पता:
- विरार, मुंबई,
महाराष्ट्र, भारत,
Indian Mathematician Srinivasa Ramanujan biography in Hindi, भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन जीवन परिचय, Early Life, Education, Unique Identity from Math’s, Changed Life After Reaching Abroad, Returned to India, Death.
अपने हुनर और काम से सबको हैरान कर देनेवाली प्रतिभाएं इस दुनिया में बहुत ही कम पैदा होती हैं। इतना ही नहीं, ये प्रतिभाएं एक ऐसी अमिट छाप छोड़ जाती हैं जिसे सदियों तक मिटाना संभव नहीं है। इन्हीं अद्भुत प्रतिभाओं में से एक हैं भारत के महान गणितज्ञ श्री श्रीनिवास अय्यंगा रामानुजन (Mathematician Srinivasa Ramanujan) जी, जिन्होंने विश्व को गणित का महत्वपूर्ण ज्ञान दिया।
Srinivasa Ramanujan जी को आधुनिक समय के महानतम गणितज्ञों में से एक माना जाता है। हालांकि उन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, लेकिन उन्होंने विश्लेषण और संख्या सिद्धांत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जिसका आज तक कोई मुकाबला नहीं, ऐसा ज्ञान उन्होंने गणित के माध्यम से दुनिया को दिया है।
मात्र 33 साल की उम्र में ही दुनिया को गौरवान्वित करने वाले गणितज्ञ रामानुजन जी ने कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने बड़े से बड़े वैज्ञानिकों और गणितज्ञों को हैरान करने का काम किया है। गरीबी और संघर्ष के बीच जूझते हुए दुनिया के सामने एक मिसाल कायम करने का सफर तय करना भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन (Mathematician Srinivasa Ramanujan) जी के लिए इतना आसान नहीं था। आइए इस लेख में हम जानते हैं, उनके जीवन के कुछ प्रेरक किस्सें।
नाम (Name) | श्रीनिवास रामानुजन |
पूरा नाम | श्रीनिवास रामानुजन् अयंगर |
पिता (Father Name) | श्रीनिवास अयंगर |
माता (Mother Name) | कोमलताम्मल |
पत्नी (Wife Name) | जानकी देवी |
जन्म तारीख (Date of Birth) | 22 दिसंबर 1887 |
जन्म स्थान (Birthplace) | इरोड गांव , कोयंबटूर , तमिलनाडु |
पेशा (Profession) | गणितज्ञ |
धर्मं (Religion) | हिन्दू |
शिक्षा (Education) | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु (Death) | 26 अप्रैल 1920 |
मृत्यु का कारण (Cause of Death) | क्षय रोग |
प्रसिद्धि का कारण | लैंडॉ-रामानुजन् स्थिरांक, रामानुजन्-सोल्डनर स्थिरांक, रामानुजन् थीटा फलन, रॉजर्स-रामानुजन् तत्समक, रामानुजन् अभाज्य, कृत्रिम थीटा फलन, रामानुजन् योग |
22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के कोयंबटूर के इरोड गांव में महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन जी का जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। आजीविका चलाने के लिए उनके पिता श्रीनिवास अयंगर जी मंदिर में वेद-पाठ किया करते थे। इसके साथ ही साथ एक दुकानदार के यहाँ बही-खाता लिखने का काम भी वे करते थे।
जब रामानुजन 1 वर्ष के थे, तब उनका परिवार कुंभकोणम में आकर बस गया। शुरू में रामानुजन का बौद्धिक विकास अन्य सामान्य बच्चों की तरह नहीं था और उन्होंने 3 साल की उम्र तक बोलना भी नहीं सीखा था, जिससे उनके माता-पिता चिंतित थे। जब वे 5 साल के हुए, तब वहाँ के एक प्राथमिक विद्यालय में उनका दाखिला करा दिया गया।
शुरुआत में श्रीनिवास रामानुजन जी का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। लेकिन उन्हें गणित से बहुत ही लगाव था। वह अपना अधिकांश समय गणित पढ़ने में ही व्यतीत करते थे। 10 साल की उम्र में उन्होंने अपने पूरे जिले में सबसे ज्यादा अंक हासिल किए और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल चले गए। रामानुजन जी गणित में इतने प्रतिभाशाली थे, कि उन्होंने कॉलेज स्तर का गणित स्कूल के दिनों में ही पढ़ा था। हाई स्कूल की परीक्षा में गणित और अंग्रेजी में अच्छे अंक प्राप्त करने के कारण उन्हें छात्रवृत्ति मिली, जिससे उन्हें कॉलेज की शिक्षा का मार्ग आसान हो गया।
लेकिन एक ओर जहां वह गणित में तेज थे वहीं दूसरी ओर उन्होंने अन्य विषयों की पढ़ाई छोड़ दी थी। अन्य विषयों की कक्षाओं में भी वह गणित पढ़ते थे, और प्रश्नों को हल करते थे। नतीजतन, वह 11 वीं कक्षा की परीक्षा में गणित को छोड़कर सभी विषयों में फेल हो गए, जिसके कारण Mathematician Srinivasa Ramanujan जी को मिलने वाली छात्रवृत्ति रोक दी गई। पहले से ही उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जिसके कारण पढ़ाई का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर आ गया।
अपने घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए श्री रामानुजन जी ने घर पर ही गणित की ट्यूशन पढानी शुरू कर दी, जिससे उन्हें महीने के मात्र 5 रुपये मिलते थे। उन्होंने साल 1907 में बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी, लेकिन इस बार भी वे असफल रहे। इस विफलता के साथ, उनकी पारंपरिक शिक्षा भी समाप्त हो गई।
पढ़ाई छोड़ने के बाद Mathematician Srinivasa Ramanujan ने घर पर ही रहकर गणित के संबंध में शोध कार्य करना शुरू कर दिया। यह देख उनके पिता को बहुत निराशा हुई। इसलिए उन्होंने Srinivasa Ramanujan जी का विवाह साल 1909 में जानकी देवी से करा दिया। शादी के बाद उनके सामने घर चलाने की समस्या खड़ी हो गई। लेकिन अपने दोस्तों की मदद से उन्हें 30 रुपये मासिक वेतन के साथ नौकरी मिल गई।
Indian mathematician Srinivasa Ramanujan जी को नौकरी मिलने की वजह से गणित के लिए पर्याप्त समय मिलने लगा। रामानुजन जी का शोध धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था, लेकिन अब स्थिति ऐसी थी कि शोध कार्य को एक अंग्रेजी गणितज्ञ की सहायता के बिना आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था। 23 साल की उम्र में ही गणित की एक पत्रिका में रामानुजन जी का एक लेख प्रकाशित हुआ था। इसे पढ़ने के बाद मद्रास इंजीनियरिंग कॉलेज (Madras Engineering College) के प्रोफेसर सर ग्रिफिथ (Sir Griffith) ने उन्हें जी.एच. हार्डी (G.H. Hardy) जो कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी (Cambridge University) के प्रोफेसर थे उन्हें पत्र लिखने के लिए प्रेरित किया।
इसके बाद जब Srinivasa Ramanujan जी ने संख्या सिद्धांत के अपने कुछ सूत्र प्रोफेसर शेषू अय्यर (Professor Seshu Iyer) को दिखाए तो उन्होंने उन्हें उस समय के प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डी के पास भेजने का सुझाव दिया। साल 1913 में, Mathematician Srinivasa Ramanujan जी ने प्रो. हार्डी को एक पत्र लिखकर उनके द्वारा खोजे गए प्रमेयों की एक लंबी सूची भी उन्हें भेज दी। उसके बाद प्रो. हार्डी ने महसूस किया कि उन्हें रामानुजन जी द्वारा किए गए कार्यों को बेहतर ढंग से समझने और आगे शोध करने के लिए उन्हें इंग्लैंड आना चाहिए।
प्रो. हार्डी (Professor Hardy) के अथक प्रयासों के कारण, Indian mathematician Srinivasa Ramanujan जी 17 मार्च 1914 को इंग्लैंड के लिए रवाना हो गए। वहां उनकी मुलाकात प्रोफेसर हार्डी (Professor Hardy) के साथ साथ प्रोफेसर लिटिलवुड्स (Professor Littlewoods) से हुई, उनके निर्देशन में उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज (Trinity College) में दाखिला लिया और अपनी पढ़ाई शुरू की, लेकिन यहां भी उनकी परेशानी खत्म नहीं हुई।
रामानुजन जी नियमों के पक्के व्यक्ति थे। वे शुद्ध शाकाहारी थे, इसलिए वह अपना खाना खुद बनाते थे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि न चाहते हुए भी उनका काफी समय इन सभी कार्यों में व्यतीत हो जाता था।
Indian mathematician Srinivasa Ramanujan जी ने बहुत ही कम समय में इंग्लैंड में रहकर अपनी पहचान बनाई। प्रो. हार्डी के निर्देशन में अध्ययन करते हुए उन्होंने कई गणितीय स्थापनाएँ दीं, जो 1914 और 1916 के बीच विभिन्न शोधपत्रों में प्रकाशित हुए। उनके शोध कार्य ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी थी।
उनकी योग्यता को देखते हुए रॉयल सोसाइटी (Royal Society) ने उन्हें 28 फरवरी 1918 को अपना सदस्य बनाकर सम्मानित किया। इस घटना के कुछ समय बाद ही ट्रिनिटी कॉलेज (Trinity College) ने भी उन्हें अपना साथी (fellow) चुनकर सम्मानित किया।
Srinivasa Ramanujan जी के सख्त नियमों और खान-पान की वजह से उनका शरीर कमजोर हो गया था। इंग्लैंड का सर्द मौसम, उनका शरीर इसे सहन नहीं कर सका। ऐसे में रामानुजन जी को बीमारी ने घेर लिया। जिसके चलते उन्हें वापस भारत आना पड़ा। खराब सेहत के बीच भी वह लगातार गणित में उलझे रहते थे। नतीजतन, उनकी बीमारी बढ़ती चली गई और 26 अप्रैल 1920 को कावेरी नदी के तट पर स्थित कोडुमंडी गांव में मात्र 33 साल की उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई।
कैम्ब्रिज जाने से पहले Indian mathematician Srinivasa Ramanujan जी ने 1903 और 1914 के बीच गणित के 3,542 प्रमेय लिखे थे। उनकी ये सभी नोटबुक बाद में ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, बॉम्बे’ (मुंबई) [Tata Institute of Fundamental Research, Bombay (Mumbai)] द्वारा प्रकाशित की गईं। इन नोट्स पर प्रोफेसर ब्रूस सी. बर्नाड्ट (Professor Bruce C. Berndt) जो इलिनोइस विश्वविद्यालय (University of Illinois) के गणितज्ञ थे, उन्होंने 20 वर्षों तक शोध किया और पांच खंडों में अपना शोध पत्र प्रकाशित किया।
Srinivasa Ramanujan जी की गणितीय प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि उनकी मृत्यु के लगभग 90 साल बाद भी उनके कई प्रमेय अनसुलझे हैं। उनकी इस उल्लेखनीय प्रतिभा का सम्मान करते हुए, भारत सरकार ने उनकी 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में साल 2012 को ‘राष्ट्रीय गणित वर्ष (National Mathematics Year)’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
इसके अलावा हर साल उनके जन्मदिन (22 दिसंबर) को राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) के रूप में भी मनाया जाता है। इतना ही नहीं जिस स्कूल में रामानुजन फेल हुए थे, उसका नाम बाद में रामानुजन जी के नाम पर रख दिया गया।
बचपन से ही Srinivasa Ramanujan जी असाधारण प्रतिभा के धनी थे। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने खुद गणित सीखा और अपने जीवनकाल में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। उनके द्वारा दिए गए अधिकांश प्रमेय गणितज्ञों द्वारा सही साबित हुए हैं। अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने गणित के क्षेत्र में कई मौलिक और अपरंपरागत परिणाम निकाले, जिन पर आज भी शोध किया जा रहा है।
हाल ही में क्रिस्टलोग्राफी में रामानुजन जी के गणितीय सूत्रों का उपयोग किया गया था। उनके कार्यों से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में किए जा रहे कार्यों और इस महान गणितज्ञ को सम्मानित करने के लिए रामानुजन जर्नल की स्थापना भी की गई है।
मात्र 33 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन (Indian mathematician Srinivasa Ramanujan) जी ने आज दुनिया में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है। उनकी सफलता की कहानियां (Success Story) आज सभी को प्रेरित (Motivate) कर रही हैं। श्री रामानुजन जी आज लाखों लोगों के प्रेरणास्रोत (Inspiration) हैं।
श्रीनिवास अयंगर रामानुजन
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के कोयंबटूर के इरोड गांव में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने विभाजन समारोह के गुणों की अग्रणी खोजों सहित संख्याओं के सिद्धांत में योगदान दिया। उनके पत्र अंग्रेजी और यूरोपीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे, और 1918 में उन्हें रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के लिए चुना गया था।
श्रीनिवास रामानुजन भारत के महानतम गणितीय प्रतिभाओं में से एक थे। उन्होंने संख्याओं के विश्लेषणात्मक सिद्धांत में पर्याप्त योगदान दिया और अण्डाकार कार्यों, निरंतर अंशों और अनंत श्रृंखला पर काम किया। 1900 में उन्होंने अपने दम पर ज्यामितीय और अंकगणितीय श्रृंखला के गणित पर काम करना शुरू किया।
रामानुजन ने समझाया कि 1729 एकमात्र संख्या है जो दो अलग-अलग संख्याओं के घनों का योग है: 123 + 13, और 103 + 93। यह रामानुजन के लिए अचानक गणना नहीं थी। अद्वितीय संख्या को बाद में हार्डी-रामानुजन संख्या के रूप में जाना जाने लगा।
22 दिसंबर को देश में राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) मनाया जाता है। देश के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को हुआ था।