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क्या रूस भारत की पसंद नहीं मजबूरी थी?, India Russia Relations History in Hindi, America did not support India, India Pakistan 1971 War in Hindi, 93000 Pakistani Soldiers Surrender
भारत और रूस की दोस्ती काफी पुरानी है। हालांकि बदलते समय के साथ बहुत सी चीजें बदली हैं, लेकिन फिर भी दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी विश्वास बना हुआ है। भारतीय अभी भी मानते हैं कि रूस भारत का सहयोगी और मित्र है न कि व्यापारिक भागीदार। रूस ने हमेशा मुश्किल समय में भारत का साथ दिया है। भारत-रूस मित्रता के इतिहास (India Russia Relations History) में कई अध्याय लिखे गए हैं।
एक औपनिवेशिक देश होने के नाते, भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को बनाए रखने का प्रयास किया। भारत नियमित रूप से अपने हितों और जरूरतों के आधार पर अपने सहयोगियों की समीक्षा करता है। शीत युद्ध के दौरान, भारतीय नेताओं ने गुटनिरपेक्षता की नीति तैयार की।
शीत युद्ध के दौरान, भारत सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता था। हालांकि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सोवियत संघ से प्रभावित थे और वे समाजवाद के पक्षधर थे। इसके अलावा पाकिस्तान के अमेरिका का सहयोगी बनने से भारत-रूस और भी करीब आ गए।
आर्थिक और सैन्य मोर्चों पर सोवियत की मदद ने भारत को विश्वास दिलाया कि सोवियत संघ भारत का एक मजबूत सहयोगी है। पहले सोवियत और फिर रूसी हथियारों की बिक्री के लिए भारत को एक बाजार के रूप में देखने के बजाय, भारतीयों ने इसे हमेशा एक गहरे भावनात्मक बंधन के रूप में देखा है।
रूस ने ‘गरीब भारत’ के साथ एक ऐसे रिश्ते की नींव रखी थी जो समय के साथ और मजबूत होती गयी। आजादी के बाद भारत हथियारों, तकनीक और औद्योगिक निवेश के लिए पूरी तरह से रूस पर निर्भर था। पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान भी, नई दिल्ली को मॉस्को के कूटनीतिक और सैन्य समर्थन की सख्त जरूरत थी, भारत के रक्षा बाजार में आज भी रूस नंबर वन है।
दशकों से रूस और भारत के बीच सैन्य सामग्री का व्यापार होता रहा है। पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर कई प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद रूस ने भारत को हथियारों और मिसाइल टेक्नोलॉजी की आपूर्ति जारी रखी। रूसी तकनीक और विशेषज्ञता की मदद से भारत ने एक झटके में कई पीढि़यां पार कर लीं और ब्रह्मोस आकाश जैसी मिसाइलें बनाने में कामयाब हो गया।
जब शीत युद्ध अपने चरम पर था, भारतीय नौसेना 85 प्रतिशत, भारतीय वायु सेना 75 प्रतिशत और भारतीय थल सेना 50 प्रतिशत रूसी मूल के हथियारों पर निर्भर थी। भारत के रक्षा बाजार में आज भी रूस का दबदबा कायम है।
रूस ने हमेशा मुश्किल समय में भारत का साथ दिया है। भारत ने कश्मीर और अन्य क्षेत्रीय संप्रभुता के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार भारत का समर्थन किया है। बदले में भारत ने भी अपने संबंधों को बखूबी निभाया। 1979 में जब रूस ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया, तो भारत ने रूस की आलोचना करने से इनकार कर दिया। भारत के इस कदम पर पश्चिमी देशों में हाहाकार मच गया था।
लेकिन भारत 1971 के युद्ध (India Pakistan 1971 War) में मिले समर्थन का एहसान चुका रहा था।
भारत और रूस के संबंध तब से हैं, जब पश्चिमी देशों ने भारत की बजाय पाकिस्तान को साथी चुना और हथियार देना शुरू किया था। – एस जयशंकर, भारतीय विदेश मंत्री
अक्टूबर 2022 में, जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ऑस्ट्रेलिया की दौरा कर रहे थे, तब वे ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। उस दौरान उनसे भारत और रूस के रिश्तों को लेकर सवाल किया गया था।
इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा- भारत-रूस संबंध और डिफेंस रिलेशन बहुत पुराने हैं। हमारे संबंध तब से हैं जब पश्चिमी देशों ने भारत के बजाय पाकिस्तान को हथियार सप्लाई करना शुरू किया। पश्चिमी देशों ने एक सैन्य तानाशाह (पाकिस्तान) को अपने पसंदीदा साथी के रूप में चुना और भारत को दशकों तक हथियार नहीं दिए।
यह किस्सा है 3 दिसंबर 1971 का है, जब पाकिस्तान की वायुसेना ने ऑपरेशन चंगेज खान के तहत हमारे 11 एयरबेस पर हमला किया था। जब आगरा इसकी पहुंच में आया, तो इंदिरा गांधी ने इसे युद्ध का ऐलान (India Pakistan War 1971) करार दिया और जवाबी कार्रवाई शुरू हुई।
इससे ठीक 30 दिन पहले इंदिरा जी ने रिचर्ड निक्सन से व्हाइट हाउस में मुलाकात की थी। इसके लिए निक्सन ने इंदिरा जी को निर्धारित समय से 40 मिनट अधिक इंतजार करवाया, इसके जवाब में इंदिरा जी ने भी अगले दिन उतने ही देर इंतजार करवाया।
सितंबर में रूस के साथ भारत-सोवियत संघ मैत्री समझौते (India Soviet Union Friendship Treaty) पर हस्ताक्षर करने के बाद अमेरिका गई इंदिराजी ने पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषियों के खिलाफ जनरल याह्या खान के अत्याचारों का उल्लेख किया। लेकिन निक्सन और उनके सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर इस मुद्दे को दरकिनार कर रहे थे। जब युद्ध छिड़ गया, तो अमेरिकियों ने एक खतरनाक चाल चली।
भारत-पाक युद्ध (India Pakistan 1971 War) के दौरान एक समय ऐसा भी आया था जब अमेरिका पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आया था। पाकिस्तान की मदद के लिए अमेरिका ने जापान के करीब तैनात अपनी नौसेना का सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर भेजा था।
इसके पीछे की वजह तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन और भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच संबंधों का अच्छा ना होना भी बताया जाता है। 1971 के समय अमेरिका-पाकिस्तान के संबंध काफी मजबूत माने जाते थे।
इससे पहले ही इंदिरा जी ने सेनाध्यक्ष सैम मानकशॉ को मुक्ति वाहिनी का समर्थन करने और पाकिस्तान कोई जुर्रत करता है तो उसे मुंहतोड़ जवाब देने का आदेश दिया था। हमारी सेना पश्चिमी और पूर्वी दोनों मोर्चों पर तैयार थी। इंदिराजी से मिलने से पहले भी निक्सन ने भारत और भारतीय महिलाओं के बारे में खुलकर बात की थी।
उन्होंने भारतीय महिलाओं को भद्दा और बदसूरत बताते हुए बेहद भद्दे कमेंट्स किए। अब बताते हैं ऑपरेशन चंगेज खान के तहत पाकिस्तान की नापाक साजिश के दिन हेनरी किसिंजर और निक्सन क्या कहते हैं?
रिचर्ड निक्सन- तो पश्चिमी पाकिस्तान उस क्षेत्र में कुछ ट्रबल कर रहा है
हेनरी किसिंजर- यदि वे बिना लड़ाई के आधा देश गंवा देते है, तो वे तबाह हो जाएंगे। वे वैसे भी बर्बाद हो जायेंगे लेकिन वे छोड़ेंगे नहीं, वो लड़ेंगे
रिचर्ड निक्सन- पाकिस्तान के बारे में सोचो तो दिल बैठ जाता है, हमने उस bitch (इंदिरा गांधी के संदर्भ में) को भी चेतावनी दी थी। उसे कहो, कि जब भारत कहता है कि पश्चिमी पाकिस्तान ने उस पर हमला किया है, तो यह वैसा ही है जैसे रूस कहता है कि फिनलैंड ने उस पर हमला किया है।
इस बातचीत के बाद, 3 दिसंबर को भारतीय वायुसेना और नौसेना ने पाकिस्तान पर कहर बरपाया। इसी बीच भारतीय नौसेना ने कराची पोर्ट पर दो हमले किये और बंदरगाह को नष्ट कर दिया। चौबीस घंटे के ताबड़तोड़ हमले ने पाकिस्तान को डिफेंसिव स्थिति में ला दिया था। इस बीच, 10 दिसंबर को निक्सन और किसिंजर ने फिर से बात की।
रिचर्ड निक्सन- हमें किसी भी तरह पाकिस्तान को बचाना है, यह निश्चित है।
किसिंजर- ठीक है, यह सही है। बिल्कुल सही।
रिचर्ड निक्सन- ऑल राइट। उन जहाजों को आगे बढ़ने दो।
किसिंजर- सिर्फ कैरियर्स ही नहीं हर चीज आगे बढ़ रही है। जॉर्डन के चार लड़ाकू विमान पाकिस्तान पहुंच गए हैं, अन्य 22 को भेजा जा रहा है, हम सऊदी से भी बात कर रहे हैं। तुर्की पांच लड़ाकू विमान देने को तैयार है, जब तक कोई समाधान नहीं निकल जाता, हम उन्हें आगे बढ़ाते रहेंगे।
रिचर्ड निक्सन- क्या आप चीनियों से बात कर सकते है, अगर वे चेतावनी देते हुए आर्मी मूव करें तो मदद मिलेगी।
किसिंजर- हाँ, बिल्कुल
रिचर्ड निक्सन- उन्हें बस डराना है या फिर आर्मी को आगे बढ़ाना है, क्या आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कहना चाह रहा हूँ?
किसिंजर- हाँ, बिल्कुल
रिचर्ड निक्सन- क्या फ़्रांस अभी पाकिस्तान को कुछ विमान नहीं भेज सकता?
किसिंजर- हां, वो दे रहे हैं।
रिचर्ड निक्सन- ये सबके सब इंडियंस कायर हैं, है कि नहीं?
किसिंजर- आप सही कह रहे हैं लेकिन उन्हें रूस का समर्थन है, रूस ने ईरान और तुर्की को नोट भेजा है। रूसी गड़बड़ कर रहे हैं।
अमेरिका ने पाकिस्तान को कई अत्याधुनिक हथियार दिए थे। पाकिस्तानी नौसेना की पीएनएस गाजी भी एक अत्याधुनिक अमेरिकी निर्मित पनडुब्बी थी। इसे भारत के विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत को तबाह करने के लिए भेजा गया था। हालाँकि, इसे भारतीय नौसेना ने विशाखापत्तनम के पास डुबो दिया और पाकिस्तानी नौसेना की कमर तोड़ दी।
10 दिसंबर के ही दिन हमारी खुफिया एजेंसियों ने एक अमेरिकी मैसेज को इंटरसेप्ट किया था, इससे पता चला कि अमेरिका का सातवां बेड़ा युद्ध क्षेत्र में घुसने की तैयारी कर रहा है। टोंकिन की खाड़ी में तैनात सातवें बेड़े ने 75,000 टन के परमाणु-ऊर्जा से चल रहे एयरक्राफ्ट कैरियर यूएसएस एंटरप्राइज (USS Enterprise) के साथ आगे बढ़ रहा था।
दुनिया के इस सबसे बड़े युद्धपोत पर 70 लड़ाकू विमान और बमवर्षक तैनात थे। सातवें बेड़े में गाइडेड मिसाइल कैरियर यूएसएस किंग, मिसाइल विध्वंसक यूएसएस डिकेटर, पानी और जमीन पर मार करने वाला विध्वंसक यूएसएस त्रिपोली भी शामिल थे।
भारतीय तट और अमेरिकी बेड़े के बीच हमारी नौसेना का पूर्वी बेड़ा था, जिसका नेतृत्व विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत कर रहा था, जिसमें केवल 20 लड़ाकू विमान थे। इसी बीच सोवियत खुफिया एजेंसियों ने भारत को बताया कि इंग्लैंड का विमानवाहक पोत ईगल भी भारत की ओर बढ़ रहा है।
अब समय आ गया था, इंदिरा गांधी ने फ्रेंडशिप ट्रिटी के तहत गुप्त रूप से रूस को सूचित किया कि बाहरी हमला हुआ है।
इस समझौते के मुताबिक ऐसी स्थिति में रूस को कार्रवाई करनी थी। अमेरिका और इंग्लैण्ड भारत के विरूद्ध षड़यंत्र में एक साथ थे। यह निर्णय लिया गया कि अंग्रेजी जहाज अरब सागर में भारत को निशाना बनाएगा और अमेरिकी नौसेना बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करेगी जहां दस लाख पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सेना से घिरे हुए थे।
रूसी राष्ट्रपति लियोनिद ब्रेज़नेव ने 13 दिसंबर को, परमाणु हथियारों से लैस जहाजों को व्लादिवोस्तोक से रवाना करने का आदेश दिया। इसका नेतृत्व प्रशांत महासागर में रूस के 10वें बैटल ग्रुप के कमांडर व्लादिमीर क्रुग्लाकोव ने किया था।
इस बेड़े में परमाणु पनडुब्बी के अलावा 300 किलोमीटर तक मार करने वाली टॉरपीडो और मिसाइलें भी थीं। इसीलिए रूसी बेड़े को घूमकर उनसे आगे निकलना था जिसमे वह सफल रहे। रूसी बेड़े ने अपनी मिसाइलें यूएसएस एंटरप्राइज की तरफ घुमा दीं।
इसी समय रूसियों ने ब्रिटिश नौसेना का एक मैसेज इंटरसेप्ट किया। एडमिरल डेमन गॉर्डन की आवाज़ आती है – सर, हमें बहुत देर हो गई है। रूस की परमाणु पनडुब्बियां यहां पहुंच चुकी हैं और उनके बेड़े में कई सारे जहाज भी हैं। ये सुनते ही ब्रिटिश बेड़ा मेडागास्कर की ओर भाग गया। अमेरिका के सातवें बेड़े को भी रुकने का आदेश मिला।
जनरल एके नियाजी ने 14 दिसंबर को ढाका में अमेरिकन काउंसल जनरल से कहा कि वह आत्मसमर्पण करना चाहते हैं। यह संदेश वाशिंगटन भेजा गया और फिर अमेरिका ने इसे दिल्ली भेज दिया।
हेनरी किसिंजर और निक्सन ने लियोनिद ब्रेज़नेव को फोन किया और उनसे भारत को समझाने का अनुरोध किया। ये बात सुनकर ब्रेझनेव गुस्से से लाल हो गये। प्रोफेसर व्लादिस्लाव जुबोक ने अपनी पुस्तक ए फेल्ड एम्पायर (A Failed Empire) में लिखते है कि ब्रेझनेव अमेरिकी हरकत से इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने तुरंत भारत को परमाणु हथियार बनाने के सभी रहस्य देने का फैसला किया।
16 दिसंबर 1971 को, पाकिस्तान की सहायता के लिए अमेरिका के सातवें बेड़े के बंगाल की खाड़ी में पहुंचने से पहले, पाकिस्तानी सेना ने (90,000 Solder) भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। हालाँकि, रूसी नौसेना ने सातवें बेड़े का तब तक पीछा नहीं छोड़ा, जब तक जब तक वह वापस नहीं लौट गया।
भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे युद्ध के दौरान अमेरिका समेत कई अन्य देश पाकिस्तान के समर्थन में खड़े थे। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में युद्धविराम प्रस्ताव लाकर पाकिस्तान की मदद करने की कोशिश की। हालाँकि, रूस ने इस प्रस्ताव पर वीटो करके भारत की मदद की।
1999 के कारगिल युद्ध में भी भारत को इन पश्चिमी देशों का साथ नहीं मिला था। इस युद्ध में भारत चाहता था कि अमेरिका अपने सैटेलाइट की मदद से हमें कारगिल में छिपे पाकिस्तानी सैनिकों की लोकेशन बताए, लेकिन अमेरिका ने इस मदद से भी इनकार कर दिया।
भारत ने 1971 में एक रणनीतिक जीत हासिल की, पाकिस्तान को तोड़ दिया और एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का निर्माण किया। यह लोगों की शक्ति से हासिल की गई एक प्रसिद्ध जीत थी।
सोवियत संघ, जो युद्ध के दौरान राजनीतिक और सैन्य रूप से भारतीय कार्रवाई का सक्रिय समर्थन कर रहा था, ने अमेरिकी नौसेना के बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ने पर अपनी परमाणु-सशस्त्र पनडुब्बियों और विध्वंसक जहाजों (destroyer ships) को भारत की सहायता के लिए प्रशांत महासागर से हिंद महासागर की ओर भेजा था।
16 दिसंबर, 1971 को भारतीय सशस्त्र बलों ने बांग्लादेश, जो पहले पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा था उसे आज़ाद कराने के प्रयास में पाकिस्तानी सेना को हराया। 13 दिनों तक चले इस युद्ध में 3,000 से अधिक भारतीय सैनिक मारे गए, और लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए।
27 मार्च 1971 को प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने निष्कर्ष निकाला कि लाखों शरणार्थियों को लेने के बजाय, पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध करना किफायती था, और उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपनी सरकार का पूर्ण समर्थन व्यक्त किया।
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान यूएसएसआर ने भारत का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दूसरी ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका ने उस समय पाकिस्तान का समर्थन किया था और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी का विरोध किया था।
उत्तर: विशेष रूप से, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था, जब पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने अपने हथियार डाल दिए और एक नए राष्ट्र बांग्लादेश को जन्म दिया।