन कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों, विशेषकर एडवर्ड टेलर (H-बम के प्रमुख वास्तुकार) ने उनके खिलाफ गवाही दी। टेलर ने कहा कि उन्हें ओपेनहाइमर पर भरोसा नहीं है और उन्हें लगता है कि देश की सुरक्षा के लिए यह बेहतर होगा कि ओपेनहाइमर के पास सरकारी प्रभाव न हो।
  • निर्णय: सुनवाई पैनल ने ओपेनहाइमर को देशभक्त माना, लेकिन यह भी कहा कि उनका “चरित्र और संबंध” (विशेषकर उनकी ईमानदारी में कथित कमी और कम्युनिस्टों के साथ जुड़ाव) उन्हें सुरक्षा जोखिम बनाता है। उनकी सुरक्षा मंजूरी स्थायी रूप से रद्द कर दी गई। यह ओपेनहाइमर के लिए एक गहरा सार्वजनिक अपमान और व्यक्तिगत त्रासदी थी। उन्हें सरकारी सलाहकार पदों से प्रभावी रूप से हटा दिया गया।

8. बाद का जीवन, मृत्यु और ऐतिहासिक पुनर्वास

  • प्रिंसटन में कार्य: सुनवाई के बाद, ओपेनहाइमर ने न्यू जर्सी के प्रिंसटन में इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड स्टडी के निदेशक के रूप में अपना काम जारी रखा। वहाँ उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान और बौद्धिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित किया।
  • पुरस्कार और मान्यता: 1963 में, शीत युद्ध के तनाव में कुछ कमी आने के बाद, अमेरिकी सरकार ने ओपेनहाइमर को कुछ हद तक पुनर्वासित किया। उन्हें एनरिको फर्मी पुरस्कार (अमेरिका का एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पुरस्कार) से सम्मानित किया गया, जो राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी द्वारा घोषित किया गया था (हालाँकि केनेडी की हत्या के बाद यह राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन द्वारा प्रदान किया गया)। यह पुरस्कार परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में उनके योगदान की मान्यता थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, केनेडी ने पहले ही उनसे व्हाइट हाउस में मुलाकात कर उन्हें इस घटना के लिए माफी भी दे दी थी।
  • मृत्यु: ओपेनहाइमर एक जबरदस्त धूम्रपान करने वाले थे। 1965 के अंत में उन्हें गले के कैंसर का पता चला। उनकी स्थिति बिगड़ती गई। कोमा में जाने के तीन दिन बाद, 18 फरवरी, 1967 को प्रिंसटन, न्यू जर्सी में उनके घर पर उनका निधन हो गया। वे मात्र 62 वर्ष के थे।
  • ऐतिहासिक पुनर्वास (2022): दशकों बाद, 16 दिसंबर, 2022 को, अमेरिकी ऊर्जा सचिव जेनिफर ग्रैनहोम ने एक ऐतिहासिक घोषणा की। उन्होंने कहा कि 1954 में एईसी द्वारा ओपेनहाइमर की सुरक्षा मंजूरी रद्द करने का निर्णय “दोषपूर्ण” था। उन्होंने कहा कि उस सुनवाई की प्रक्रिया में “पक्षपात” और “न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन” हुआ था, जबकि ओपेनहाइमर की “वफादारी और देशभक्ति” के और सबूत सामने आए हैं। इस तरह आधिकारिक तौर पर ओपेनहाइमर के चरित्र और देशभक्ति को साफ किया गया।

9. ओपेनहाइमर और भारत: नेहरू जी का प्रस्ताव

  • 1954 में नागरिकता का प्रस्ताव: 1954 में ओपेनहाइमर की सुरक्षा मंजूरी रद्द होने और सार्वजनिक अपमान के बाद, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारतीय नागरिकता देने का एक विशेष प्रस्ताव भेजा। नेहरू, जो खुद एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले नेता थे, ओपेनहाइमर की वैज्ञानिक उपलब्धियों का सम्मान करते थे और उनके साथ हुए अन्याय से दुखी थे।
  • ओपेनहाइमर की प्रतिक्रिया: हालाँकि ओपेनहाइमर नेहरू के इस समर्थन और उदारता से प्रभावित हुए, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। मुख्य कारण यह था कि वे एक गहरे अमेरिकी देशभक्त थे। अमेरिका में ही उनकी जड़ें थीं, और वे अपनी मातृभूमि को छोड़ना नहीं चाहते थे, चाहे वहाँ उनके साथ कुछ भी हुआ हो।
  • थोरियम निर्यात पर चिंता: ओपेनहाइमर और नेहरू के बीच एक और महत्वपूर्ण बातचीत हुई। ओपेनहाइमर जानते थे कि भारत के पास थोरियम का भंडार है। थोरियम का उपयोग परमाणु ऊर्जा के साथ-साथ और भी घातक थर्मोन्यूक्लियर बम (हाइड्रोजन बम) बनाने में किया जा सकता है। 1951 में, ओपेनहाइमर ने तत्कालीन भारतीय राजदूत अमेरिका, विजयलक्ष्मी पंडित (नेहरू की बहन) से फोन पर बात करके उनसे अनुरोध किया कि वे नेहरू को सलाह दें कि भारत अमेरिका को थोरियम का निर्यात न करे। ओपेनहाइमर चाहते थे कि इस अत्यंत शक्तिशाली हथियार के लिए आवश्यक कच्चा माल सीमित रहे। हालाँकि, इस अनुरोध का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।
ओपेनहाइमर और नेहरू - J. Robert Oppenheimer and Jawaharlal Nehru
ओपेनहाइमर और नेहरू – J. Robert Oppenheimer and Jawaharlal Nehru

10. ओपेनहाइमर का निजी जीवन और परिवार

  • पत्नी – किट्टी ओपेनहाइमर: ओपेनहाइमर ने 1940 में कैथरीन “किट्टी” प्यूनिंग हैरिसन से शादी की। किट्टी (जिन्हें फिल्म में एमिली ब्लंट ने अभिनीत किया है) एक जीवविज्ञानी थीं और ओपेनहाइमर से मिलने से पहले तीन बार विवाहित रह चुकी थीं (पहला विवाह रद्द हुआ, दूसरे पति की स्पेनिश गृहयुद्ध में मृत्यु हो गई, तीसरे पति रिचर्ड हैरिसन थे जिनसे तलाक लिया)। किट्टी के दूसरे पति कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे।
  • बच्चे: ओपेनहाइमर और किट्टी के दो बच्चे हुए: बेटा पीटर (जन्म 1941) और बेटी कैथरीन “टोनी” (जन्म 1944)।
  • लॉस एलामोस में जीवन: किट्टी ने कुछ समय लॉस एलामोस सुविधा में भी काम किया। वह वैज्ञानिकों की पत्नियों के लिए डिनर पार्टियों का आयोजन करने के लिए जानी जाती थीं। वह ओपेनहाइमर की करीबी विश्वासपात्र और समर्थक थीं, विशेषकर उनके विवादों के दौरान। हालाँकि, वह शराब और अवसाद से भी जूझती रहीं। ओपेनहाइमर की मृत्यु के बाद उनकी हालत बिगड़ गई और 1972 में पनामा में फुफ्फुसीय अन्त: शल्यता से उनकी मृत्यु हो गई।
  • जीन टैटलॉक: किट्टी से मिलने से पहले, ओपेनहाइमर का एक गहरा रिश्ता मनोचिकित्सक और अमेरिकी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य जीन टैटलॉक (फिल्म में फ्लोरेंस पुघ द्वारा अभिनीत) के साथ था। उनकी मुलाकात 1936 में हुई। उनका रिश्ता टूट-जुड़ता रहा, यहाँ तक कि ओपेनहाइमर के किट्टी से विवाह के बाद भी। जनवरी 1944 में, गंभीर अवसाद से जूझ रही जीन टैटलॉक ने आत्महत्या कर ली। यह घटना ओपेनहाइमर के लिए एक गहरा आघात थी।

11. विरासत: विज्ञान, नैतिकता और जटिलता का प्रतीक

जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर की विरासत अत्यंत जटिल और बहुआयामी है:

  1. वैज्ञानिक प्रतिभा: वे अपने समय के सबसे प्रतिभाशाली सैद्धांतिक भौतिकविदों में से एक थे। बोर्न-ओपेनहाइमर सन्निकटन जैसे उनके योगदान आज भी मौलिक हैं। क्वांटम यांत्रिकी और नाभिकीय भौतिकी में उनका काम अग्रणी था।
  2. मैनहट्टन प्रोजेक्ट का नेतृत्व: लॉस एलामोस में उनकी नेतृत्व क्षमता अद्वितीय थी। उन्होंने विश्व के शीर्ष वैज्ञानिकों को एकजुट कर एक अभूतपूर्व वैज्ञानिक-तकनीकी चुनौती को पूरा किया।
  3. परमाणु युग के जनक: ट्रिनिटी परीक्षण ने मानवता को एक ऐसी शक्ति प्रदान की जिसने इतिहास का रुख ही बदल दिया। ओपेनहाइमर सदैव इस शक्ति के साथ जुड़े रहेंगे।
  4. नैतिक संघर्ष का प्रतीक: ओपेनहाइमर ने परमाणु बम के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन बाद में उसी के विनाशकारी परिणामों और और भी शक्तिशाली हथियारों (H-बम) के विकास के खिलाफ आवाज उठाई। उनका जीवन वैज्ञानिक प्रगति और उसकी नैतिक जिम्मेदारी के बीच के अंतर्निहित तनाव का प्रतीक बन गया। उनका भगवद गीता का उद्धरण इसी संघर्ष को दर्शाता है।
  5. राजनीतिक उत्पीड़न का शिकार: उनकी सुरक्षा मंजूरी की सुनवाई और समाप्ति मैकार्थी युग की अतिवादिता और राजनीतिक हठधर्मिता के खतरों की एक कालिख पुती दास्तान है। बाद में उनका पुनर्वास न्याय की एक ऐतिहासिक स्वीकृति थी।
  6. सांस्कृतिक आइकन: क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ‘ओपेनहाइमर’ ने उनकी कहानी को एक नई पीढ़ी के सामने रखा है, जिससे उनकी जटिलता, प्रतिभा और त्रासदी पर फिर से चर्चा शुरू हुई है। वे विज्ञान, शक्ति, नैतिकता और मानवीय कमजोरियों के बारे में सोचने के लिए एक शक्तिशाली प्रेरणा बने हुए हैं।

निष्कर्ष: 

जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर एक विरोधाभासों से भरा व्यक्तित्व थे। एक ओर अद्भुत वैज्ञानिक प्रतिभा और नेतृत्व क्षमता, दूसरी ओर गहरा नैतिक संघर्ष और व्यक्तिगत त्रासदी। उन्होंने एक ऐसी शक्ति को मुक्त किया जिसने द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त किया, लेकिन जिसने मानवता के सामने सर्वनाश का स्थायी खतरा पैदा कर दिया। उनका जीवन याद दिलाता है कि वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ उसकी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। ओपेनहाइमर की कहानी केवल इतिहास नहीं; यह आज भी प्रासंगिक है, जब नई प्रौद्योगिकियाँ (जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता) मानवता के भविष्य पर गहरे सवाल खड़े कर रही हैं। वे हमेशा विज्ञान और मानवता के बीच के जटिल रिश्ते के प्रतीक के रूप में याद किए जाएंगे।

जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर को ‘परमाणु बम का जनक’ क्यों कहा जाता है?

ओपेनहाइमर ने अमेरिका के गुप्त मैनहट्टन प्रोजेक्ट में लॉस एलामोस प्रयोगशाला के निदेशक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में ही दुनिया का पहला परमाणु बम डिजाइन, निर्मित और परीक्षण (ट्रिनिटी टेस्ट) किया गया। इसी कारण उन्हें ‘परमाणु बम का जनक’ कहा जाता है, हालाँकि यह एक टीम का प्रयास था।

ट्रिनिटी टेस्ट के समय ओपेनहाइमर ने भगवद गीता का कौन सा श्लोक कहा था?

विस्फोट की भयावह शक्ति देखकर ओपेनहाइमर के मन में भगवद गीता (अध्याय 11, श्लोक 32) का यह श्लोक आया:
“कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो…”
(अर्थ: “मैं काल हूँ, संहारकर्ता, विश्व का संहार करने के लिए उद्यत हूँ…”)
उन्होंने इसका अंग्रेजी अनुवाद कहा: “Now I am become Death, the destroyer of worlds.” (“अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, दुनियाओं का संहारकर्ता।”)

क्या ओपेनहाइमर कम्युनिस्ट थे?

ओपेनहाइमर ने कभी भी अमेरिकी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता लेने से इनकार किया। हालाँकि, 1930 के दशक में उनके कई करीबी लोग (जैसे उनकी मंगेतर जीन टैटलॉक, भाई फ्रैंक, पत्नी किट्टी का पूर्व पति) कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे, और वे स्वयं कुछ वामपंथी संगठनों में सक्रिय थे। यही संबंध बाद में उनके खिलाफ इस्तेमाल किए गए।

ओपेनहाइमर की सुरक्षा मंजूरी क्यों रद्द की गई?

1954 में, शीत युद्ध और मैकार्थीवाद के दौर में, ओपेनहाइमर पर उनके पुराने वामपंथी संबंधों और हाइड्रोजन बम (H-बम) के विकास का विरोध करने के कारण ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जोखिम’ होने का आरोप लगाया गया। एक विवादास्पद सुनवाई के बाद, परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) ने उनकी सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी। 2022 में अमेरिकी सरकार ने आधिकारिक तौर पर माना कि यह निर्णय गलत और पक्षपातपूर्ण था।

नेहरू जी ने ओपेनहाइमर को भारतीय नागरिकता क्यों देना चाही?

1954 में ओपेनहाइमर के साथ हुए सार्वजनिक अपमान और अन्याय से प्रभावित होकर, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव भेजा। यह वैज्ञानिक प्रतिभा के प्रति सम्मान और मानवीय समर्थन का प्रतीक था। हालाँकि, ओपेनहाइमर ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे गहरे अमेरिकी देशभक्त थे।

ओपेनहाइमर की मृत्यु कैसे हुई?

ओपेनहाइमर एक जबरदस्त धूम्रपान करने वाले थे। 1965 के अंत में उन्हें गले के कैंसर का पता चला। लंबी बीमारी के बाद, कोमा में जाने के तीन दिन बाद, 18 फरवरी, 1967 को न्यू जर्सी के प्रिंसटन में उनके घर पर उनका निधन हो गया। वे 62 वर्ष के थे।

ओपेनहाइमर ने हिरोशिमा-नागासाकी बमबारी पर क्या प्रतिक्रिया दी?

हिरोशिमा बमबारी की खबर पर प्रारंभिक प्रतिक्रिया में कुछ उत्साह था। लेकिन नागासाकी बमबारी ने उन्हें गहराई से विचलित कर दिया। वे “घबराए हुए” और “परेशान” पाए गए। उन्होंने राष्ट्रपति ट्रूमैन से मुलाकात में कहा कि उन्हें लगता है कि उनके हाथ खून से सने हैं। यह उनके गहरे नैतिक संघर्ष और अपराधबोध को दर्शाता है।

ओपेनहाइमर का मैनहट्टन प्रोजेक्ट से पहले क्या योगदान था?

ओपेनहाइमर एक प्रतिष्ठित सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी थे। उनका सबसे प्रसिद्ध योगदान बोर्न-ओपेनहाइमर सन्निकटन है, जो अणुओं की संरचना और गतिकी को समझने के लिए मौलिक है। उन्होंने क्वांटम यांत्रिकी, कॉस्मिक रेज, ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों के सिद्धांतों में भी महत्वपूर्ण काम किया।

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