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- विरार, मुंबई,
महाराष्ट्र, भारत,
Social Worker Sindhutai Sapkal Biography in Hindi, श्रीमती सिंधुताई सपकाल जीवन परिचय, 9 साल की उम्र में, कई साल बड़े आदमी से शादी कर दी गई, ससुराल वालों ने सारे कई कष्ट दिए, ऐसे मिली अनाथ बच्चों को सहारा देने की प्रेरणा, बच्चों का लालन-पालन किया भीख मांग कर, Sindhutai Sapkal Foundation, Sindhutai Sapkal Awards
1400 से अधिक अनाथ बच्चों के जीवन में उजाला करने वाली श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Mrs. Sindhutai Sapkal) जी जिन्हे “अनाथांची माय” भी कहा जाता था, जो कभी शमशान की चिता पर रोटियां पकाने को हुईं थी मजबूर, आज इस लेख में जानते है उनके जीवन की प्रेरक कहानी।
स्त्री के अनेक रूप हैं, जब प्रेम से अटूट विश्वास मिला तो ‘विद्रोही’ मीरा बन गई। दृढ़ संकल्प के साथ अपने पति को काल के पंजों से खिंच लाने वाली स्त्री सावित्री बन गई। नारी की पराक्रमी भुजाओं में अनंत कहानियाँ हैं।
एक स्त्री अपने बच्चों के लिए मां के रूप में भगवान के समान होती है, जो बच्चों के जन्म से लेकर उनके पालन-पोषण तक हर ख़ुशी, जरूरत का ख्याल रखती है। लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसी मां के बारे में सुना है, जो न केवल बिना मां-बाप के बच्चों की मां बनी, बल्कि उनके लिये सड़कों पर भीख मांगती रही। वह महिला श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी हैं, जो 1400 अनाथ बच्चों की मां बनी थी।
नाम (Name) | सिंधुताई सपकाल |
उपनाम | अनाथों की मां |
जन्म तिथि | 14 नवंबर 1947 |
जन्म स्थान | वर्धा, महाराष्ट्र, भारत |
पेशा (Profession) | सामाजिक कार्यकर्ता |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पति का नाम | श्रीहरि सपका |
मृत्यु (Death) | 4 जनवरी 2022 |
उम्र (Age) | 73 साल (मृत्यु के समय) |
मृत्यु का कारण | हार्ट अटैक |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी ने ममता की ऐसी मिसाल पेश की है, जिसकी जीतनी तारीफ की जाये उतनी कम ही होगी। श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके जीवन की प्रेरक कहानी आज भी हमारे बीच मौजूद है। दूसरों की मदद के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाली सिंधुताई ने अपना पूरा जीवन काफी संघर्ष में बिताया था। सिंधु ताई को महाराष्ट्र की मदर टेरेसा भी कहा जाता है। आइए जानते हैं उनके जीवन के प्रेरणादायक सफर के बारे में।
महाराष्ट्र के वर्धा जिले में एक चरवाहे परिवार में 14 नवंबर 1947 को श्रीमती सिंधुताई जी का जन्म हुआ। उन्होंने बचपन से ही बहुत बहुत सारे कष्टों को सहा है। श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उनका परिवार मवेशी चराकर अपना गुजारा करता था। सिंधुताई के पिता उन्हें पढ़ाना चाहते थे, जबकि उनकी मां घर की आर्थिक स्थिति के कारण उनकी शिक्षा का विरोध करती थीं।
हालांकि उनके पिताजी अपनी पत्नी के खिलाफ गए और अपनी बेटी (श्रीमती सिंधुताई) को स्कूल भेजने लगे। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें चौथी कक्षा में ही स्कूल छोड़ना पड़ा। जब सिंधुताई 9 साल की थीं, तब उनके परिवार वालों ने उनकी शादी अपने से कई साल बड़े व्यक्ति से कर दी गई थी। श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी ने केवल चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की थी, और वह आगे भी पढ़ना चाहती थी लेकिन शादी के बाद ससुराल वालों ने उनका ये सपना पूरा नहीं होने दिया।
20 साल की उम्र तक श्रीमती सिंधुताई 3 बच्चों की मां बन चुकी थीं। श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी में मन में हमेशा गरीबों और पीड़ितों के लिए दया थी। एक बार उन्होंने जिला अधिकारी से महिलाओं को मजदूरी के पैसे ना देने वाले गाँव के मुखिया की शिकायत कर दी। इससे क्रोधित होकर गाँव के मुखिया ने श्रीमती सिंधुताई के विरुद्ध षडयंत्र रचा और उन्हें उनके पति द्वारा ही घर से बाहर निकाल दिया।
उस समय श्रीमती सिंधुताई 9 माह की गर्भवती थीं। पति द्वारा मारपीट कर घर से निकाले जाने के बाद श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी ने बेहोशी की हालत में गायों के बीच एक बेटी को जन्म दिया और फिर अपने हाथ से नाल भी काट दी। उन्होंने पत्थर से मारकर अपनी गर्भनाल को काट दिया था।
श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी के पास कोई आश्रय नहीं था, क्योंकि उनके पिता का देहांत हो गया था और उनकी माता ने श्रीमती सिंधुताई को घर में आने से मना कर दिया था। ऐसे में वह ट्रैन में भीख मांगने लगी ताकि अपना पेट भर सकें। कभी-कभी वह श्मशान घाट में चिता की रोटी भी खाती थी। जीवन की इन विपरीत परिस्थितियों में कई बार उन्होंने आत्महत्या करने के बारे में भी सोचा।
श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी अपने जीवन से पूरी तरह निराश हो चुकी थीं। इसी बीच उन्हें रेलवे स्टेशन पर एक बेसहारा बच्चा मिला। उस समय उनके मन में एक विचार आया कि देश में ऐसे कितने बच्चे होंगे जिन्हें माँ की जरुरत होगी। तभी से उन्होंने तय कर लिया कि जो भी अनाथ बच्चा उनके पास आएगा वह उस बच्चे की मां बनेगी। बेसहारा बच्चों को सहारा देने के लिए उन्होंने अपनी खुद की बेटी को एक ट्रस्ट में गोद दे दिया और खुद पूरी तरह से बेसहारा बच्चों की मदद करने में जुट गईं।
अनाथ बच्चों को पालने के लिए श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी ने रेलवे स्टेशन पर गाना गाना शुरू किया और बदले में लोग पैसे देने लगे और उस पैसे से श्रीमती सिंधुताई भिखारी बच्चों की देखभाल करने लगीं। उन्होंने फैसला किया की अब मरना नहीं है, बल्कि मरते हुए को जिन्दा करके उन्हें जीवन देना है। उन्हें मुश्किलों में भी जीना सिखाना होगा।
श्रीमती सिंधुताई मंदिरों में जाती थीं, भीख मांगती थीं, गाती थीं और वहाँ से मिलने वाले पैसे से भिखारी बच्चों की देखभाल करती थीं। अब लोगो को श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी के बारे में पता चलने लगा। लोग उन्हें माई और भिखारी बच्चों की मां (अनाथांची माय) के रूप में जानने लगे।
श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी ने अनाथ बच्चों की सेवा में अपना पूरा जीवन लगा दिया। उन्होंने अनाथ बच्चों के पालन-पोषण लिए कई जगह पर भाषण दिया। सिंधुताई ने अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम बनाने के लिए कई शहरों और गांवों का दौरा किया। श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी ने अनाथ बच्चों को सिर्फ सहारा ही नहीं दिया बल्कि उन्हें अच्छी शिक्षा भी दी।
उनके द्वारा गोद लिए गए कई बच्चे आज डॉक्टर, वकील और अन्य पदों पर कार्यरत हैं। श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी द्वारा शुरू की गई यह श्रृंखला महाराष्ट्र की 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाओं में तब्दील हो गई है। इन संस्थाओं में 1500 से ज्यादा बेसहारा बच्चे एक परिवार की तरह रहते हैं। श्रीमती सिंधुताई को यहाँ के सभी बच्चों की माता कहा जाता है। उन्हें महाराष्ट्र की मदर टेरेसा के नाम से भी जाना जाता है।
अनाथ बच्चों की मां कही जाने वाली सिंधुताई के कई बच्चों की शादी भी हो चुकी है। उनसे शिक्षा प्राप्त करने के बाद आज कई बच्चे अच्छे पदों पर कार्यरत हैं। श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी के उत्कृष्ट कार्य को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया था।
इतना ही नहीं श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी ने बेसहारा बच्चों और महिलाओं के लिए जो किया वह अपने आप में एक उदाहरण है। इन अच्छे कार्यों के लिए उन्हें 700 से अधिक सम्मानों से सम्मानित किया गया था। श्रीमती सिंधुताई को DY पाटिल इंस्टिट्यूट द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि भी प्रदान की गई है।
4 जनवरी 2022 को दिल का दौरा पड़ने से श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी का 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लेकिन श्रीमती सिंधुताई के अद्भुत कार्य हमारे बीच हमेशा जीवित रहेंगे और लोगों को प्रेरित करते रहेंगे। श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा (Inspiration) हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर सफलता की नई कहानी (Success Story) लिखी है।
महाराष्ट्र के वर्धा जिले में एक चरवाहे परिवार में 14 नवंबर 1948 को श्रीमती सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) जी का जन्म हुआ।
श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी को महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए महाराष्ट्र राज्य “अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार” सहित कुल 273 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।
श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी को अनाथों की माता (अनाथांची माय) के रूप में जाना जाता है।
4 जनवरी 2022 को दिल का दौरा पड़ने से श्रीमती सिंधुताई सपकाल जी का 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया।