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जननायक कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय, Jannayak Karpuri Thakur Biography Hindi, जननायक कर्पूरी ठाकुर के जीवन से जुड़े किस्से, नेपाल में अंडरग्राउंड रहकर बंदूक चलाना सीखा, जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया, मजबूर हो गई अंग्रेजी हुकूमत
भारत सरकार ने समाजवादी नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की है। दिवंगत ठाकुर की 100वीं जयंती से एक दिन पहले राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा यह घोषणा की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्पूरी ठाकुर को ‘सामाजिक न्याय का प्रतीक’ बताते हुए कहा, ‘दलितों के उत्थान के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है।’
जननायक कर्पूरी ठाकुर को उत्तर भारत में सामाजिक न्याय का पर्याय और पिछड़े वर्गों के समर्थक के रूप में जाना जाता है। नाई समुदाय में गोकुल ठाकुर और रामदुलारी देवी के घर जन्मे Jannayak Karpuri Thakur का पैतृक गांव समस्तीपुर जिले का पितौजिया गांव है, जो अब कर्पूरीग्राम के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने एक छोटे किसान के बेटे से लेकर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री और एक बार उपमुख्यमंत्री बनने तक का सफर तय किया। उनके जीवन की सरलता और सादगी के कई किस्से आज भी मिसाल के तौर पर दिए जाते हैं।
जन्म तिथि: | 24 जनवरी 1924 |
जन्मस्थान: | पितौंझिया, समस्तीपुर, बिहार और उड़ीसा प्रांत, ब्रिटिश भारत |
निधन (Died): | 17 फरवरी 1988 (पटना, बिहार, भारत) |
राजनीतिक पार्टी: | भारतीय क्रांति दल |
पिछले कार्यालय: | बिहार के मुख्यमंत्री (22 दिसंबर 1970 – 2 जून 1971), बिहार के मुख्यमंत्री (24 जून 1977 – 21 अप्रैल 1979), बिहार के शिक्षा मंत्री (5 मार्च 1967 – 31 जनवरी 1968) |
पेशा (Occupation): | स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ |
पुरस्कार: | भारत रत्न (2024) |
Jannayak Karpuri Thakur का जन्म 24 जनवरी 1924 को पितौज़िया, समस्तीपुर में हुआ था, बाद में उनके गाँव का नाम कर्पूरीग्राम रखा गया। कर्पूरी ठाकुर जब 6 वर्ष के थे तब उनका दाखिला समस्तीपुर के ताजपुर मिडिल स्कूल में कराया गया, जहां उन्होंने 1933 में 5वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की।
अगले वर्ष 1934 में मकर संक्रांति के दूसरे दिन बिहार में इतनी तीव्रता का भूकंप आया कि हजारों घर ढह गये। जान-माल का भारी नुकसान हुआ, बिहार दौरे पर आये गांधीजी ने कहा, ‘आज बिना किसी भेदभाव के हम सब पर संकट आ गया है। यदि आपने और मैंने इस संकट से कोई नैतिक सबक नहीं सीखा तो हमारी उपेक्षा इस संकट से भी बदतर होगी।
Jannayak Karpuri Thakur गांधीजी की बातों से बहुत प्रभावित हुए, उसी साल 11 साल की उम्र में उनका विवाह हो गया।
Karpuri Thakur ने अपने छात्र जीवन के दौरान ही राजनीति में रुचि लेनी शुरू कर दी थी, जब वे AISF के अनुमंडलीय मंत्री थे। एक दिन समस्तीपुर के कृष्णा टॉकीज में सभा थी, जिसमें कर्पूरी को भी बोलने का मौका मिला। उन्होंने कहा- हमारे देश की जनसंख्या इतनी है कि थूकने मात्र से अंग्रेजी हुकूमत बह जायेगी।
इस भाषण के कारण उनके खिलाफ वारंट जारी किया गया और उन्हें एक दिन की कैद और 50 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। उन्होंने यह सजा स्वीकार कर ली और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गये।
Karpuri Thakur ने 1939 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की जिसके बाद उन्हें दरभंगा के एक कॉलेज में प्रवेश मिल गया, लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। वह अगस्त क्रांति में कूद पड़े। 9 अगस्त 1942 को दरभंगा में छात्रों की एक सभा हुई जहाँ Karpuri Thakur ने क्रांतिकारी भाषण दिया, जिसके परिणामस्वरूप सरकारी भवनों पर तिरंगे झंडे फहराये जाने लगे और रेलवे ट्रैक उखड़ने जाने लगे।
अगस्त क्रांति “भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement)” की याद में मनाया जाने वाला दिन है। गांधीजी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस आंदोलन की शुरुआत की और 8 अगस्त 1942 को “भारत छोड़ो” प्रस्ताव पारित किया गया। यह दिन राष्ट्रीय एकता, स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि और अन्य कार्यक्रमों द्वारा चिह्नित है।
अंग्रेज़ Karpuri Thakur की तलाश में थे और वे नेपाल जाकर भूमिगत आंदोलन में शामिल हो गये। नेपाल में ही उनकी मुलाकात जयप्रकाश नारायण से हुई। उन्होंने नेपाल के सुरंगा पहाड़ में आजाद दस्ता का प्रशिक्षण देखा। नित्यानंद सरदार और गुलेली सरदार ट्रेनर थे। वहां बंदूक चलाना और बम बनाना सिखाया जाता था। कर्पूरी ठाकुर ने भी वहा अपनी ट्रेनिंग शुरू कर दी।
यहां जयप्रकाश नारायण की शिक्षाएं काम आती हैं, ‘हमें बदला नहीं बल्कि बदलाव चाहिए, युद्ध की कला नहीं बल्कि क्रांति का विज्ञान चाहिए।’ इसके बाद कर्पूरी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये।
Jannayak Karpuri Thakur ने स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत समस्तीपुर के पितुजिया स्थित एक स्कूल से की थी। एक रात 2 बजे अचानक पुलिस ने स्कूल को घेर लिया और कर्पूरी ठाकुर को उनके साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें एक साल की सजा सुनाई गयी।
इसके बाद उन्होंने जेल के कैदियों को संगठित किया और आंदोलन शुरू हो गया। परेशान होकर अंग्रेजों ने उन्हें भागलपुर जेल में स्थानांतरित कर दिया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। जननायक Karpuri Thakur ने भागलपुर में आमरण अनशन शुरू किया, 29वें दिन जब वे मरणासन्न हुए, तो उनकी मांगें मानी गई।
कर्पूरी ठाकुर की जेल यात्रा 26 महीने बाद नवंबर 1945 में ख़त्म हो गई। वह कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य बन गये, और उन्होंने नारा दिया – जो कमाएगा वह खाएगा, जो लूटेगा वह जाएगा, नया युग आएगा। यह नारा गांव-गांव में गूंजने लगा।
आजादी के कुछ ही महीनों बाद जननायक कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में किसानों का संगठन ‘हिन्द किसान पंचायत’ पूरे बिहार में प्रसिद्ध हो गया। 1952 में पहला आम चुनाव हुआ, लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी हुए।
Karpuri Thakur समस्तीपुर के ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार बने। उन्होंने साइकिल और पैदल प्रचार करना शुरू किया और कांग्रेस उम्मीदवार को हराया और तब से 1988 तक वे बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे।
किताब में उनके बेटे रामनाथ ठाकुर कहते हैं, ‘विधायक बनने के बाद जननायक को एक प्रतिनिधिमंडल के साथ ऑस्ट्रिया जाना था, लेकिन उनके पास कोट नहीं था, इसलिए उन्होंने एक दोस्त से कोट मांगा और ऑस्ट्रिया चले गए। इसके बाद वे यूगोस्लाविया गए तो मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोट फटा हुआ है। इसके बाद उन्होंने Karpuri Thakur को एक कोट उपहार स्वरूप दिया।
एक बार जब पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह कर्पूरी ठाकुर के घर आये तो उनके घर का दरवाज़ा इतना छोटा था कि चौधरी चरण सिंह को सिर में चोट लग गयी। इस पर चरण सिंह ने कहा, ‘कर्पूरी, इसे थोड़ा बड़ा कर दो।’ उधर से कर्पूरी ठाकुर का जवाब आया, ‘क्या मेरा घर बड़ा करने से बिहार के गरीबों का घर बन जायेगा?’
एक बार जननायक कर्पूरी ठाकुर मंच से भाषण दे रहे थे और इस दौरान वे बोफोर्स घोटाले पर राजीव गांधी के कथित स्विस बैंक खाते का जिक्र कर रहे थे। भाषण के दौरान उन्होंने धीरे से कागज की एक पर्ची पर लिखा कि ‘कमल’ का अंग्रेजी में क्या मतलब होता है?
लोकदल के तत्कालीन जिला महासचिव हलधर प्रसाद ने उस पर्ची पर ‘लोटस’ लिखकर कर्पूरी की ओर बढ़ा दिया। इसके बाद उन्होंने कहा, ‘राजीव का मतलब कमल होता है और कमल को अंग्रेजी में लोटस कहा जाता है। राजीव गांधी का स्विस बैंक में इसी नाम से खाता है।’
1960 के दशक में देश में कांग्रेस के विरुद्ध समाजवादी आंदोलन जोर पकड़ रहा था; 1967 के आम चुनाव में डॉ. राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में गैर-कांग्रेसवाद का नारा दिया गया। कांग्रेस की हार हुई और बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। सत्ता में आम लोगों और पिछड़ों की भागीदारी बढ़ी। उस सरकार में Karpuri Thakur उपमुख्यमंत्री बने। 1977 में जनता पार्टी की जीत के बाद वह बिहार के मुख्यमंत्री बने।
1967 में जब वे पहली बार उपमुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता समाप्त कर दी। इस कारण उनकी आलोचना भी हुई, उस समय अंग्रेजी में फेल होने वाले मैट्रिक पास लोगों को ‘कर्पूरी डिवीजन से पास हुए हैं’ कहकर उनका मजाक उड़ाया जाता था।
Jannayak Karpuri Thakur पहली बार 1970 में मुख्यमंत्री बने तब उनकी सरकार केवल 163 दिनों तक ही चली थी। 1977 में जब वे दोबारा मुख्यमंत्री बने तो बिहार SC-ST के अलावा OBC के लिए आरक्षण लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया।
1978 में मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, जननायक कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में कई स्तरों पर आरक्षण लागू किया, जिसमें कुल 26% आरक्षण दिया गया। इसमें से 20% आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग यानी OBC के लिए था, जबकि महिलाओं और ऊंची जातियों समेत आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 3-3% आरक्षण भी इस व्यवस्था में शामिल किया गया था।
दिलचस्प बात यह है कि आरक्षण की इस व्यवस्था का भारतीय जनसंघ ने कड़ा विरोध किया था, जबकि जनसंघ उस समय जनता पार्टी सरकार की मुख्य हिस्सेदार थी।
राजनीतिक धनबल, बाहुबल और घोटालों के युग में यह सुनकर लोगों को आश्चर्य होगा कि एक नेता दो बार मुख्यमंत्री रहने और तीन दशक से अधिक समय तक लगातार चुनाव जीतने के बाद भी रिक्शा की सवारी करता है। ऐसे समय में जब राजनीति में धनबल, बाहुबल और चुनाव प्रचार में करोड़ों रुपये खर्च की बातें आम हैं, वहीं Jannayak Karpuri Thakur जैसे नेता राजनीति में मिलना दुर्लभ है।
उनकी राजनीतिक बुद्धिमत्ता से जुड़ी एक और कहानी यह है कि, जब वे मुख्यमंत्री थे तो उनके गाँव के कुछ दबंग सामंतों ने उनके पिता का अपमान करने की कोशिश की थी। यह खबर फैलते ही डीएम कार्रवाई करने गांव पहुंचे, लेकिन Karpuri Thakur ने उन्हें कार्रवाई करने से रोक दिया। उन्होंने कहा कि गांव-गांव में दबे-कुचले पिछड़ों का अपमान हो रहा है, पुलिस उन सभी की सुरक्षा करेगी तो कोई समस्या नहीं होगी।
राजनीति में इतने लंबे सफर के बाद जब उनका निधन हुआ तो उनके पास अपने परिवार को देने के लिए अपने नाम पर एक घर भी नहीं था। वह पटना में और अपने पैतृक स्थान पर एक इंच भी जमीन नहीं खरीद सके। उनकी ईमानदारी की कई कहानियां आज भी बिहार में सुनी जाती हैं।
जब Jannayak Karpuri Thakur पहली बार उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री बने तो तो उन्होंने अपने बेटे रामनाथ को एक पत्र लिखा था। इसका जिक्र करते हुए उनके बेटे रामनाथ ने एक इंटरव्यू में कहा था कि पत्र में केवल तीन बातें लिखी थीं, ‘तुम इसके प्रभाव में मत आना, अगर कोई तुम्हें लालच देता है तो उसके झांसे में मत आना, मेरी बदनामी होगी।’
उन्होंने नौकरी दिलाने के लिए सिफ़ारिश मांगी। Jannayak Karpuri Thakur उनकी बात सुनकर गंभीर हो गए और उन्होंने नौकरी के लिए सिफ़ारिश करने के बजाय अपनी जेब से 50 रुपये निकालकर उन्हें दे दिए और कहा, ‘जाइए, उस्तरा वगैरह खरीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा चालू कर लीजिए।’
Jannayak Karpuri Thakur ने अपना पूरा जीवन कांग्रेस के खिलाफ राजनीति में बिताया। आपातकाल के दौरान उन्हें गिरफ्तार करने की इंदिरा गांधी की सभी कोशिशें विफल रहीं। वे सर्वोच्च स्थान पर पिछड़े समाज के व्यक्ति को देखना चाहते थे और राजनीति में परिवारवाद के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने जीवन भर अपने परिवार के किसी भी सदस्य को राजनीति में नहीं आने दिया।
उत्तर भारत में सामाजिक न्याय के पर्याय और पिछड़े वर्गों के समर्थक के रूप में जाने जाने वाले समाजवादी नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री Jannayak Karpuri Thakur को उनकी 100वीं जयंती पर भारत सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की है।
जननायक कर्पूरी ठाकुर बिहार की अति पिछड़ी जाति नाई से ताल्लुक रखते थे।
कर्पूरी ठाकुर एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ और बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री थे।
कर्पूरी ठाकुर का निधन 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था, उस समय उनकी 64 वर्ष थी।
जननायक कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे और पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे। मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल विभिन्न गरीब समर्थक पहलों द्वारा चिह्नित किया गया था, जिसमें भूमि सुधार और वंचितों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से नीतियों का कार्यान्वयन शामिल था।