क्या भारत कोहिनूर वापस ला सकता है? Can India Bring Kohinoor Back

Can India Bring Kohinoor Back in Hindi
Can India Bring Kohinoor Back in Hindi

Can India Bring Kohinoor Back, क्या भारत कोहिनूर वापस ला सकता है?, Coordinating with Diplomatic, Story of Kohinoor diamond in Hindi (दुनिया के सबसे मशहूर कोहिनूर हीरे की कहानी)

Table of Contents

शनिवार 6 मई 2023 को लंदन के वेस्टमिंस्टर एब्बे में किंग चार्ल्स को 1.06 किलोग्राम का इंपीरियल स्टेट पहनाया गया। जिसमें 2 हजार 868 हीरे, 17 नीलम, 11 एमरल्ड, 269 मोती और 4 माणिक जड़े हुए हैं। लेकिन किंग चार्ल्स के राज्याभिषेक के समय, रानी कैमिला के मुकुट में कलिनन II हीरा था, जो कलिनन हीरे का दूसरा सबसे बड़ा टुकड़ा था, जो दुनिया का सबसे बड़ा हीरा है। इसने कोहिनूर की जगह ली है।

ब्रिटिश मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार ब्रिटेन के संग्रहालयों में रखे कोहिनूर हीरे और अन्य मूर्तियों सहित भारत के औपनिवेशिक युग की कलाकृतियों को वापस लाने के लिए एक प्रत्यावर्तन अभियान शुरू करने की योजना बना रही है। सरकार ने कहा कि इसके लिए ठोस प्रयास चल रहे हैं।

द डेली टेलीग्राफ‘ अखबार ने दावा किया है कि यह मुद्दा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है। ऐसे में भारत और ब्रिटेन के बीच कूटनीतिक और व्यापारिक चर्चा में यह मुद्दा उठने की संभावना है। मिली जानकारी के अनुसार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) आजादी के बाद देश से तस्करी की गई वस्तुओं की बरामदगी के प्रयास कर रहा है।

Coordinating with Diplomatic | राजनयिक के साथ समन्वय

माना जाता है कि नई दिल्ली में अधिकारी जब्त की गई कलाकृतियों को लेकर लंदन में राजनयिकों के साथ समन्वय कर रहे हैं ताकि उन संस्थानों से औपचारिक अनुरोध किया जा सके जिन्होंने कलाकृतियों को जब्त कर लिया था या उन्हें ‘औपनिवेशिक शासन के दौरान युद्ध की लूट’ के रूप में एकत्र किया था।

भारत की कलाकृतियों को वापस लाने के इस प्रयास का जोर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत प्रतिबद्धता से आता है, जिन्होंने इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, संस्कृति मंत्रालय की एक शाखा, आजादी के बाद से देश से तस्करी की गई वस्तुओं को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों का नेतृत्व कर रही है। दक्षिण भारत के एक मंदिर से ली गई कांस्य मूर्ति के बारे में ऑक्सफोर्ड के एशमोलियन संग्रहालय से पहले ही संपर्क किया गया है।

नई दिल्ली में प्राधिकरण ब्रिटिश शासन के दौरान ली गई कलाकृतियों को वापस करने के लिए एक अलग अभियान का समन्वय करेंगे, जो सूत्रों का दावा है कि प्रभावी रूप से चोरी हो गए थे क्योंकि उन्हें “औपनिवेशिक दबाव” की शर्तों के तहत “अनैतिक रूप से” हटा दिया गया था। लंदन में राजनयिक उन संस्थानों से औपचारिक अनुरोध करेंगे जो युद्ध में लूटी गई या औपनिवेशिक शासन के दौरान उत्साही लोगों द्वारा एकत्र की गई कलाकृतियों को रखते हैं। यह प्रक्रिया इसी साल शुरू हो जाएगी।

ब्रिटिश संग्रहालय को हिंदू मूर्तियों और अमरावती मार्बल्स के अपने संग्रह पर दावों का सामना करना पड़ेगा, जो कि सिविल सेवक सर वाल्टर इलियट द्वारा बौद्ध स्तूप से लिए गए थे, अंडरफायर संग्रहालय (Under Fire Museum) के लिए एक और प्रत्यावर्तन पंक्ति खोल रही है। विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय (Victoria and Albert Museum) का भारतीय संग्रह भी दावे के अधीन होगा।

Story of Kohinoor diamond in Hindi

अब तक 251 कलाकृतियों को भारत वापस लाया जा चुका है।

नई दिल्ली में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश के बाहर से कलाकृतियों को वापस लाने के लिए ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। ASI के प्रवक्ता वसंत स्वर्णकार ने कहा- आजादी के बाद से अब तक 251 कलाकृतियां भारत वापस लाई जा चुकी हैं। उन्होंने कहा- इसके अलावा ब्रिटेन और अमेरिका समेत अन्य देशों से करीब 100 कलाकृतियों को वापस लाने की प्रक्रिया चल रही है।

Can India Bring Kohinoor Back | क्या भारत कोहिनूर वापस ला सकता है?

सर्वोच्च न्यायालय, अखिल भारतीय मानवाधिकार और सामाजिक न्याय मोर्चा द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें यूके के उच्चायुक्त को हीरे के अलावा कई अन्य खजानों की वापसी के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कोहिनूर की वापसी की मांग पर केंद्र सरकार से सवाल किया।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह ब्रिटेन को प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भारत को वापस करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती क्योंकि इसे न तो चोरी किया गया और न ही जबरन ले जाया गया बल्कि महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारियों द्वारा अंग्रेजों को उपहार में दिया गया था।

Story of Kohinoor diamond in Hindi | दुनिया के सबसे मशहूर कोहिनूर हीरे की कहानी

जानकारी के अनुसार बाबर की आत्मकथा में पहली बार इस हीरे का उल्लेख मिलता है। बाबर का कहना है कि यह उसके पुत्र ने उसे उपहार के रूप में दिया था। बाबरनामा में लिखा है कि पानीपत के युद्ध में सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराने के बाद, हुमायूँ ने आगरा किले की सारी संपत्ति पर अधिकार कर लिया।

औरंगजेब ने चमक बढ़ाने के लिए कोहिनूर एक जौहरी को दे दिया

जब शाहजहाँ ने अपने लिए बनवाए गए एक विशेष सिंहासन को प्राप्त किया, तो वह सोने और कई गहनों से मढ़ा हुआ था। उस सिंहासन को तख्त-ए-मुर्सा कहा जाता था, जिसे बाद में मयूर सिंहासन का नाम दिया गया। इस मयूर सिंहासन पर बाबर का हीरा लगा हुआ था। यह इतना प्रसिद्ध हुआ कि दुनिया भर के जौहरी इसे देखने के लिए आने लगे। उन जौहरियों में से एक वेनिस का हॉर्टेंसो बोर्गिया था। औरंगजेब ने कोहिनूर की चमक बढ़ाने के लिए इसे हॉर्टेंसो बोर्गिया को दे दिया था।

जौहरी ने उसके टुकड़े कर दिये

वेनिस के जौहरी ने हीरा ले लिया लेकिन जैसा औरंगजेब ने सोचा था ऐसा नहीं हुआ। होर्टेन्सो बोर्गिया ने कोहिनूर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जिसके कारण कोहिनूर 739 कैरेट की जगह 186 कैरेट ही रह गया।

मुर्गी के अंडे के आकार का हीरा

कहा जाता है कि कोहिनूर को तुर्कों ने एक दक्षिण भारतीय मंदिर में एक मूर्ति की आँख से निकाला था। ‘कोहिनूर द स्टोरी ऑफ़ द बर्ड्स मोस्ट इनफ़ेमस डायमंड नामक पुस्तक के लेखक विलियम डेलरिम्पल कहते हैं, “कोहिनूर का पहला आधिकारिक उल्लेख फारसी इतिहासकार मुहम्मद मरावी ने 1750 में नादिर शाह के भारत के अपने वर्णन में किया है। मरावी लिखते हैं कि उन्होंने कोहिनूर को अपनी आँखों से देखा था।

उस समय यह तख्त-ताऊस के ऊपरी भाग में जड़ा हुआ था, जिसे नादिर शाह दिल्ली से लूटकर ईरान ले गया था। कोहिनूर छोटे मुर्गी के एक अंडे के आकार का था और कहा जाता था कि अगर इसे बेच दिया तो पूरी दुनिया के लोगों को ढाई दिन तक खाना खिलाया जा सकता है। ताजमहल से दोगुना खर्च तख्त-ताऊस को बनाने में आया। नादिर शाह कोहिनूर को अपने हाथ में बांध सके, इसलिए बाद में इसे तख्त-ताऊस से हटा दिया गया।

नादिरशाह ने दिल्ली में कराया कत्लेआम

नादिरशाह ने मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगिले की दस लाख लोगों की सेना को करनाल के पास अपने 1.5 लाख सैनिकों की बदौलत हरा दिया था। दिल्ली पहुँचकर नादिरशाह ने ऐसा नरसंहार किया जिसकी मिसाल इतिहास में कम ही मिलती है।

प्रसिद्ध इतिहासकार सर एचएम एलियट और जॉन डावसन ने अपनी किताब ‘द हिस्ट्री ऑफ इंडिया एज़ टोल्ड बाई इट्स ओन हिस्टोरियंस’ में लिखा है, ‘जैसे ही नादिर शाह के 40,000 सैनिक दिल्ली में दाखिल हुए, खाने की कीमतें आसमान छू गईं। जब नादिर शाह के सैनिकों ने मोलभाव करने की कोशिश की, तो उनके और दुकानदारों के बीच झड़पें हुईं और लोगों ने सैनिकों पर हमला करना शुरू कर दिया।

दोपहर तक नौ सौ फ़ारसी सैनिक मारे जा चुके थे। क्रोधित होकर, नादिर शाह ने दिल्ली की आबादी के नरसंहार का आदेश दिया, जो सुबह नौ बजे शुरू हुआ। ज्यादातर लोग लाल किला, जामा मस्जिद, दरीबा और चांदनी चौक के आसपास मारे गए। इस नरसंहार में कुल तीस हजार लोग मारे गए थे।

एक और इतिहासकार विलेम फ्लोर ने अपनी किताब ‘न्य फ़ैक्ट्स ऑफ़ नादेर शाज़ इंडिया कैम्पेन’ में लिखा है, ‘मोहम्मद शाह का सेनापति निजामुल मुल्क बिना पगड़ी के नादिर शाह के सामने गया। उनके दोनों हाथ पीछे की तरफ उन्ही के पगड़ी से बंधे हुए थे। उन्होंने उनके सामने घुटने टेक दिए और कहा कि दिल्ली की जनता से बदला लेने के बजाय उनसे बदला लेना चाहिए।

नादिर शाह ने नरसंहार को इसी शर्त पर रोक दिया की, उसके दिल्ली छोड़ने से पहले उसे एक सौ करोड़ रुपये देने होंगे। अगले कुछ दिनों में, निज़ामुल मुल्क ने अपनी ही राजधानी को लूटकर पैसे का भुगतान किया। संक्षेप में, एक ही क्षण में 348 वर्षों तक मुगलों द्वारा संचित धन का मालिक कोई दुसरा हो गया।

नादिर शाह की पगड़ी बदलना और कोहिनूर को हथियाना

कोहिनूर के इतिहास का पता लगाने के लिए विलियम डॉलरेम्पल और अनीता आनंद ने कड़ी मेहनत की है। डॉलरेम्पल का कहना है, “मैंने मुगल रत्नों पर विशेषज्ञों से बात करके अपना शोध शुरू किया। उनमें से ज्यादातर लोगों का कहना है, कि कोहिनूर के इतिहास के बारे में आम कहानियां सही नहीं हैं। पहली बार नादिर शाह के पास जाने के बाद ही लोगों का ध्यान कोहिनूर की ओर गया।

थियो मेटकाफ लिखते हैं कि एक दरबारी नर्तकी नूर बाई ने नादिर शाह को सूचित किया कि मोहम्मद शाह ने अपनी पगड़ी में कोहिनूर को छिपा रखा है। यह सुनकर नादिरशाह ने मोहम्मद शाह से कहा कि दोस्ती की खातिर हम अपनी पगड़ी बदल लें। इस तरह कोहिनूर नादिर शाह के हाथ में आ गया। जब उसने कोहिनूर को पहली बार देखा तो देखता ही रह गया। उसी ने इसका नाम कोहिनूर रखा।

फारसी इतिहासकार मोहम्मद काजिम मारवी ने अपनी पुस्तक ‘आलम आरा-ए-नादरी’ में दिल्ली की लूट को अफगानिस्तान ले जाने के विषय में बड़ा ही रोचक कथन लिखा है। मारवी लिखते हैं, 57 दिनों तक दिल्ली में रहने के बाद 16 मई 1739 को नादिरशाह अपने देश के लिए रवाना हुआ। वह अपने साथ मुगलों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी जमा की गई सारी दौलत ले गया। उसकी सबसे बड़ी लूट तख्त-ताऊस थी जिसमें कोहिनूर और तैमूर के माणिक जड़े हुए थे।

लूटा गया सारा खजाना 700 हाथियों, 400 ऊँटों और 17000 घोड़ों पर लादकर ईरान भेजा गया। जब पूरी फौज चिनाब पुल के ऊपर से गुजरी तो हर जवान की तलाशी ली गई। कई सैनिकों ने जब्ती के डर से हीरे-जवाहरात जमीन में गाड़ दिए। कुछ ने उन्हें इस उम्मीद में नदी में फेंक दिया कि वे बाद में आएंगे और उन्हें नदी के किनारे से उठाकर वापस ले जाएंगे।

कोहिनूर 1813 में महाराजा रणजीत सिंह के पास पहुंचा

कोहिनूर नादिर शाह के पास अधिक समय तक नहीं रह सका। उसकी हत्या के बाद हीरा उसके अफगान अंगरक्षक अहमद शाह अब्दाली के पास आया और कई हाथों से गुजरते हुए 1813 में महाराजा रणजीत सिंह के पास पहुंचा।

‘महाराजा रणजीत सिंह दीवाली, दशहरा और अन्य बड़े त्योहारों के अवसर पर कोहिनूर को अपनी बांह पर बांध कर निकलते देते थे। जब भी कोई ब्रिटिश अधिकारी उनके दरबार में आता था तो यह हीरा उन्हें विशेष रूप से दिखाया जाता था। जब भी वह मुल्तान, पेशावर या अन्य शहरों के दौरे पर जाते थे तो कोहिनूर उनके साथ जाता था।

एंग्लो-सिख लड़ाई के बाद कोहिनूर अंग्रेज़ो के हाथ लगा

1839 में रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई। सत्ता संघर्ष के बाद, 1843 में पांच वर्षीय दलीप सिंह को पंजाब का राजा बनाया गया। लेकिन दूसरे एंग्लो-सिख युद्ध में अंग्रेजों की जीत के बाद, उनके साम्राज्य और कोहिनूर को अंग्रेजों ने अपने कब्जे में ले लिया। दलीप सिंह को उनकी माँ से अलग कर दिया गया और एक अंग्रेज दंपती के साथ रहने के लिए फतेहगढ़ किले में भेज दिया गया।

लार्ड डलहौजी स्वयं कोहिनूर लेने लाहौर आया था। वहां के तोशखाने से हीरा निकालकर डलहौजी के हाथ में रख दिया। उस वक्त इसका वजन 190.3 कैरेट था। लॉर्ड डलहौजी ने कोहिनूर को ‘मेडिया’ जहाज पर रानी विक्टोरिया के पास भेजने का फैसला किया। रास्ते में उस जहाज को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

Kohinoor Mountain of Light

मुसीबतों में फंसा कोहिनूर ले जाने वाला जहाज़

‘कोहिनूर द स्टोरी ऑफ वर्ल्ड्स मोस्ट फेमस डायमंड’ की सह-लेखिका अनीता आनंद कहती हैं, ‘जब कोहिनूर को जहाज पर रखा गया तो जहाज के चालक दल को यह भी नहीं बताया गया कि वे अपने साथ क्या लेकर जा रहे हैं। मेडिया नाम के इस जहाज के इंग्लैंड रवाना होने के बाद एक या दो सप्ताह तक कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन फिर कुछ लोग बीमार हो गए और जहाज पर हैजा फैल गया।

जहाज के कप्तान ने चालक दल से कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि मॉरीशस आ जाएगा, वहां हमें दवा और खाना मिलेगा और सब ठीक हो जाएगा। लेकिन जब जहाज मॉरीशस पहुंचने वाला था, तो लोगों के बीमार होने की खबर मॉरीशस के लोगों तक पहुंची और उन्होंने धमकी दी कि यदि जहाज उनके तट तक पहुँचा तो वे उसे तोप से उड़ा देंगे।

हैजे की बीमारी के प्रकोप से बड़ी परेशानी में फंसे चालक दल बार-बार समझाते रहे कि किसी तरह इंग्लैण्ड पहुंचें। लेकिन रास्ते में, उन्हें एक बड़े समुद्री तूफान का भी सामना करना पड़ा जिसने जहाज को लगभग दो भागों में तोड़ दिया। जब वह इंग्लैंड पहुंचा तो उसे पता चला कि वह अपने साथ कोहिनूर ला रहा है और शायद इसी वजह से उसे कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

लंदन में कोहिनूर का अभूतपूर्व स्वागत हुआ

जब कोहिनूर लंदन पहुंचा तो इसे क्रिस्टल पैलेस में ब्रिटिश जनता के सामने प्रदर्शित किया गया। विलियम डेलरेम्पेल कहते हैं, ‘कोहिनूर को ब्रिटेन ले जाने के तीन साल बाद वहां इसकी प्रदर्शनी लगाई गई थी। ‘द टाइम्स’ ने लिखा कि लंदन में लोगों का इतना बड़ा जमावड़ा इससे पहले कभी नहीं देखा गया था।

जब प्रदर्शनी शुरू हुई तो लगातार बूंदाबांदी हो रही थी। प्रदर्शनी गेट पर पहुंचते ही लोगों को अंदर जाने के लिए घंटों कतार में लगना पड़ा। हीरा पूर्व में ब्रिटिश शासन की शक्ति का प्रतीक बन गया और ब्रिटेन की सैन्य शक्ति के बढ़ते प्रभाव का भी प्रतिनिधित्व करता था।

दलीप सिंह ने महारानी विक्टोरिया को कोहिनूर भेंट किया

इस बीच फतेहगढ़ किले में रहने वाले महाराजा दलीप सिंह ने लंदन जाकर महारानी विक्टोरिया से मिलने की इच्छा जताई और रानी भी इसके लिए तैयार हो गई। वहीं, दलीप सिंह ने महारानी विक्टोरिया के पास रखा कोहिनूर हीरा उन्हें भेंट किया। अनीता आनंद बताती हैं, ‘क्वीन विक्टोरिया को हमेशा इस बात का बुरा लगता था कि उनकी हुकूमत ने एक बच्चे के साथ क्या किया।

वह दिलीप सिंह को दिल से प्यार करती थी, इसलिए जिस तरह से उनके साथ व्यवहार किया गया, उसके लिए उसे दुःख था। हालांकि दो साल पहले ही कोहिनूर उनके पास पहुंच गया था, लेकिन उन्होंने अभी तक इसे सार्वजनिक तौर पर नहीं पहना था। वह सोचती थी कि अगर दलीप ने इसे देखा तो वह उसके बारे में क्या सोचेगा।

उस समय फ्रांज़ ज़ेवर विंटरहेल्टर प्रसिद्ध चित्रकार हुआ करते थे। रानी ने उनसे दलीप सिंह का एक चित्र बनाने को कहा जिसे वह अपने महल में लगाना चाहती थीं। जब दिलीप सिंह बकिंघम पैलेस के व्हाइट ड्राइंग रूम में मंच पर खड़े होकर अपना चित्र बनवा रहे थे, तब रानी ने एक सिपाही को बुलाकर एक बक्सा लाने को कहा, जिसमें कोहिनूर रखा था।

उन्होंने दलीप सिंह से कहा कि मैं आपको कुछ दिखाना चाहती हूं। कोहिनूर को देखते ही दलीपसिंह ने उसे अपने हाथों में ले लिया। उन्होंने उसे खिड़की के पास ले जाकर सूरज की रोशनी में देखा। तब तक उस कोहिनूर का चेहरा बदल कर काट दिया गया था।

ये अब वह कोहिनूर नहीं रह गया था जिसे दलीप सिंह तब पहनते थे जब वे पंजाब के महाराजा थे। कुछ देर कोहिनूर को देखने के बाद दलीप सिंह ने महारानी से कहा, “यह मेरे लिए बड़े सम्मान की बात है कि मैं आपको यह हीरा भेंट करता हूं।” विक्टोरिया ने वह हीरा उससे ले लिया और उसे मरते दम तक लगातार पहनती रही।

अपनी मां से मिलने भारत पहुंचे दलीप सिंह

विक्टोरिया से बेहद लगाव होने के बावजूद कुछ साल बाद दिलीप सिंह ने भारत जाकर अपनी सगी मां जिंदन कौर से मिलने की इच्छा जताई। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें भारत जाने की अनुमति दे दी। उनकी माँ जिंदन कौर तब नेपाल में रह रही थीं। उन्हें अपने बेटे से मिलने के लिए कलकत्ता लाया गया।

अनीता आनंद कहती हैं, ‘दिलीप सिंह वहां पहले ही पहुंच गए थे। रानी जिंदन कौर को उनके सामने लाया गया। जिंदन ने कहा कि अब वह उनका साथ कभी नहीं छोड़ेगी। वह जहां भी जाएगा, वह उसके साथ जाएगी। तब तक जिंदन की आंखों की रोशनी चली गई थी। उन्होंने दलीप सिंह के सिर पर हाथ फेरा तो वह चौंक गयी कि उन्होंने अपने बाल कटवा लिए हैं। वह बहुत दुखी होकर चिल्लाई।

उसी समय कुछ सिख सैनिक ओपियम वार में भाग लेकर चीन से लौट रहे थे। यह जानने पर कि जिंदन कलकत्ता पहुँच चुकी है, वह स्पेंस होटल के बाहर पहुँचे जहाँ जिंदन अपने बेटे दलीप से मिल रही थी। वे जोर-जोर से नारे लगाने लगे, ‘बोले सो निहाल सत श्री अकाल’ इससे घबराए अंग्रेजों ने मां-बेटे दोनों को जहाज पर बिठाकर इंग्लैंड भेज दिया।

रानी विक्टोरिया से दलीप सिंह का दिल पसीज गया

धीरे-धीरे दलीप सिंह महारानी विक्टोरिया के खिलाफ हो गए। उन्हें लगा कि उसने उनके साथ अन्याय किया है। यह बात भी उनके मन में घर कर गई कि वह अपने पुराने साम्राज्य को फिर से जीत लेंगे। वह भारत के लिए रवाना भी हुए लेकिन अदन से आगे नहीं जा सके।

उन्हें और उनके परिवार को 21 अप्रैल 1886 को, पोर्टसाइड में गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में उन्हें छोड़ दिया गया लेकिन उनसे सब कुछ छीन लिया गया। 21 अक्टूबर, 1893 को उनका शव पेरिस के एक बेहद मामूली होटल में मिला था। उस वक्त उनके साथ उनके परिवार का कोई भी सदस्य मौजूद नहीं था। इसके साथ ही महाराजा रणजीत सिंह का वंश हमेशा के लिए ख़त्म हो गया।

कोहिनूर टावर ऑफ़ लंदन में मौजूद

महारानी विक्टोरिया के बाद उनके पुत्र महाराजा एडवर्ड सप्तम ने कोहिनूर को अपने मुकुट में नहीं रखा। लेकिन कोहिनूर ने उनकी पत्नी रानी एलेक्जेंड्रा के ताज में अपना स्थान बना लिया।

कोहिनूर को लेकर एक अंधविश्वास फैला हुआ था कि जो भी पुरुष इसे हाथ लगाएगा, ये उसे नष्ट कर देगा। लेकिन महिलाओं को इसे पहनने में कोई परेशानी नहीं हुई।

बाद में भावी किंग जॉर्ज पंचम की पत्नी राजकुमारी मैरी ने भी इसे अपने ताज के बीच में पहना था। लेकिन इसके बाद महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने कोहिनूर को अपने ताज में जगह नहीं दी। दुनिया का यह सबसे मशहूर हीरा आजकल लंदन के टावर के ज्वेल हाउस में रखा हुआ है।

कोहिनूर का असली मालिक कौन है?

कोहिनूर अब ब्रिटिश सम्राट का हिस्सा है। यह वर्तमान में लंदन के टॉवर में ज्वेल हाउस में सार्वजनिक प्रदर्शन पर है, जिसे प्रतिदिन लाखों आगंतुक देखते हैं। 1849 में अंग्रेजों द्वारा पंजाब पर कब्जा करने के बाद कोहिनूर हीरा महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया था।

कोहिनूर हीरे की कीमत कितनी है?

भले ही कोहिनूर हीरे का मूल्य ज्ञात न हो, यह क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है, और क्राउन ज्वेल्स का पूरा मूल्य 10 से 12 बिलियन डॉलर के बीच है। कोहिनूर निश्चित रूप से संग्रह के सबसे महंगे हीरों में से एक है।

कोहिनूर हीरे का नाम किसने रखा?

कोहिनूर हीरा या कोह-ए-नूर हीरे के रूप में भी जाना जाता है, इसे फारसी शासक द्वारा नाम दिया गया था। जब उन्होंने हीरे को देखा, तो उन्होंने इसे कोह-ए-नूर, या “प्रकाश का पर्वत” बताया। शुरुआत में भारत में खोजा गया हीरा अपने इतिहास के दौरान कई हाथों से गुजरा है।

कोहिनूर इतना महंगा क्यों है?

कोहिनूर हीरा दुनिया में सबसे मूल्यवान हीरे के रूप में गिना जाता है, और यह बहुत दुर्लभ पाया जाता है। फिर भी, हीरा खनिकों को कोहिनूर हिरे की एक प्रति नहीं मिल रही है। यही कारण है कि दुनिया भर में कोहिनूर सबसे मूल्यवान हीरा है।

कोहिनूर हीरा सबसे पहले किसने चुराया था?

हीरे का पहला सत्यापन योग्य रिकॉर्ड मुहम्मद काज़िम मारवी के 1740 के दशक में उत्तरी भारत पर नादिर शाह के आक्रमण के इतिहास से आता है। मारवी ने नोट किया कि कोह-ए-नूर मुगल मयूर सिंहासन पर कई पत्थरों में से एक है जिसे नादिर शाह ने दिल्ली से लूटा था।

Deepak Devrukhkar
Deepak Devrukhkar

मेरा नाम दिपक देवरुखकर हैं, और मैं मुंबई, महाराष्ट्र में रहता हूँ। मैंने Commercial Art में डिप्लोमा किया है। मैं GK, भारतीय इतिहास आदि विषयों पर ज्ञान प्रयास के लिए लिखता हूँ।

Articles: 35

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *