
साल 1983 की बात है। भारत की गुप्तचर संस्था रॉ (RAW) का एक एजेंट गोपनीय मिशन पर पाकिस्तान पहुंचा। लेकिन पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की नजरें हर समय सक्रिय थीं। एजेंट के आने की भनक लगते ही ISI ने उसे गिरफ्तार कर लिया। कई दिनों तक चली बर्बर पूछताछ, अमानवीय यातनाएं… इतनी क्रूरता कि वो एजेंट टूट गया।
पर जब उसने जो रहस्य बताया, उसे सुनकर ISI के अधिकारियों के पैरों तले जमीन खिसक गई! उसने खुलासा किया: “पाकिस्तानी सेना में एक मेजर है, जो दरअसल भारत का गुप्तचर है! वो कोई पाकिस्तानी नहीं, बल्कि रॉ का एजेंट है!”
ये खुलासा ऐसा था जैसे पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था पर सीधा प्रहार। वो मेजर कौन था? कैसे उसने पाकिस्तान की नाक के नीचे इतने ऊंचे पद पर कब्जा जमा लिया? नाम था – “ब्लैक टाइगर” रवींद्र कौशिक। आइए, जानते हैं इस अद्वितीय देशभक्त की वो कहानी, जो जासूसी फिल्मों से भी ज्यादा रोमांचक और दर्दनाक है।
Black Tiger Ravindra Kaushik Biography in Hindi | ब्लैक टाइगर रवींद्र कौशिक जीवन परिचय
रवींद्र कौशिक का जन्म 11 अप्रैल, 1952 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में एक सामान्य पंजाबी परिवार में हुआ। पिता जे.एम. कौशिक पेशे से पोस्टमास्टर थे। बचपन से ही रवींद्र में कला के प्रति गजब का आकर्षण था। स्कूल के नाटकों से लेकर स्थानीय थिएटर ग्रुप्स तक – वह हमेशा मंच पर चमकते रहे। उनकी अभिनय क्षमता, भाव-भंगिमाएं और आवाज का जादू दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता था।
उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि यही कला उन्हें देश की सबसे खतरनाक और गोपनीय नौकरी तक ले जाएगी। श्रीगंगानगर के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे लखनऊ चले गए। यहीं, एक थिएटर प्रदर्शन के दौरान, उनकी किस्मत ने करवट ली।
वो निर्णायक पल: 1970 के दशक की शुरुआत। लखनऊ में एक नाटक प्रतियोगिता चल रही थी। रवींद्र मुख्य भूमिका में थे। दर्शकों में मौजूद थे भारतीय रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के कुछ अधिकारी। उन्हें इस युवा कलाकार में कुछ खास दिखा:
- अद्भुत रूपांतरण क्षमता: अलग-अलग किरदारों में पूरी तरह घुल जाना।
- शारीरिक फिटनेस और फुर्ती: एक जासूस के लिए जरूरी।
- तनाव में शांत रहने की क्षमता: मंच पर गलतियों को सहजता से संभालना।
- प्रभावी संचार कौशल: स्पष्ट उच्चारण और आकर्षक व्यक्तित्व।
- देशभक्ति की भावना: उनके नाटकों में राष्ट्रप्रेम के स्वर मुखर थे।
कुछ दिनों बाद, RAW के अधिकारियों ने रवींद्र से गुप्त मुलाकात की। उनके सामने एक प्रस्ताव रखा: “क्या आप देश के लिए जासूस बनकर पाकिस्तान में काम करने को तैयार हैं?” यह जोखिम से भरा, परिवार से दूर रहने वाला और शायद गुमनामी में मर जाने वाला मिशन था। बिना एक पल गंवाए, 21 साल के रवींद्र ने हाँ कह दिया। उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया।
दिल्ली की गुप्त कोठरी से कराची तक – कठोर प्रशिक्षण
रवींद्र कौशिक का चयन होते ही उन्हें दिल्ली के एक गुप्त प्रशिक्षण केंद्र ले जाया गया। अगले दो वर्ष (1973-1975) उनके लिए अकल्पनीय रूप से कठिन और रूपांतरकारी थे। उन्हें सिर्फ जासूस नहीं, बल्कि एक पूर्ण पाकिस्तानी मुस्लिम नागरिक बनना था। प्रशिक्षण के मुख्य पहलू:
- भाषाई क्रांति:
- उर्दू में महारथ: सिर्फ बोलना नहीं, बल्कि लाहौरी या कराची लहजे में बोलना, उर्दू शायरी और इस्लामी शब्दावली पर पकड़ बनाना।
- पंजाबी का निखार: चूंकि वे गंगानगर (पंजाबी बहुल) के थे, पंजाबी उनकी मातृभाषा थी। लेकिन पाकिस्तानी पंजाबी के सूक्ष्म अंतर सीखे।
- अंग्रेजी और स्थानीय बोलियाँ: पाकिस्तानी अभिजात वर्ग की तरह अंग्रेजी बोलना और सिंधी/पश्तो जैसी स्थानीय बोलियों की बुनियादी जानकारी।
- धार्मिक एवं सांस्कृतिक गहन प्रशिक्षण:
- इस्लाम की गहन जानकारी: कुरआन की आयतें, नमाज़ का तरीका, रोजे के नियम, इस्लामिक इतिहास और त्योहारों की विस्तृत जानकारी। एक गहरे धार्मिक मुस्लिम की तरह आचरण करना।
- पाकिस्तानी संस्कृति और रीति-रिवाज: खान-पान, पहनावा, शादी-ब्याह के रीति-रिवाज, सामाजिक व्यवहार के तौर-तरीके। किसी भी स्थिति में “भारतीयपन” झलकने न देना।
- शारीरिक परिवर्तन एवं चिकित्सकीय प्रक्रिया:
- खतना (Circumcision): एक मुस्लिम पहचान के लिए यह अनिवार्य था। यह दर्दनाक और जोखिम भरी प्रक्रिया थी, जिसे उन्होंने देश के लिए सहा।
- फिजिकल ट्रांसफॉर्मेशन: धूप में त्वचा का रंग गहरा करना, दाढ़ी-मूंछ रखने का तरीका, चाल-ढाल में बदलाव।
- स्वास्थ्य प्रबंधन: शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए कड़ी कसरत, मार्शल आर्ट (जूडो-कराटे) का प्रशिक्षण।
- जासूसी कौशल:
- गुप्त संचार: अदृश्य स्याही से लिखना, रेडियो कोड्स, गुप्त स्थानों पर संदेश छोड़ने के तरीके।
- फोटोग्राफी एवं डॉक्यूमेंटेशन: गुप्त तरीके से तस्वीरें खींचना, महत्वपूर्ण दस्तावेजों की प्रतिलिपि बनाना।
- याददाश्त प्रशिक्षण: नक्शे, नंबर, नाम और घटनाओं को अल्प समय में याद रखना।
- छल-कपट एवं टोह: किसी पर संदेह किए बिना जानकारी निकालना, पीछा करने और पीछा होने से बचने के तरीके।
- हथियार चलाना और कमांडो ट्रेनिंग: आपात स्थिति में आत्मरक्षा के लिए।
- नई पहचान का निर्माण:
- नाम: नबी अहमद शाकिर
- पृष्ठभूमि: उनके लिए एक विस्तृत और विश्वसनीय कहानी गढ़ी गई – जन्मस्थान, परिवार, शिक्षा, बचपन की घटनाएँ – सब कुछ ऐसा जो पाकिस्तानी अधिकारी जाँच में पुष्टि कर सकें।
- दस्तावेज: जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल प्रमाणपत्र, पहचान पत्र आदि के नकली लेकिन अत्यंत प्रामाणिक दिखने वाले दस्तावेज तैयार किए गए।
प्रशिक्षण पूरा होने के बाद, भारत में रवींद्र कौशिक का अस्तित्व लगभग मिटा दिया गया। आधिकारिक रिकॉर्ड में उन्हें एक सामान्य युवक के रूप में दिखाया गया। 1975 में, महज 23 वर्ष की उम्र में, नबी अहमद शाकिर के रूप में, वह पाकिस्तान के लिए रवाना हो गए।
पाकिस्तान में जन्मे “नबी अहमद शाकिर” – एक मेजर का उदय
पाकिस्तान पहुँचकर रवींद्र (अब नबी अहमद) ने अपनी नई जिंदगी शुरू की। उनकी योजना थी कानून की पढ़ाई कर सेना में प्रवेश करना। उनकी तैयारी इतनी परफेक्ट थी कि कोई शक नहीं कर सका।
- कराची विश्वविद्यालय में एलएलबी:
नबी अहमद ने कराची विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई शुरू की। यहाँ भी उनकी प्रतिभा चमकी। उन्होंने न सिर्फ अच्छे अंकों से एलएलबी की डिग्री पूरी की, बल्कि छात्र राजनीति और सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहे। इससे उन्हें उच्च वर्ग के पाकिस्तानियों के संपर्क में आने और नेटवर्क बनाने का मौका मिला। - पाकिस्तानी सेना में कमीशंड अधिकारी:
कानून की डिग्री के बाद, उन्होंने पाकिस्तानी सेना में आवेदन किया। उनकी शैक्षणिक योग्यता, शारीरिक फिटनेस और साक्षात्कार में दिखाई गई बुद्धिमत्ता ने चयन समिति को प्रभावित किया। उन्हें पाकिस्तानी सेना में एक कमीशंड अधिकारी (लेफ्टिनेंट) के रूप में नियुक्त किया गया। यह वह क्षण था जब भारत के जासूस ने दुश्मन देश की सेना की वर्दी पहन ली! - तेजी से प्रोमोशन और “मेजर” का पद:
नबी अहमद अपने काम में अत्यंत मेहनती और कुशल साबित हुए। उनकी रणनीतिक सोच और नेतृत्व क्षमता ने उनके वरिष्ठ अधिकारियों का ध्यान खींचा। उन्हें तेजी से पदोन्नतियाँ मिलीं। कुछ ही वर्षों में वह पाकिस्तानी सेना में “मेजर” के पद तक पहुँच गए। यह एक ऐसा पद था जो उन्हें अत्यंत संवेदनशील और गोपनीय सैन्य जानकारियों तक पहुंच प्रदान करता था। - वैवाहिक जीवन: अमानत से शादी:
अपनी पाकिस्तानी पहचान को और पुख्ता करने के लिए, और समाज में स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए, नबी अहमद ने एक पाकिस्तानी महिला अमानत से शादी कर ली। यह एक जटिल निर्णय था। एक तरफ देश के लिए मिशन, दूसरी तरफ एक निर्दोष महिला और भविष्य में पैदा होने वाली संतान के प्रति जिम्मेदारी। उनकी शादी से उनकी “पाकिस्तानी छवि” पूरी तरह स्थापित हो गई और उन्हें महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों पर तैनाती के अवसर मिले। उनकी पत्नी अमानत को आखिर तक यह नहीं पता चला कि उनका पति भारत का जासूस था। उनके घर एक बेटी भी हुई।
“ब्लैक टाइगर” की गुप्त विजय – भारत को मिली अमूल्य जानकारियाँ
मेजर नबी अहमद शाकिर के रूप में रवींद्र कौशिक ने 1979 से 1983 तक (लगभग 4 वर्ष) अपनी जान जोखिम में डालकर भारत को अत्यंत महत्वपूर्ण गुप्त सूचनाएं पहुंचाईं। उनकी पोस्टिंग और पहुंच के कारण ये जानकारियां रणनीतिक रूप से बेहद मूल्यवान थीं:
- पाकिस्तानी सेना की गतिविधियाँ: सैनिकों की तैनाती, नए रेजिमेंट्स का गठन, प्रमुख अधिकारियों के स्थानांतरण।
- हथियारों की खरीद और तकनीक: पाकिस्तान द्वारा प्राप्त या विकसित किए जा रहे नए हथियार प्रणालियों, विशेषकर मिसाइलों और टैंकों के बारे में जानकारी।
- चीन और अमेरिका से सैन्य सहयोग: पाकिस्तान को मिल रही सैन्य सहायता और गुप्त समझौतों की जानकारी।
- कश्मीर घुसपैठ योजनाएँ: पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवादी समूहों की भारत में घुसपैठ की योजनाओं और ट्रेनिंग कैंपों के बारे में सूचनाएं।
- पाकिस्तानी खुफिया तंत्र (ISI) की रणनीतियाँ: ISI के भारत विरोधी ऑपरेशंस और उनके एजेंटों के बारे में जानकारी।
उनकी सूचनाओं ने भारत को कई बार बड़े हमलों और सुरक्षा खतरों से बचाया। उनकी दक्षता और साहस से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें “द ब्लैक टाइगर” की उपाधि से सम्मानित किया। यह उपाधि उनके शौर्य और गोपनीयता (Black Ops) का प्रतीक थी।
भयावह विश्वासघात और पतन – कैसे उड़ा कवर?
1983 में रवींद्र कौशिक के शानदार करियर पर भारी आघात लगा। इसकी जड़ में था एक और भारतीय जासूस का गलत कदम – इनायत मसीहा (Inayat Masiha)।
- इनायत मसीहा की घातक गलती:
रॉ ने कथित तौर पर इनायत मसीहा को पाकिस्तान भेजा था, ताकि वह मेजर नबी अहमद शाकिर (रवींद्र) से सीधे संपर्क कर उनसे महत्वपूर्ण दस्तावेज ले सके। हालांकि, मसीहा पर ISI की नजर पहले से थी या उनसे कोई सुरक्षा चूक हुई। उन्हें लाहौर में ISI ने पकड़ लिया। - यातना और गुप्त भेद खुलना:
ISI के हाथों क्रूर यातना सहने के बाद, इनायत मसीहा टूट गए। उन्होंने अपना मिशन और सबसे बड़ा राज उगल दिया – पाकिस्तानी सेना के एक उच्च पदस्थ अधिकारी, मेजर नबी अहमद शाकिर, वास्तव में भारत के जासूस रवींद्र कौशिक हैं! - रवींद्र कौशिक का पलायन प्रयास और विफलता:
इस खुलासे की सूचना मिलते ही (शायद रॉ के किसी गुप्त स्रोत से या स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाकर), रवींद्र कौशिक ने तुरंत पाकिस्तान से भागने की कोशिश की। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। ISI उन पर पहले से नजर रख रही थी। उनके सभी रास्ते बंद कर दिए गए। रॉ भी उनकी मदद नहीं कर सका क्योंकि अब पूरा ऑपरेशन ISI की जानकारी में था। किसी भी हस्तक्षेप से और भारतीय एजेंट्स का पर्दाफाश हो सकता था। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। एक हीरो, जो दुश्मन के गढ़ में मेजर बना था, अब उसी के कारागार में था।
नरक के 18 साल – जेल, यातना और विस्मृति
रवींद्र कौशिक का पाकिस्तानी कारागारों में बिताया गया समय मानवीय पीड़ा की पराकाष्ठा था। उन्हें सियालकोट के एक कुख्यात पूछताछ केंद्र में ले जाया गया।
- दो साल की निरंतर पूछताछ और अमानवीय यातना (1983-1985):
- भीषण शारीरिक प्रताड़ना: बेरहमी से पीटा जाना, बिजली के झटके, नाखून उखाड़ना, जलते कोयले पर खड़ा करना, लोहे की गर्म सलाखों से दागना।
- मानसिक उत्पीड़न: अंधेरी कोठरी में एकांत कारावास, नींद से वंचित रखना, झूठी खबरें सुनाकर डराना (जैसे परिवार की हत्या की धमकी)।
- भारत के रहस्य उगलवाने का दबाव: उनसे भारत के गुप्त मिशन, अन्य एजेंट्स, रॉ की कार्यप्रणाली के बारे में बताने को कहा गया।
- मृत्युदंड और आजीवन कारावास (1985):
एक सैन्य अदालत ने उन पर राजद्रोह और जासूसी का आरोप साबित करते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाई। हालांकि, बाद में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इस सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। यह शायद अंतरराष्ट्रीय दबाव या कूटनीतिक कारणों से हुआ, पर रवींद्र के लिए यह एक लंबी यातना की शुरुआत थी। - जेलों का नरकवास (1985-2001):
अगले 16 वर्ष उन्होंने पाकिस्तान की सबसे कुख्यात जेलों – मियांवाली सेंट्रल जेल और सियालकोट जेल में बिताए। यहाँ की स्थितियाँ अमानवीय थीं:- गंदगी और भीड़भाड़: बीमारी फैलाने वाले कीटाणु, नमी, सीलन।
- अपर्याप्त भोजन: बासी और घटिया गुणवत्ता का खाना, पोषण की कमी।
- कोई चिकित्सा सुविधा नहीं: जेलों में बुनियादी दवाइयों का भी अभाव।
- निरंतर उपेक्षा और प्रताड़ना: जेल अधिकारियों और अन्य कैदियों द्वारा प्रताड़ना।
- घातक बीमारियाँ और बिगड़ता स्वास्थ्य:
इन भयावह परिस्थितियों ने उनका स्वास्थ्य पूरी तरह बिगाड़ दिया। उन्हें क्षय रोग (Tuberculosis – TB) और दमा (Asthma) जैसी जानलेवा बीमारियाँ हो गईं। उचित इलाज के अभाव में ये बीमारियाँ बढ़ती गईं।
अंतिम पत्र और एक गुमनाम शहीद की मौत
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, बीमारी से जर्जर हो चुके रवींद्र कौशिक ने भारत, अपने परिवार और विशेषकर अपनी माँ को बहुत याद किया। उनकी मानसिक पीड़ा उनके अंतिम पत्रों में साफ झलकती है।
- माँ को अंतिम पत्र:
मृत्युशय्या पर पड़े हुए, उन्होंने एक गुप्त मार्ग (शायद किसी सहानुभूति रखने वाले वकील या चिकित्सक की मदद से) अपनी माँ के लिए एक पत्र भारत भेजा। यह पत्र उनकी पीड़ा, निराशा और देश के प्रति अटूट प्रेम का दस्तावेज है। इसमें उन्होंने लिखा:
“क्या भारत जैसे बड़े देश के लिए कुर्बानी देने वालों को यही मिलता है?”
उन्होंने पाकिस्तानी जेलों में झेली गई यातनाओं, अपने खराब स्वास्थ्य और भारत सरकार से उपेक्षा की पीड़ा का जिक्र किया। यह पत्र एक वीर सपूत की अंतिम करुण पुकार थी। - एकांत और गुमनाम मृत्यु:
16 नवंबर, 2001 को, सिर्फ 49 वर्ष की उम्र में, मियांवाली सेंट्रल जेल, पाकिस्तान में टीबी और अस्थमा के कारण रवींद्र कौशिक का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के समय उनके पास कोई नहीं था। न उनकी पाकिस्तानी पत्नी, न बेटी, न भारतीय परिवार। - पाकिस्तानी धरती में अंतिम विश्राम:
पाकिस्तानी अधिकारियों ने उन्हें न्यू सेंट्रल जेल, मुल्तान के परिसर में ही एक साधारण से कब्र में दफना दिया। भारत की मिट्टी उन्हें कभी नसीब नहीं हुई। भारत सरकार ने उनके शव को वापस लाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया।
विरासत और विवाद: एक शहीद को मिला क्या?
रवींद्र कौशिक की मृत्यु के बाद भी उनकी कहानी विवादों और उपेक्षा से घिरी रही।
- परिवार की लड़ाई और उपेक्षा का दंश:
रवींद्र के भारतीय परिवार (माता-पिता, भाई) ने भारत सरकार से सहायता और मान्यता की गुहार लगाई। उन्होंने कहा कि सरकार ने रवींद्र को भुला दिया है। 2002 में एक रिपोर्ट के अनुसार, परिवार ने दावा किया कि उन्हें कोई आर्थिक मुआवजा या सम्मान नहीं मिला। उनकी माँ की मृत्यु तक उनका दर्द बना रहा। - फिल्म और पुस्तकें: कहानी को मिली जनता की आवाज़:
- पुस्तक: “The Spy Who Loved India” और हिंदी में “ब्लैक टाइगर” जैसी किताबों ने उनकी कहानी को विस्तार से बताया।
- फिल्म: 2023 में आई फिल्म “गुमनामी के 20 साल” (20 Years of Gumnami) उनके जीवन पर आधारित है। हालांकि यह पूरी तरह उनकी कहानी नहीं बताती।
- डॉक्यूमेंट्री: कई टीवी चैनल्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर उनकी कहानी पर डॉक्यूमेंट्री बनीं।
- रॉ और सेना में प्रेरणा:
रवींद्र कौशिक की कहानी RAW के लिए एक किंवदंती है। उनकी निष्ठा, साहस और दृढ़ता आज भी नए जासूसों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। रक्षा बलों में भी उनका सम्मान किया जाता है। वे साबित करते हैं कि एक व्यक्ति की बुद्धि और देशभक्ति क्या कुछ कर सकती है। - मान्यता की मांग:
उनकी मृत्यु के बाद से ही, देशभक्त नागरिकों, पूर्व सैन्य अधिकारियों और मीडिया द्वारा भारत सरकार से उन्हें शहीद का दर्जा देने, उनके परिवार को सम्मान और मुआवजा देने, और उनकी अस्थियों को भारत लाने की मांग उठती रही है। हालांकि, खुफिया दुनिया की जटिलताओं के कारण, सरकारें अक्सर ऐसे मामलों में खुलकर नहीं आ पातीं।
गुमनामी का तमगा, शहादत की विरासत
रवींद्र कौशिक – द ब्लैक टाइगर – का जीवन देशप्रेम, अद्भुत साहस, असीमित बलिदान और फिर विस्मृति व उपेक्षा का जटिल सफर था। उन्होंने साबित किया कि युद्ध सिर्फ सीमा पर नहीं लड़े जाते। कभी-कभी दुश्मन के दिल में घुसकर, उसका विश्वास जीतकर, उसकी वर्दी पहनकर लड़ी जाने वाली लड़ाई सबसे खतरनाक और सबसे प्रभावी होती है।
उनका अंत दुखद था – दुश्मन देश की जेल में, बीमारी से तड़पते हुए, अपनों से दूर, और अपनी मिट्टी की चाहत लिए। उनका सवाल – “क्या कुर्बानी देने वालों को यही मिलता है?” – हर भारतीय के मन को झकझोरता है।
रवींद्र कौशिक जैसे गुमनाम शहीदों की शहादत ही वो नींव है, जिस पर हमारे आज का सुरक्षित भारत टिका है। वे याद दिलाते हैं कि आजाद हवा में सांस लेने की कीमत कुछ लोग अपना सब कुछ गंवाकर चुकाते हैं, बिना किसी पदक, सम्मान या यहाँ तक कि कब्र के पत्थर की भी चाहत के।
उनकी विरासत यही सीख देती है: “देश के लिए कुर्बानी देनी कितनी जरूरी है क्योंकि, ये देश है तो हम है।” ब्लैक टाइगर रवींद्र कौशिक अमर रहें!
ब्लैक टाइगर रवींद्र कौशिक से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
Q1: रवींद्र कौशिक कौन थे और उन्हें ‘ब्लैक टाइगर’ क्यों कहा जाता है?
A1: रवींद्र कौशिक भारत की खुफिया एजेंसी RAW के एक गुप्त एजेंट थे। उन्होंने पाकिस्तान में ‘मेजर नबी अहमद शाकिर’ का नकली पहचान बनाकर पाकिस्तानी सेना में उच्च पद हासिल किया और भारत को अमूल्य जानकारियां पहुंचाईं। उनकी सफलता और साहस से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें ‘द ब्लैक टाइगर’ की उपाधि दी, जो उनकी गोपनीयता (ब्लैक ऑप्स) और वीरता का प्रतीक था।
Q2: रॉ (RAW) ने रवींद्र कौशिक को क्यों चुना?
A2: रवींद्र कौशिक मूल रूप से एक प्रतिभाशाली थिएटर कलाकार थे। RAW अधिकारियों ने लखनऊ में उनके एक नाटक के दौरान उनमें जासूस बनने के लिए जरूरी गुण देखे: अद्भुत अभिनय क्षमता (रूप बदलने की कला), शारीरिक फिटनेस, तनाव में शांत रहने की क्षमता, तेज बुद्धि, प्रभावी संचार कौशल और गहरी देशभक्ति। ये गुण उन्हें पाकिस्तान में एक नकली पहचान बनाने के लिए आदर्श बनाते थे।
Q3: रवींद्र कौशिक का पाकिस्तान में कवर कैसे उड़ा?
A3: उनका कवर 1983 में उड़ गया जब एक अन्य भारतीय जासूस, इनायत मसीहा, जिन्हें रॉ ने कौशिक से संपर्क करने के लिए पाकिस्तान भेजा था, ISI द्वारा पकड़े गए। क्रूर यातना के बाद मसीहा ने हार मान ली और खुलासा कर दिया कि पाकिस्तानी सेना के मेजर नबी अहमद शाकिर वास्तव में भारत के जासूस रवींद्र कौशिक हैं। इसके बाद ISI ने कौशिक को गिरफ्तार कर लिया।
Q4: पाकिस्तान में रवींद्र कौशिक की मृत्यु कैसे हुई?
A4: ISI द्वारा पकड़े जाने के बाद, उन्हें क्रूर यातनाएं दी गईं और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्होंने अगले 18 साल (1983-2001) पाकिस्तान की भयावह जेलों (सियालकोट और मियांवाली) में बिताए। जेलों में गंदगी, अपर्याप्त भोजन और चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के कारण उन्हें क्षय रोग (TB) और दमा (Asthma) हो गया। 16 नवंबर 2001 को मियांवाली सेंट्रल जेल में इन बीमारियों के कारण उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें पाकिस्तान के मुल्तान जेल में ही दफनाया गया।
Q5: क्या भारत सरकार ने रवींद्र कौशिक या उनके परिवार को कोई सम्मान या मान्यता दी?
A5: उनके परिवार (विशेषकर उनकी माँ और भाई) ने लगातार दावा किया कि भारत सरकार ने उन्हें कोई आधिकारिक मान्यता, शहीद का दर्जा, या पर्याप्त आर्थिक मुआवजा नहीं दिया। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी अस्थियों को भारत लाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। यह मुद्दा अक्सर सरकार की खुफिया ऑपरेशन्स में गुमनाम शहीदों की उपेक्षा के रूप में उठाया जाता है। हालाँकि, RAW और रक्षा बलों के भीतर उन्हें गहरा सम्मान दिया जाता है।
Q6: रवींद्र कौशिक की पाकिस्तानी पत्नी और बच्ची का क्या हुआ?
A6: पाकिस्तानी पत्नी अमानत और उनकी बेटी के बारे में बहुत कम जानकारी सार्वजनिक है। ऐसा माना जाता है कि जब रवींद्र की असली पहचान सामने आई, तो उनकी पत्नी को गहरा सदमा लगा। उनके और उनकी बेटी के सुरक्षा और भविष्य को लेकर चिंता बनी रही। यह नहीं पता कि उन्हें पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा परेशान किया गया या नहीं। उनका वर्तमान हालात अज्ञात है।