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नीरजा भनोट : भारत की वो बेटी जिसकी मौत पर रोया था पाकिस्तान! Neerja Bhanot Biography in Hindi, Neerja Bhanot Story, 1986 विमान अपहरण घटना, नीरजा भनोट की मृत्यु, Neerja Bhanot Award, हीरोइन ऑफ हाईजैक (Heroine of Hijack)
दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग हैं जो अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की मदद करते हैं। वो लोग हंसते-हंसते अपनी जान की कुर्बानी दे देते हैं। ऐसे लोगों की महानता को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। नीरजा भनोट ऐसी ही एक महान शख्सियत थीं, जिन्होंने केवल 22 साल की उम्र में दूसरों के लिए मौत का सामना किया।
नीरजा भनोट एक ऐसी महिला थी, जिनकी शहादत से न सिर्फ भारत बल्कि पाकिस्तान की आंखों में भी आंसू आ गए। मौत के सामने समर्पण करने वाली नीरजा ने कई लोगों की जिंदगी रोशन कर दी थी। अपना कर्तव्य निभाते समय Neerja Bhanot ने एक पल के लिए भी अपने बारे में नहीं सोचा। उन्होंने किसी भी धर्म या संप्रदाय की परवाह किए बिना लोगों की सेवा करना अपनी प्राथमिकता मानी।
5 सितंबर 1986 को, नीरजा ने अपने जीवन का बलिदान दिया और कई लोगों की जान बचाई। इस कार्य के लिए भारत सरकार ने Neerja Bhanot को सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया। आइए जानते हैं नीरजा भनोट की ये प्रेरणादायक कहानी।
चुलबुली, नए सपनों की उड़ान भरने वाली और राजेश खन्ना के गानों पर झूमने वाली Neerja Bhanot का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था। नीरजा की माता का नाम रमा भनोट और पिता का नाम हरीश भनोट था। वह अपने माता-पिता की लाडली बेटी थी। उनके परिवार वाले उन्हें प्यार से लाडों बुलाते थे।
नीरजा के पिता एक पत्रकार थे, उनका परिवार मुंबई में बसा था। 21 साल की उम्र में नीरजा की शादी हो गई, लेकिन उनकी शादीशुदा जिंदगी ठीक नहीं रही। उनके पति उन्हें दहेज के लिए परेशान करते थे, जिससे तंग होकर नीरजा सिर्फ 2 महीने में ही अपने घर मुंबई लौट आईं।
नाम (Name): | नीरजा भनोट (हीरोइन ऑफ हाईजैक) |
जन्म की तारीख: | 7 सितंबर 1963 |
जन्म स्थान: | चंडीगढ़, भारत |
मृत्यु (Death): | 5 सितंबर 1986 (आयु 22 वर्ष), जिन्ना अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, पाकिस्तान |
मौत का कारण: | फ़िलिस्तीनी अपहर्ताओं द्वारा गोली मारी गई |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
अल्मा मेटर: | सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई |
नियोक्ता (Employer): | पैन एम (Pan American World Airways) |
जाना जाता है | अबू निदाल संगठन द्वारा पैन एम फ्लाइट 73 के अपहरण के बाद यात्रियों को बचाने के लिए जाना जाता है |
पुरस्कार: | भारत अशोक चक्र: (1987), पाकिस्तान तमगा-ए-पाकिस्तान (1987), यूनाइटेड स्टेट्स एफएसएफ हीरोइज़्म अवार्ड (1987) |
अपने वैवाहिक जीवन में परेशानियों को झेलने के बाद, नीरजा ने पैन एम में फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी के लिए आवेदन किया। उन्होंने कई जगहों पर मॉडलिंग भी की साथ ही वीको, बिनाका टूथपेस्ट, गोदरेज डिटर्जेंट और वेपोरेक्स जैसे उत्पादों के लिए कई विज्ञापन भी किए हैं।
फ्लाइट अटेंडेंट के रूप में चुने जाने के बाद वह मियामी चली गईं। ट्रेनिंग के दौरान नीरजा को एंटी-हाइजैकिंग कोर्स में एड्मिशन लिया। नीरजा की माँ नहीं चाहती थीं कि नीरजा एडमिशन लें इसलिए उन्होंने नीरजा को नौकरी छोड़ने के लिए कहा, लेकिन नीरजा अपने लिए कुछ करना चाहती थीं।
उन्होंने अपनी माँ को समझाया कि “मर जाऊंगी लेकिन भागूंगी नहीं” यदि सभी माताएं आपकी तरह सोचेंगी, तो देश का भविष्य क्या होगा? जिसके बाद उनकी माँ मान गईं।
Neerja Bhanot की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था। 5 सितंबर 1986 को उनकी पैन एम फ्लाइट 73 मुंबई से न्यूयॉर्क जा रही थी। विमान में 361 यात्री और 19 चालक दल के सदस्य सवार थे। नीरजा उस विमान में फ्लाइट अटेंडेंट थीं। उसी समय विमान का अपहरण कर लिया गया। जब नीरज ने पायलट को इस घटना के बारे में बताया तो तीनों पायलट सुरक्षित बाहर निकल आए।
पायलट के जाने के बाद Neerja Bhanot ने पूरे विमान और यात्रियों की जिम्मेदारी संभाली। आतंकवादियों ने नीरजा को सभी अमेरिकी नागरिकों का पता लगाने के लिए उनके पासपोर्ट इकट्ठा करने के लिए कहा। नीरजा पासपोर्ट इकट्ठा करती है लेकिन वह चतुराई से सभी अमेरिकी नागरिकों के पासपोर्ट छिपा देती है।
17 घंटे के बाद आतंकवादियों ने यात्रियों को मारना शुरू कर दिया और विमान में बम लगा दिए लेकिन Neerja Bhanot इन सब से डरी नहीं।
सरकार द्वारा अपनी माँगें पूरी न होते देख आतंकवादी एक ब्रिटिश व्यक्ति को विमान के गेट पर ले आये और पाकिस्तान सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट को नहीं भेजा गया तो वे उसे मार देंगे। लेकिन नीरजा ने उस आतंकवादी से बात करके ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया।
इस समय तक विमान का ईंधन ख़त्म हो चुका था और अंधेरा होने लगा था। यह बात नीरजा को पता थी, इसलिए जैसे ही अंधेरा हुआ, उन्होंने यात्रियों को खाना दिया और साथ ही सभी को एक पर्ची दी, जिसमें आपातकालीन दरवाजे से बाहर जाने का रास्ता बताया गया था।
अँधेरे में नीरजा ने तुरंत विमान के सभी आपातकालीन दरवाजे खोल दिये और यात्री उन दरवाजों से बाहर कूदने लगे। यात्रियों को अंधेरे में विमान से भागते देख आतंकवादियों ने गोलीबारी शुरू कर दी, जिससे कुछ यात्रियों को मामूली चोटें आईं, लेकिन सभी 360 यात्री विमान से पूरी तरह सुरक्षित बाहर निकल गए।
सभी यात्रियों को बाहर निकालने के बाद जब Neerja Bhanot विमान से उतरने लगीं तो उन्हें बच्चों की रोने की आवाज सुनाई दी। दूसरी ओर, पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ गए थे और उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया।
सबके मना करने के बावजूद नीरजा बच्चों को बचाने के लिए प्लेन के इमरजेंसी गेट की ओर बढ़ती है, तभी चौथा आतंकवादी आता है और नीरजा पर फायरिंग शुरू कर देता है। Neerja Bhanot ने बच्चों को सुरक्षित नीचे धकेल दिया और आतंकवादी से भिड़ गईं। आतंकवादी ने नीरजा के सीने में कई गोलियाँ दाग दीं और हर कोई नीरजा की बहादुरी देखकर हैरान रह गया।
महज 22 साल की उम्र में Neerja Bhanot ने दूसरे देश के लोगों के लिए खुशी-खुशी अपनी जान कुर्बान कर दी। उस वक्त नीरजा की शहादत को देखकर भारत के साथ-साथ पाकिस्तान भी रो पड़ा, यहां तक कि अमेरिका भी नीरजा के बलिदान के आगे नतमस्तक हो गया था।
Neerja Bhanot की शहादत के बाद उनकी बहादुरी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। नीरजा को उनकी असाधारण बहादुरी और साहस के लिए 1987 में भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया गया। जब नीरजा शहीद हुईं तब उनकी उम्र मात्र 23 साल थी। नीरजा अशोक चक्र पाने वाली सबसे कम उम्र वाली और पहली भारतीय महिला हैं।
नीरजा की बहादुरी पर एक बॉलीवुड फिल्म भी बनी, जिसमें अभिनेत्री सोनम कपूर ने Neerja Bhanot का किरदार निभाया है। दुनिया नीरजा को ‘हीरोइन ऑफ हाईजैक (Heroine of Hijack)’ के नाम से जानती है।
अपनी बहादुरी और समाज सेवा से नीरजा ने सफलता की ऐसी कहानी लिखी जो सदियों तक कायम रहेगी। उनकी कहानी हर किसी के लिए प्रेरणा है; Neerja Bhanot आज भी कई लोगों के लिए एक मिसाल हैं।
भारत सरकार ने नीरजा को उनकी असाधारण वीरता और साहस के लिए 1987 में मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया।
5 सितंबर, 1986 को, मुंबई से न्यूयॉर्क के लिए अपहृत पैन एम फ्लाइट 73 के यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते समय फिलिस्तीनी आतंकवादियों ने उन्हें गोली मार दी थी।
1986 में पैन एम फ्लाइट 73 के अपहरण के दौरान यात्रियों को बचाने में अपनी जान गंवाने वाली फ्लाइट अटेंडेंट नीरजा भनोट ने एक छोटे बच्चे के पास अपनी माँ को संदेश दिया। संदेश प्यार और आश्वासन से भरा था, जिसमें उन्होंने अपनी माँ को यह बताने का आग्रह किया गया था कि वह उससे बहुत प्यार करती है।