भारत-रूस संबंध का इतिहास: 1971 युद्ध में कैसे बचाया था रूस ने भारत को? India Russia Relations History

भारत रूस संबंध का इतिहास - India Russia Relations History
भारत रूस संबंध का इतिहास – India Russia Relations History

भारत और रूस की दोस्ती केवल कूटनीति या व्यापार का समीकरण नहीं है। यह भावनात्मक बंधनअटूट विश्वास और जीवन-मरण के संकट में खरे उतरने का इतिहास है। चाहे औपनिवेशिक काल के बाद का संघर्ष हो या पाकिस्तान के साथ युद्ध के वो नाजुक पल, रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) ने हमेशा भारत का साथ दिया है। भारतीय आज भी रूस को एक विश्वसनीय सहयोगी और सच्चा मित्र मानते हैं, न कि महज एक व्यापारिक भागीदार। आइए, इस अद्भुत मित्रता के इतिहास (India Russia Relations History) के हर पन्ने को विस्तार से समझते हैं।

भारत रूस संबंध का इतिहास: विश्वास की बुनियाद

  • औपनिवेशिक विरासत और स्वतंत्र नीति: एक नव-स्वतंत्र राष्ट्र होने के नाते, भारत ने “गुटनिरपेक्षता” की नीति अपनाई। इसका मतलब था किसी भी शक्ति गुट में शामिल हुए बिना अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर विदेश नीति बनाना। यही वजह है कि भारत ने शीत युद्ध के दौरान भी अमेरिका और सोवियत संघ दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने की कोशिश की।
  • नेहरू और समाजवादी झुकाव: भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू सोवियत संघ के विकास मॉडल और समाजवादी विचारधारा से काफी प्रभावित थे। यह आकर्षण भारत-सोवियत संबंधों को गहरा करने में एक महत्वपूर्ण कारक बना।
  • पाकिस्तान का अमेरिकी गठबंधन: भारत-रूस दोस्ती को मजबूती देने में पाकिस्तान की भूमिका अहम थी। पाकिस्तान का अमेरिका के साथ सैन्य गठबंधन (सीएटीओ और सेंटो) ने स्वाभाविक रूप से भारत को सोवियत संघ के करीब ला दिया। भारत को अपनी सुरक्षा के लिए एक विश्वसनीय सहयोगी की जरूरत थी।

आर्थिक और सैन्य सहयोग: विश्वास की मजबूत दीवारें

  • विकासशील भारत का सहारा: स्वतंत्रता के बाद भारत को हथियारोंउन्नत तकनीक और औद्योगिक निवेश की सख्त जरूरत थी। पश्चिमी देशों की अनिच्छा या शर्तों के कारण, भारत पूरी तरह से सोवियत संघ पर निर्भर हो गया। सोवियत संघ ने इस “गरीब भारत” के साथ एक ऐसे रिश्ते की नींव रखी जो समय के साथ और मजबूत होता गया।
  • सैन्य सहयोग की रीढ़: सोवियत संघ, और बाद में रूस, भारत का प्राथमिक सैन्य आपूर्तिकर्ता बना रहा। शीत युद्ध के चरम पर:
    • भारतीय नौसेना: 85% से अधिक उपकरण सोवियत मूल के।
    • भारतीय वायु सेना: 75% से अधिक विमान और हथियार सोवियत मूल के।
    • भारतीय थल सेना: 50% से अधिक सैन्य साजो-सामान सोवियत मूल के।
  • प्रतिबंधों के बीच विश्वासघात नहीं: पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर लगाए गए कई प्रतिबंधों (जैसे परमाणु परीक्षणों के बाद) के बावजूद, रूस ने हथियारों की आपूर्ति और मिसाइल प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण को जारी रखा। यह रूस की विश्वसनीयता को साबित करता था।
  • तकनीकी उन्नयन और स्वदेशीकरण: रूसी सहयोग से ही भारत ने तकनीकी छलांग लगाई। रूसी तकनीक और विशेषज्ञता के सहारे भारत ने एक झटके में कई पीढ़ियां पार कर लीं। इस सहयोग का जीवंत उदाहरण है ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और आकाश मिसाइल प्रणाली जैसी उन्नत हथियार प्रणालियों का विकास।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अडिग समर्थन: कूटनीति में पीठ थपथपाना

  • कश्मीर और संप्रभुता: रूस ने संयुक्त राष्ट्र सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे सहित भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता और अखंडता के प्रश्नों पर लगातार मजबूत समर्थन जताया है। यह समर्थन भारत की कूटनीतिक लड़ाई में अहम रहा है।
  • 1979 का अफगानिस्तान संकट: जब सोवियत संघ ने 1979 में अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप किया, तो पूरी पश्चिमी दुनिया इसकी आलोचना कर रही थी। ऐसे में, भारत ने रूस की खुलकर आलोचना करने से इनकार कर दिया। यह फैसला पश्चिम में हलचल मचा गया, लेकिन भारत अपने उस दोस्त के प्रति वफादार था जिसने 1971 में उसकी जीवनरक्षा की थी।

1971 का युद्ध: जहां भारत-रूस मित्रता ने इतिहास रचा (India Pakistan 1971 War)

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध (India Pakistan War 1971) न केवल बांग्लादेश के जन्म की कहानी है, बल्कि भारत-रूस मित्रता की अमिट गाथा भी है। यह वह क्षण था जब रूसी समर्थन ने सचमुच भारत की जीत और संप्रभुता को सुनिश्चित किया।

  • पृष्ठभूमि: पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना द्वारा बंगाली आबादी पर किए जा रहे अत्याचारों के विरोध में भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अक्टूबर 1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से वाशिंगटन में मिलीं। इस मुलाकात में निक्सन ने जानबूझकर इंदिरा गांधी को प्रतीक्षा करवाई, और अगले दिन इंदिरा गांधी ने भी उन्हें उतनी ही देर इंतजार कराया। निक्सन और उनके सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने मानवीय संकट को नजरअंदाज कर दिया।
  • सोवियत संघ के साथ मैत्री संधि (India Soviet Union Friendship Treaty): इसी बीच, भारत ने सितंबर 1971 में ही सोवियत संघ के साथ एक ऐतिहासिक “मैत्री, सहयोग और आपसी सहायता संधि” पर हस्ताक्षर कर लिए थे। इस संधि का अनुच्छेद 9 कहता था कि यदि किसी पक्ष पर “हमला” होता है, तो दोनों देश “पारस्परिक परामर्श” करके “उस खतरे को दूर करने के लिए प्रभावी उपाय करेंगे”। यह संधि युद्ध के दौरान भारत के लिए जीवनरेखा साबित हुई।
  • युद्ध का आरंभ: 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी वायुसेना ने ऑपरेशन चेंगीज खान के तहत भारत के पश्चिमी हवाई अड्डों पर हमला कर दिया। इंदिरा गांधी ने इसे युद्ध की घोषणा मानते हुए तुरंत जवाबी कार्रवाई शुरू करने का आदेश दिया।
  • अमेरिका का पाकिस्तान समर्थन: निक्सन और किसिंजर पाकिस्तान के प्रति कट्टर समर्थक थे। युद्ध छिड़ते ही अमेरिका ने पाकिस्तान की सैन्य मदद शुरू कर दी। सबसे खतरनाक कदम था अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े को बंगाल की खाड़ी में भेजना। इस बेड़े का नेतृत्व यूएसएस एंटरप्राइज कर रहा था – एक 75,000 टन का परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत, जिस पर 70 लड़ाकू विमान और बमवर्षक तैनात थे। साथ में थे गाइडेड मिसाइल क्रूजर यूएसएस किंगमिसाइल विध्वंसक यूएसएस डिकेटर, और हैलीकॉप्टर वाहक यूएसएस त्रिपोली। इसका स्पष्ट उद्देश्य भारत को डराना और पूर्वी मोर्चे पर घिरे पाकिस्तानी सैनिकों को राहत दिलाना था। निक्सन और किसिंजर के बीच गोपनीय बातचीत के रिकॉर्ड्स से उनकी भारत-विरोधी और इंदिरा गांधी के प्रति अश्लील टिप्पणियाँ सामने आई हैं।
  • भारत की कमजोर स्थिति: भारतीय नौसेना का पूर्वी बेड़ा, जिसका नेतृत्व आईएनएस विक्रांत (जिस पर केवल 20 लड़ाकू विमान थे) कर रहा था, सीधे तौर पर विशाल अमेरिकी सातवें बेड़े के सामने था। साथ ही, खुफिया सूचनाओं से पता चला कि ब्रिटेन का विमानवाहक पोत ईगल भी अरब सागर से भारत की ओर बढ़ रहा था। भारत गंभीर नौसैनिक खतरे का सामना कर रहा था।
आईएनएस विक्रांत - INS Vikrant aircraft carrier used in 1971 Indo-Pak war
आईएनएस विक्रांत – INS Vikrant aircraft carrier used in 1971 Indo-Pak war

  • रूस का निर्णायक हस्तक्षेप: इस गंभीर संकट के समय, इंदिरा गांधी ने मैत्री संधि के प्रावधानों का हवाला देते हुए सोवियत संघ को सूचित किया कि भारत पर एक “बाहरी हमला” होने वाला है। सोवियत नेता लीओनिद ब्रेझनेव ने तुरंत कार्रवाई की। 13 दिसंबर 1971 को उन्होंने व्लादिवोस्टोक से परमाणु हथियारों से लैस जहाजों और पनडुब्बियों सहित प्रशांत बेड़े के दसवें ऑपरेशनल स्क्वाड्रन को बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना करने का आदेश दिया। इस बेड़े का नेतृत्व एडमिरल व्लादिमीर क्रुग्ल्याकोव कर रहे थे। इसमें शामिल थीं:
    • परमाणु शक्ति से चलने वाली पनडुब्बियाँ।
    • 300 किमी तक मार करने वाली टॉरपीडो और मिसाइलें
  • रूसी जहाजों की कार्रवाई: रूसी बेड़े ने तेजी से यात्रा की और सातवें बेड़े को रोकने के लिए अपने मार्ग में आ गया। रूसी युद्धपोतों ने अपनी मिसाइलों और टॉरपीडो को सीधे यूएसएस एंटरप्राइज की ओर तान दिया, लड़ाई के लिए पूरी तरह तैयार। उन्होंने अमेरिकी बेड़े को स्पष्ट संकेत दिया कि भारत पर किसी भी हमले को वह अपने ऊपर हमला मानेंगे।
  • पश्चिमी बेड़े की वापसी: इसी दौरान, सोवियत खुफिया ने ब्रिटिश नौसेना का एक संदेश रोककर पढ़ा, जिसमें एडमिरल सर डेरेक एमरी ने कहा: “सर, हम बहुत देर कर चुके हैं। रूसी परमाणु पनडुब्बियाँ यहाँ हैं और एक बड़ा बेड़ा भी।” यह सुनते ही ब्रिटिश जहाज तुरंत मेडागास्कर की ओर मुड़ गए। अमेरिकी सातवें बेड़े को भी वाशिंगटन से रुकने और पीछे हटने का आदेश मिला।
  • ब्रेझनेव का क्रोध और भारत के लिए उपहार: जब निक्सन और किसिंजर ने ब्रेझनेव को फोन कर भारत पर दबाव बनाने को कहा, तो ब्रेझनेव बेहद क्रोधित हो गए। इतिहासकार व्लादिस्लाव ज़ुबोक अपनी किताब “A Failed Empire: The Soviet Union in the Cold War from Stalin to Gorbachev” में लिखते हैं कि ब्रेझनेव इतने गुस्से में थे कि उन्होंने तुरंत फैसला किया कि भारत को परमाणु बम बनाने की सारी तकनीक और रहस्य दे दिए जाएं। यह भारत के परमाणु कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
  • पाकिस्तान का आत्मसमर्पण: रूसी नौसेना की मौजूदगी और दृढ़ता ने अमेरिकी हस्तक्षेप को विफल कर दिया। इसके बिना ही, 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के 90,000 से अधिक सैनिकों ने ढाका में भारतीय सेना के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। रूसी बेड़े ने तब तक अमेरिकी जहाजों का पीछा नहीं छोड़ा जब तक कि वे पूरी तरह भारतीय जलक्षेत्र से बाहर नहीं निकल गए।
  • संयुक्त राष्ट्र में वीटो का समर्थन: युद्ध के दौरान, अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के खिलाफ युद्धविराम प्रस्ताव पेश किया। रूस ने इस प्रस्ताव पर वीटो लगाकर भारत को अपनी सैन्य कार्रवाई पूरी करने और पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण समय दिया। यह कूटनीतिक समर्थन भी अमूल्य था।
भारत पाकिस्तान 1971 का युद्ध - India Pakistan 1971 War
भारत पाकिस्तान 1971 का युद्ध – India Pakistan 1971 War

“पसंद नहीं, मजबूरी थी?” – विदेश मंत्री जयशंकर का स्पष्टीकरण

अक्टूबर 2022 में ऑस्ट्रेलिया की यात्रा के दौरान, भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से भारत-रूस संबंधों पर सवाल पूछा गया। उनका जवाब ऐतिहासिक संदर्भ को स्पष्ट करता है:

“भारत-रूस संबंध और रक्षा संबंध बहुत पुराने हैं। हमारे संबंध तब से हैं जब पश्चिमी देशों ने भारत के बजाय पाकिस्तान को हथियार सप्लाई करना शुरू किया। पश्चिमी देशों ने एक सैन्य तानाशाह (पाकिस्तान) को अपने पसंदीदा साथी के रूप में चुना और भारत को दशकों तक हथियार नहीं दिए।” – डॉ. एस. जयशंकर, भारतीय विदेश मंत्री

यह कथन स्पष्ट करता है कि भारत-रूस साझेदारी कोई अचानक बनी या मजबूरी की वजह से कायम रखी गई साझेदारी नहीं है। यह ऐतिहासिक परिस्थितियों, पश्चिमी देशों की नीतियों, और रूस द्वारा भरोसे के उस पल को कभी न तोड़ने की वजह से बनी और विकसित हुई एक विश्वसनीय साझेदारी है।

1999 का कारगिल युद्ध: अमेरिकी समर्थन का अभाव (America did not support India)

भारत-रूस दोस्ती की विश्वसनीयता को 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान फिर से समझा जा सकता है। जब पाकिस्तानी घुसपैठियों और सैनिकों ने कारगिल की ऊँची चोटियों पर कब्जा कर लिया, तो भारत ने अमेरिका से मदद मांगी:

  • भारत चाहता था कि अमेरिका अपने उन्नत उपग्रहों (सैटेलाइट्स) की मदद से भारत को पाकिस्तानी सैनिकों की सटीक स्थिति बताए।
  • इससे भारतीय सेना को ऊँचाई पर छिपे दुश्मन पर हमला करने में काफी मदद मिलती और सैनिकों की जान बचती।
  • अमेरिका ने इस महत्वपूर्ण सैटेलाइट इंटेलिजेंस को साझा करने से साफ इनकार कर दिया।

यह घटना एक बार फिर उस अंतर को रेखांकित करती है जो भारत के लिए एक व्यावहारिक भागीदार (अमेरिका) और एक पुराने, परखे हुए सहयोगी (रूस) के बीच मौजूद है।

वर्तमान संबंध और चुनौतियाँ: भविष्य की राह

  • रक्षा में प्रभुत्व बरकरार: आज भी, भारत के रक्षा बाजार में रूस का दबदबा कायम है। एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम, अकुला-क्लास पनडुब्बियाँ, सुखोई और मिग विमान, टी-90 टैंक जैसे प्रमुख अत्याधुनिक सिस्टम रूसी मूल के हैं। ब्रह्मोस जैसे संयुक्त उद्यम द्विपक्षीय सहयोग की निरंतरता का प्रतीक हैं।
  • नए क्षेत्रों में विस्तार: ऊर्जा (तेल और गैस), परमाणु ऊर्जा (कुडनकुलम प्लांट), अंतरिक्ष सहयोग, व्यापार और निवेश (रुपया-रूबल व्यापार तंत्र) जैसे क्षेत्रों में भी संबंधों को विस्तार और मजबूती दी जा रही है।
  • भू-राजनीतिक चुनौतियाँ: यूक्रेन संकट और भारत पर पश्चिमी दबाव ने भारत-रूस संबंधों के लिए जटिलताएं पैदा की हैं। भारत को अपने रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए, ऊर्जा सुरक्षा जैसे हितों की रक्षा करनी है और साथ ही पश्चिमी भागीदारों के साथ संबंधों को भी प्रबंधित करना है।
  • विविधीकरण की आवश्यकता: भारत ने हाल के वर्षों में अपने रक्षा आयात का विविधीकरण किया है (अमेरिका, फ्रांस, इजराइल से खरीद)। यह रणनीतिक आवश्यकता है, लेकिन रूस के साथ रक्षा सहयोग और संयुक्त विकास परियोजनाएँ अभी भी प्रमुखता से जारी हैं।

निष्कर्ष: विश्वास की अमर गाथा

भारत-रूस संबंधों का इतिहास (India Russia Relations History) केवल राजनयिक दस्तावेजों में दर्ज घटनाओं का संग्रह नहीं है। यह विश्वास, सहयोग और निस्वार्थ समर्थन की एक जीवंत गाथा है। 1971 का युद्ध (India Pakistan 1971 War) इस गाथा का सबसे चमकदार अध्याय है, जहां रूस ने साबित किया कि वह मुश्किल समय में भारत के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। आज भी, जब भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चुनौतियों का सामना करता है, रूस का समर्थन एक महत्वपूर्ण स्तंभ बना हुआ है।

यह संबंध रियलपॉलिटिक (व्यावहारिक राजनीति) और भावनात्मक बंधन का अनूठा मिश्रण है। भारत ने कभी भी रूस को महज एक हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में नहीं देखा, बल्कि उस सच्चे मित्र के रूप में देखा जिसने उसकी सबसे कठिन घड़ियों में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा। और रूस ने भी भारत को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में हमेशा महत्व दिया है। यही कारण है कि बदलते वैश्विक परिदृश्य और चुनौतियों के बावजूद, भारत और रूस के बीच यह अटूट विश्वास और मैत्री का बंधन आने वाले समय में भी प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बना रहेगा। भारत-रूस दोस्ती जिंदाबाद!

भारत और रूस की दोस्ती कब शुरू हुई?

स्वतंत्रता के बाद 1950 के दशक में, खासकर 1955 में पंडित नेहरू की सोवियत संघ यात्रा और 1971 की भारत-सोवियत मैत्री संधि के बाद संबंधों को मजबूती मिली।

1971 की भारत-सोवियत संधि क्यों महत्वपूर्ण थी?

इस संधि (अनुच्छेद 9) के तहत दोनों देशों ने एक-दूसरे पर हमले की स्थिति में सैन्य सहयोग का वचन दिया, जिसका प्रमाण 1971 युद्ध में मिला।

1971 युद्ध में रूस ने भारत की कैसे मदद की?

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी युद्धविराम प्रस्ताव को वीटो किया, और अमेरिकी नौसेना (7वाँ बेड़ा) को बंगाल की खाड़ी से रोकने के लिए परमाणु पनडुब्बियाँ भेजीं।

यूएसएस एंटरप्राइज घटना क्या थी?

अमेरिका ने भारत को डराने के लिए 75,000 टन के इस परमाणु विमानवाहक को बंगाल की खाड़ी में भेजा, जिसे रूसी नौसेना ने मिसाइलें तानकर रोका।

क्या रूस ने वाकई भारत को परमाणु तकनीक दी?

इतिहासकार व्लादिस्लाव ज़ुबोक के अनुसार, 1971 युद्ध के बाद सोवियत नेता ब्रेझनेव ने भारत को परमाणु प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का फैसला किया।

विदेश मंत्री जयशंकर ने “मजबूरी” वाला बयान क्यों दिया?

उन्होंने स्पष्ट किया कि पश्चिम द्वारा पाकिस्तान को प्राथमिकता देने के कारण भारत को रूस की ओर मुड़ना पड़ा – यह रणनीतिक पसंद थी।

भारतीय जनता रूस को “दोस्त” क्यों मानती है?

1971 युद्ध में निर्णायक हस्तक्षेप, प्रतिबंधों के दौरान समर्थन और सैन्य प्रौद्योगिकी हस्तांतरण ने भावनात्मक विश्वास पैदा किया।

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