नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास | Nalanda University History in Hindi

Nalanda University History in Hindi

Nalanda University History in Hindi (नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास), नालंदा विश्वविद्यालय में क्या क्या पढ़ाया जाता था? बख्तियार खिलजी ने नालंदा को क्यों जलाया? नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस की खासियत

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19 जून 2024 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के नालन्दा जिले में Nalanda University New Campus का उद्घाटन किया। कई सदियों के बाद नालंदा विश्वविद्यालय को एक नई पहचान मिली। लेकिन क्या आप उस नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में जानते हैं, जिसकी बराबरी आज तक दुनिया की कोई भी यूनिवर्सिटी नहीं कर पाई है? यह इतना अविश्वसनीय था कि दुस्साहसी लोगों ने इसे नष्ट करने के लिए तीन बार प्रयास किए।

दुनिया का सबसे पुराना विश्वविद्यालय, जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की स्थापना से 500 साल पहले अस्तित्व में था, जिसे दुनिया ज्ञान का एक अद्वितीय केंद्र मानती है, 9 मिलियन से अधिक पुस्तकों का घर, नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास 7 शताब्दियों से अधिक पुराना है। आज यह Nalanda Ruins या नालन्दा के खंडहर के नाम से जाना जाता है।

उस अभूतपूर्व विश्वविद्यालय को खंडहर में बदलने वाला तुर्की शासक बख्तियार खिलजी था। आज, यह स्थल यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में संरक्षित है।

Nalanda University History in Hindi | नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास

नालंदा का पूरा नाम नालंदा महाविहार है। इसकी कहानी ईसा से 1200 साल पहले शुरू होती है। खुदाई के दौरान मिले अवशेषों से पता चलता है कि बुद्ध और महावीर के समय से पहले भी नालंदा में मानव बस्ती थी।

नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना 427 ई. में हुई थी। इसका निर्माण गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्ता (प्रथम) ने करवाया था। बाद में उनके उत्तराधिकारियों ने नालंदा के संरक्षण और सुधार में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी स्थापना के लगभग 700 वर्षों तक नालन्दा विश्व में शिक्षा का अग्रणी केन्द्र बना रहा। कुछ ही वर्षों में उनकी ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई।

बाद में हर्षवर्धन और पाल शासकों ने भी इसे संरक्षण दिया। इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े हॉल और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था। पुस्तकालय में 90 लाख से अधिक पुस्तकें थीं।

बौद्ध धर्मग्रंथों से पता चलता है कि महात्मा बुद्ध ने नालंदा में उपदेश दिया था। नालन्दा में एक स्तूप है जिसका नाम उनके एक शिष्य शारिपुत्र के नाम पर रखा गया है। नालन्दा का सम्बन्ध जैन धर्म से भी है। जैन स्रोतों के अनुसार भगवान महावीर ने भी कुछ वर्ष नालन्दा में बिताए थे।

नालंदा विश्वविद्यालय में क्या क्या पढ़ाया जाता था?

Nalanda Vishwavidyalaya में दुनिया भर से लगभग 10,000 छात्र एक साथ पढ़ते थे। यह धर्म, दर्शन, तर्कशास्त्र, चित्रकला, वास्तुकला, अंतरिक्ष विज्ञान, धातु विज्ञान और अर्थशास्त्र के अध्ययन का गढ़ बन गया। इतिहासकारों के अनुसार, अपनी स्थापना के 100 वर्षों के भीतर, नालंदा विश्वविद्यालय चिकित्सा विज्ञान के अध्ययन में दुनिया में शीर्ष स्थान पर पहुंच गया। यहां छात्रों को आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद की भी शिक्षा दी जाती थी।

यहां छात्रों को पढ़ाने के लिए 1500 से अधिक शिक्षक थे। विद्यार्थियों का चयन उनकी योग्यता के आधार पर किया गया। सबसे खास बात यह है कि यहां शिक्षा, रहना और खाना सभी सुविधाएं मुफ्त थीं। यहां न केवल भारत से बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया आदि देशों से भी छात्र आते थे।

आर्यभट्ट जैसे विद्वान थे प्राचीन नालंदा में शिक्षक

Aryabhatta Nalanda University

नालन्दा विश्वविद्यालय ने गणित और खगोल विज्ञान के अध्ययन में भी प्रसिद्धि प्राप्त की। आर्यभट्ट, जिन्हें भारतीय गणित के जनक के रूप में जाना जाता है, छठी शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख थे, इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय कैसा था। इतिहासकारों के अनुसार, गणित और खगोल विज्ञान के तमाम सिद्धांत नालंदा के माध्यम से ही दुनिया के अन्य हिस्सों तक पहुंचे।

BBC की सीरीज Places That Changed the World के अनुसार, सातवीं शताब्दी में जब चीनी यात्री और विद्वान ह्वेनसांग भारत आए थे, तो उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय का भी दौरा किया था और वहां प्रोफेसर के रूप में पढ़ाया था। जब वे 645 ईस्वी में चीन लौटे, तो वे अपने साथ कई बौद्ध धार्मिक ग्रंथ ले गए और उनका चीनी भाषा में अनुवाद किया।

ह्वेन सांग ने अपनी आत्मकथा में नालन्दा विश्वविद्यालय के बारे में लिखा है कि यहां एक विशाल स्तूप हुआ करता था। जिसे भगवान बुद्ध के एक प्रमुख शिष्य की याद में बनाया गया था। इस स्तूप तक जाने के लिए एक खुली सीढी थी। कई इतिहासकारों का कहना है कि लगभग 30 मीटर ऊंचे इस स्तूप का निर्माण नालंदा विश्वविद्यालय से बहुत पहले तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने कराया था।

बख्तियार खिलजी ने नालंदा को क्यों जलाया?

नालन्दा विश्वविद्यालय 1193 तक आबाद रहा। तभी तुर्की आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस पर हमला कर दिया और पूरे विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया। इतिहासकारों का कहना है कि जब खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला किया था, तो इसकी तीन मंजिला लाइब्रेरी में लगभग 90 लाख किताबें और पांडुलिपियाँ थीं। लाइब्रेरी में आग लगने के बाद तीन महीने तक किताबें जलती रहीं।

नालंदा यूनिवर्सिटी लगा इस्लाम के लिए खतरा

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि खिलजी का नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट करने का कारण यह था कि वह इसे इस्लाम के प्रसार के लिए एक चुनौती मानता था। उसे लगा कि जिस तरह से नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म फल-फूल रहा है, उससे इस्लाम के लिए खतरा पैदा हो सकता है।

फ़ारसी इतिहासकार मिन्हाजुद्दीन सिराज ने भी अपनी पुस्तक ‘तबाकत-ए-नासिरी’ में इसका उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा कि खिलजी किसी भी कीमत पर बौद्ध धर्म का प्रसार नहीं करना चाहता था, पहले उसने नालंदा विश्वविद्यालय पर इस्लाम पढ़ाने के लिए दबाव डाला, फिर उस पर हमला किया। उस बर्बरतापूर्ण कार्रवाई में पूरा विश्वविद्यालय तबाह हो गया और हजारों विद्वान एवं बौद्ध भिक्षु मारे गये।

खिलजी से पहले भी दो बार हमले

बख्तियार खिलजी Nalanda Vishwavidyalaya पर हमला करने वाला पहला आक्रमणकारी नहीं था। इससे पहले पांचवीं शताब्दी में मिहिर कुल के नेतृत्व में हूणों ने भी विश्वविद्यालय पर हमला किया था। फिर आठवीं शताब्दी में बंगाल के गौड़ राजा ने भी विश्वविद्यालय पर आक्रमण किया। हालांकि, दोनों बार मकसद लूटपाट का था। दोनों हमलों के बाद विश्वविद्यालय की मरम्मत की गई। लेकिन खिलजी ने नालन्दा को नष्ट कर दिया।

Nalanda Vishwavidyalaya की खुदाई में क्या-क्या मिला

नालन्दा में खुदाई के दौरान लगभग 14 हेक्टेयर क्षेत्र में विश्वविद्यालय के अवशेष मिले थे। हालाँकि, पुरातत्वविदों का कहना है कि यह मूल विश्वविद्यालय का केवल 10% हिस्सा है। खुदाई के दौरान गौतम बुद्ध की कांस्य मूर्तियाँ, हाथी दांत, प्लास्टर की मूर्तियाँ आदि मिलीं। वर्तमान में यह स्थल यूनेस्को की विश्व धरोहर (World Heritage) स्थल में शामिल है।

नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में रोचक तथ्‍य:

  • Nalanda Vishwavidyalaya वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस यूनिवर्सिटी में 300 कमरे, 7 बड़े बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए यहां एक विशाल 9 मंजिला पुस्तकालय था, जिसमें कभी 90 लाख से अधिक पुस्तकें हुआ करती थीं।
  • तक्षशिला के बाद नालंदा को दुनिया का दूसरा सबसे पुराना विश्वविद्यालय माना जाता है। वहीं, आवासीय परिसर के रूप में यह पहला विश्वविद्यालय है, यह 800 वर्षों तक अस्तित्व में रहा।
  • इस विश्वविद्यालय में छात्रों का चयन योग्यता के आधार पर किया जाता था और छात्रों को यहां मुफ्त शिक्षा दी जाती थी। इसके अलावा उनके आवास एवं भोजन की व्यवस्था पूर्णतः निःशुल्क थी।
  • एक समय इस विश्वविद्यालय में 10 हजार से अधिक छात्र पढ़ते थे और 1500 से अधिक शिक्षक उन्हें पढ़ाते थे।
  • कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस और मंगोलिया सहित कई अन्य देशों से छात्र नालंदा में पढ़ने के लिए आते थे।
  • नालंदा की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त ने की थी। इसे महान सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासकों से भी संरक्षण प्राप्त हुआ। इसकी पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि ऐसे कई सिक्के नालंदा में खुदाई के दौरान मिले हैं।
  • इस विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य ध्यान और आध्यात्मिकता के लिए जगह बनाना था। ऐसा कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने भी कई बार यहां की यात्रा की थी और यहां ध्यान किया था।
  • इतिहासकारों के अनुसार Nalanda Vishwavidyalaya में ‘धर्म गूंज’ नामक एक लाइब्रेरी थी, जिसका अर्थ था ‘सत्य का पर्वत’। लाइब्रेरी में 9 मंजिलों पर तीन खंड थे, ‘रत्नरंजक’, ‘रत्नोदधि’ और ‘रत्नसागर’।
  • नालंदा में छात्रों को लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्टर, लैंग्‍वेज साइंस, इकोनॉमिक, मेडिसिन सहित कई विषय पढ़ाए जाते थे।
  • इस विश्वविद्यालय में कई महान विद्वानों ने अध्ययन किया, जिनमें मुख्य रूप से हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबंधु, धर्मकीर्ति, आर्यवेद और नागार्जुन के नाम शामिल हैं।
  • नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास चीन के ह्वेन त्सांग और इत्सिंग ने खोजा था। ये दोनों 7वीं शताब्दी में भारत आए थे। चीन लौटने के बाद इन दोनों ने नालंदा के बारे में विस्तार से लिखा और इसे दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बताया।
  • इस विश्वविद्यालय की एक खास बात यह थी कि इसकी सभी गतिविधियां लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत होती थीं। कोई भी निर्णय सभी की सहमति से लिया जाता था, यानी भिक्षुओं के साथ-साथ शिक्षक और छात्र भी अपनी राय देते थे।
  • खुदाई के दौरान 1.5 लाख वर्ग फुट में नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं। ऐसा माना जा रहा है कि यह विश्वविद्यालय का मात्र 10 प्रतिशत हिस्सा ही है।
  • नालंदा शब्द संस्कृत के तीन शब्दों ना+आलम+दा से मिलकर बना है। इसका अर्थ ‘ज्ञान रूपी उपहार पर कोई प्रतिबंध न रखना’ है।
  • नालन्दा की तर्ज पर बिहार के राजगीर में नया Nalanda Vishwavidyalaya बनाया गया है। इसकी स्थापना 25 नवंबर 2010 को हुई थी।

नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस की खासियत

Nalanda University New Campus
Nalanda University New Campus

2006 में नालन्दा विश्वविद्यालय को पुनः स्थापित करने की योजना बनाई गई। राजगीर में किराये के कन्वेंशन सेंटर में कक्षाएं शुरू हुईं। इसके बाद बिहार सरकार ने यूनिवर्सिटी के लिए 242 एकड़ जमीन दी और अब नालंदा का कैंपस (Nalanda University New Campus) बनकर तैयार हो गया है।

नए कैंपस का आर्किटेक्ट डिजाइन बीबी जोशी ने तैयार किया है। नए परिसर में दो शैक्षणिक ब्लॉक का निर्माण किया गया है, जिसमें कुल 40 क्लासरूम और लगभग 1900 छात्रों के बैठने की व्यवस्था है। साथ ही 300 लोगों की बैठने की क्षमता वाला एक बड़ा ऑडिटोरियम भी बनाया गया है। विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों के लिए एक फैकल्टी क्लब और एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का भी निर्माण किया गया है।

नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का परिसर कुल 455 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें कुल 221 संरचनाएँ हैं। कैंपस की इमारतों का निर्माण डेसीकेटेड इवेपोरेटिव तकनीक का उपयोग करके किया गया है। यहां की कंप्रेस्ड स्टेबलाइज ईंटों की दीवारें मोटी कैविटी वाली हैं, जो गर्मियों में ठंडी और सर्दियों में गर्म रहेंगी।

यहां वाटर री-साइकल प्लांट भी लगाया गया है। नए कैंपस में पर्यावरण अनुकूल अध्ययन और गतिविधियां संचालित की जाएंगी। यहां 100 एकड़ भूमि पर एक तालाब है और 150 एकड़ भूमि पर पेड़-पौधे लगाए गए हैं।

कैंपस में एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी बनाई जा रही है। मैनेजमेंट एवं इतिहास की पढ़ाई के लिए अलग-अलग स्कूल बनाए गए हैं। विश्वविद्यालय ने ऑस्ट्रेलिया, भूटान, चीन, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम सहित 17 देशों के साथ एमओयू साइन किया है। नए कैंपस का निर्माण नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के तहत किया गया है।

इस कैंपस की सबसे खास विशेषताओं में से एक यह है कि इसे ‘नेट ज़ीरो’ ग्रीन कैंपस के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जो इसे सौर ऊर्जा संयंत्रों, पानी की रीसाइक्लिंग और पर्यावरण-अनुकूल सुविधाओं के साथ आत्मनिर्भर बनाता है। नालंदा विश्वविद्यालय को भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) देशों के बीच एक सहयोगी प्रयास के रूप में देखा जाता है।

नालंदा विश्वविद्यालय को किसने नष्ट किया और क्यों?

तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालन्दा विश्वविद्यालय में आग लगा दी। कहा जाता है कि यूनिवर्सिटी में इतनी किताबें थीं कि लाइब्रेरी में तीन महीने तक आग जलती रही। उसने कई धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं की हत्या कर दी।

नालंदा विश्वविद्यालय के पीछे की कहानी क्या है?

यद्यपि इसका इतिहास बुद्ध के समय से चला आ रहा है, इसे ‘नालंदा महाविहार’ के नाम से जाना जाता था, इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी में सम्राट कुमारगुप्त द्वारा की गई थी, और यह अगले 700 वर्षों तक फलता-फूलता रहा, जिससे समन्वयात्मक शिक्षण अनुभव को बढ़ावा मिला।

नालंदा विश्वविद्यालय के जनक कौन है?

Nalanda Vishwavidyalaya की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने करवाया था।

प्राचीन भारत में शिक्षा में नालंदा विश्वविद्यालय का क्या योगदान था?

नालंदा विश्वविद्यालय ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रसार में प्राचीन भारत के योगदान को दर्शाता है। Nalanda Vishwavidyalaya को विश्व में ज्ञान के भण्डार के रूप में जाना जाता है। इस विश्वविद्यालय में धार्मिक ग्रंथ, लिट्रेचर, थियोलॉजी,लॉजिक, मेडिसिन, फिलोसॉफी, एस्ट्रोनॉमी जैसे कई विषय पढ़ाये जाते थे।

Deepak Devrukhkar
Deepak Devrukhkar

मेरा नाम दिपक देवरुखकर हैं, और मैं मुंबई, महाराष्ट्र में रहता हूँ। मैंने Commercial Art में डिप्लोमा किया है। मैं GK, भारतीय इतिहास आदि विषयों पर ज्ञान प्रयास के लिए लिखता हूँ।

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