महाकुंभ का पौराणिक इतिहास | Kumbh Mela History in Hindi

महाकुंभ का पौराणिक इतिहास, Kumbh Mela History, Kumbh Mela Places, महाकुंभ से जुड़ी पौराणिक कथा, ऋग्वेद में ‘कुंभ’ का अर्थ क्या है, कुंभ मेले की तारीख कैसे तय की जाती है?, कुंभ मेलों के प्रकार, शाही स्नान या अमृत स्नान?, महाकुंभ का महत्व

Table of Contents

13 जनवरी 2025 पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है। यह 45 दिवसीय महाकुंभ 6 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि पर इसका समापन होगा। यह हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक पर्व है।

महाकुंभ का आयोजन हर 12 वर्षों बाद किया जाता है। इस महापर्व में देश-विदेश से लाखों-करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होने के लिए आते हैं। इसके साथ ही प्रयागराज के महाकुंभ में साधु-संतों का भी जमावड़ा लगता है। इस मेले में साधु-संतों का स्वागत बेहद भव्य तरीके से किया जाता है। इस दौरान संगम में स्नान-दान का विशेष महत्व होता है। लगभग 40 करोड़ लोगों के धार्मिक समागम में शामिल होने की उम्मीद है।

Kumbh Mela History | महाकुंभ का पौराणिक इतिहास

कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है। इतिहास में कुंभ मेले की शुरुआत कब हुई, किसने की, इसकी किसी ग्रंथ में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है परन्तु इसके बारे में जो प्राचीनतम वर्णन मिलता है वह सम्राट हर्षवर्धन के समय का है, जिसका चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग द्वारा किया गया है.

ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन कुछ कहानियों के अनुसार कुंभ मेले की शुरुआत समुद्र मंथन के प्राचीन काल से हुई थी। शास्त्रों में कहा गया है कि पृथ्वी पर एक वर्ष देवताओं का एक दिन होता है, इसलिए Kumbh Mela हर बारह साल बाद उसी स्थान पर पुनः आयोजित किया जाता है।

देवताओं के बारह वर्ष पृथ्वी पर 144 वर्ष के बाद आते हैं। ऐसा माना जाता है कि 144 वर्षों के बाद स्वर्ग में भी कुंभ मेले का आयोजन होता है, इसलिए उस वर्ष पृथ्वी पर महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। प्रयाग को महाकुंभ मेले के लिए निर्दिष्ट स्थान माना जाता है।

प्रयाग का उल्लेख 7वीं शताब्दी में एक चीनी यात्री के लेखन में मिलता है।

चीनी यात्री ह्वेन त्सांग 7वीं शताब्दी में भारत आया था। उन्होंने अपने अभिलेखों में यहां की कई परंपराओं का उल्लेख किया है।

टी. वाटर्स अपनी किताब ‘बुद्धिस्ट रिकॉर्ड्स ऑफ वेस्टर्न वर्ल्ड’ में ह्यून त्सांग के हवाले से लिखते हैं-

  • ‘कन्नौज का राजा हर्षवर्धन हर 5 साल में एक बार प्रयागराज में संगम पर माघ के महीने में अपनी संपत्ति दान करता था । ‘
  • ह्यून त्सांग ने हर्षवर्धन के अलावा कपीस और मालवा के राजाओं के भी इसी तरह दान करने का जिक्र किया है।
  • इस दस्तावेज में कुंभ पर्व का सीधा जिक्र नहीं है, लेकिन ये जरूर पता चलता है कि माघ के महीने में प्रयाग के संगम पर धार्मिक आयोजन होता था ।

महाकुंभ से जुड़ी पौराणिक कथा:

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तब भगवान धन्वंतरि अमृत कलश यानि कुंभ लेकर प्रकट हुए थे। देवताओं के कहने पर इन्द्र पुत्र जयन्त अमृत से भरा कलश लेकर भागने लगे तो दैत्य भी जयन्त के पीछे भागने लगे। अमृत ​​कलश प्राप्त करने के लिए देवताओं और दानवों के बीच बारह दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ।

ऐसा माना जाता है कि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक साल के बराबर होता है। Kumbh Mela उस स्थान पर आयोजित किया जाता है जहां इस युद्ध के दौरान अमृत की बूंदें गिरी थीं। अमृत ​​की बूंदें चार स्थानों पर गिरी – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन्ही चार स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।

अमृत ​​कलश से छलक पड़ीं चार बूंदें, आज वहां हो रहा है कुंभ मेला

किंवदंती के अनुसार, देवताओं ने राक्षसों से अमृत कलश चुरा लिया था, लेकिन इसे स्वर्ग ले जाते समय रास्ते में इसकी चार बूंदें गिर गईं। ये चार बूंदें पृथ्वी पर हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में गिरी। इसलिए ये चारों स्थान पवित्र हो गए और यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती थी। सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति और शनि जयंत के साथ अमृत कलश चुराने गये थे। इन ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही यह तय किया जाता है कि कुंभ कहां मनाया जाएगा।

  • हरिद्वार: चैत्र मास में जब गुरु, शनि की कुंभ राशि में हाँ और सूर्य मेष राशि में हों।
  • प्रयागराजः माघ मास में जब गुरु, मेष या वृषभ राशि में हों और सूर्य और नवचंद्र दोनों शनि की मकर राशि में हों।
  • उज्जैन: चैत्र मास में गुरु जब सिंह राशि में हाँ और सूर्य जब मेष राशि में हों।
  • नासिकः भाद्रपद मासः में जब सूर्य और गुरु दोनों सूर्य की अपनी सिंह राशि में हों या जब सूर्य, चंद्र और गुरु तीनों अमावस्या के दिन कर्क राशि में हों।

वेदों में ‘कुम्भ’ शब्द का उल्लेख कई स्थानों पर मिलता है। यह एक घड़े और पानी की धारा से जुड़ा हुआ है। लेकिन वेदों के अनुसार कुंभ का संबंध अमृत मंथन की कहानी या हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक के कुंभ पर्वों से नहीं है।

ऋग्वेद (10/89/7) के अनुसार,

ऋग्वेद में ‘कुंभ’ का अर्थ क्या है:

‘कुम्भ’ शब्द ऋग्वेद के 10वें मंडल के 89वें स्तोत्र के 7वें मंत्र में मिलता है, जो इंद्र के बारे में है। इसमें इन्द्र को शत्रुओं का नाश करने वाला तथा जल देने वाला बताया गया है। ऋग्वेद में कुंभ का अर्थ कच्चा घड़ा है। लेकिन इसका कुंभ मेले या स्नान से कोई संबंध नहीं है।

वहीं, ‘पूर्ण कुंभ’ शब्द पहली बार ऋग्वेद के 600 वर्ष बाद लिखे गए अर्थवेद में चौथे मंडल के 34वें सूक्त में आता है। पूर्ण कुंभ को समय का प्रतीक माना गया है। ऋग्वेद के 10वें मंडल के 75वें सूक्त में भी गंगा, यमुना और सरस्वती का उल्लेख है, जो संगम का संकेत देता है। वहीं प्रयाग का उल्लेख महाभारत और पुराणों में भी मिलता है। हालाँकि, वेदों और पुराणों में कुंभ मेले का कोई स्पष्ट वर्णन नहीं है।

कुंभ मेले की तारीख कैसे तय की जाती है?

Kumbh Mela किस स्थान पर आयोजित किया जाएगा यह राशियों पर निर्भर करता है। कुंभ मेले में सूर्य और बृहस्पति की विशेष भूमिका मानी जाती है। कुंभ मेला तभी मनाया जाता है जब सूर्य और बृहस्पति एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं और इसी आधार पर स्थान और तिथि तय की जाती है।

  • जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तो प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
  • जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है, तो हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
  • जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, तो नासिक में महाकुंभ मेला मनाया जाता है।
  • जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तो उज्जैन में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। यहां हम आपको बता दें कि जब सूर्य देव सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तो मध्य प्रदेश के उज्जैन में मनाए जाने वाले कुंभ मेले को सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है।

कुंभ मेलों के प्रकारः

  • महाकुंभ मेला: यह केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। यह प्रत्येक 144 वर्ष या 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद होता है।
  • पूर्ण कुंभ मेला: यह हर 12 साल में आता है। भारत में मुख्य रूप से 4 मेला स्थान हैं, प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। यह हर 12 साल में इन 4 स्थानों पर बारी-बारी से आता है।
  • अर्ध कुंभ मेला: इसका मतलब है आधा Kumbh Mela जो भारत में हर 6 साल में केवल दो स्थानों यानी हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।
  • कुंभ मेला: राज्य सरकारों द्वारा हर तीन साल में चार अलग-अलग स्थानों पर आयोजित किया जाता है। लाखों लोग आध्यात्मिक उत्साह के साथ इसमें भाग लेते हैं।
  • माघ कुंभ मेला: इसे मिनी कुंभ मेला भी कहा जाता है जो हर साल और केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह माघ महीने में आयोजित किया जाता है।

शाही स्नान या अमृत स्नान?

महाकुंभ के दौरान एक विशिष्ट तिथि पर होने वाले स्नान को “शाही स्नान” (अब अमृत स्नान) कहा जाता है। इस नाम के पीछे एक विशेष महत्व और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है। ऐसा माना जाता है कि नागा साधुओं को उनकी धार्मिक निष्ठा के कारण पहले स्नान करने का अवसर दिया जाता है। वे हाथी, घोड़े और रथ पर सवार होकर शाही अंदाज में स्नान करने आते हैं। इस भव्यता के कारण इसे शाही स्नान नाम दिया गया है।

शाही स्नान की शुरुआत कब हुई?

धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से शाही स्नान को लेकर अलग-अलग राय है। धार्मिक विशेषज्ञों के अनुसार शाही स्नान की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है और किसी विशेष ग्रह स्थिति के दौरान किए गए स्नान को शाही स्नान कहा जाता है। वहीं इतिहासकारों का मानना ​​है कि मध्यकाल में ऋषि-मुनियों को विशेष सम्मान देने के लिए राजाओं ने उन्हें कुंभ में पहला स्नान करने की अनुमति दी और इसे देखते हुए महाकुंभ के पहले स्नान को शाही स्नान कहा गया।

महाकुंभ में शाही स्नान का क्या महत्व है?

शाही स्नान एक ऐसा स्नान है जो मन की सारी अशुद्धियों को भी दूर करता है। शाही स्नान के दौरान सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं। इसके बाद ही आम जनता स्नान कर सकती है।

शाही स्नान के दिन संगम में स्नान करने से कई गुना अधिक पुण्य मिलता है। इतना ही नहीं, शाही स्नान के दिन स्नान करने से व्यक्ति को इस जन्म के साथ-साथ पिछले जन्मों के पापों से भी मुक्ति मिलती है। महाकुंभ में शाही स्नान के दिन स्नान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।

महाकुंभ का महत्व

महाकुंभ में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं। इतना ही नहीं कुंभ में स्नान करने से मोक्ष भी मिलता है। इसके अलावा कुंभ मेले को आध्यात्मिक ज्ञान, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक माना जाता है। लोग आध्यात्मिक ज्ञान और मन की शांति के लिए कुंभ मेले में आते हैं। नागा साधुओं से लेकर अन्य महान संत महाकुम्भ में आते है, जिनका आशीर्वाद लेने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से कुंभ मेले में भाग लेते हैं।

महाकुंभ आस्था के साथ-साथ आजीविका का साधन भी है।

सरकारी अनुमान के अनुसार, यदि 40 करोड़ पर्यटकों में से प्रत्येक औसतन 5,000 रुपये खर्च करता है, तो महाकुंभ से 2 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हो सकता है। वहीं, उद्योग जगत का अनुमान है कि महाकुंभ में प्रति व्यक्ति औसत खर्च 10,000 रुपये तक हो सकता है। ऐसे में कुल 4 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार हो सकेगा।

इससे देश के नाममात्र और वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में एक प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो सकती है। यदि मेले से दो लाख करोड़ रुपये का कारोबार होता है तो उत्तर प्रदेश सरकार को 25,000 करोड़ रुपये का राजस्व मिल सकता है।

होटल और पर्यटन उद्योग में रोजगार बढ़ा

  • महाकुंभ ने होटल और पर्यटन उद्योग के कारोबार को बढ़ावा दिया है। ओयो के प्रवक्ता ने बताया कि महाकुंभ के कारण बुकिंग दोगुनी हो गई है। दूसरी ओर, शाही स्नान के दिनों में कमरों की मांग तीन गुना बढ़ जाती है।
  • मेक माय ट्रिप के अनुसार प्रयागराज में सर्च में हर साल 23 गुना वृद्धि हुई है। कंपनी ने कहा कि महाकुंभ के पहले और आखिरी सप्ताह के दौरान यात्रा की मांग बढ़ गई है।
कुंभ मेले के पीछे की कहानी क्या है?

पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवता अमृत का कुंभ (कलश) ले जा रहे थे, तो उनका राक्षसों के साथ युद्ध हुआ और अमृत की चार बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं – प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। तीर्थस्थल वे स्थान हैं जहाँ भक्त मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।

कुंभ मेला 12 साल में क्यों लगता है?

कुंभ मेले में 12 वर्ष के अंतराल का एक कारण यह है कि बृहस्पति को सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में 12 वर्ष लगते हैं। कुंभ मेला वेबसाइट के अनुसार, कुंभ का आयोजन हरिद्वार में तब होता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में होता है और सूर्य और चंद्रमा क्रमशः मेष और धनु राशि में होते हैं।

कुंभ के मेले की क्या विशेषता है?

कुंभ मेला (पवित्र घड़े का उत्सव) पृथ्वी पर तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है, जिसमें प्रतिभागी पवित्र नदी में स्नान करते हैं। भक्तों का मानना ​​है कि गंगा में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।

कुंभ मेले में शाही स्नान क्या है?

महाकुंभ के दौरान एक विशिष्ट तिथि पर होने वाले स्नान को “शाही स्नान” (अब अमृत स्नान) कहा जाता है। गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम को त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कुंभ मेले के दौरान इस पवित्र जल में डुबकी लगाने से आपके पाप धुल जाते हैं।

Priya Devrukhkar
Priya Devrukhkar

प्रिया देवरुखकर Gyan Prayas के सर्च इंजिन ऑप्टिमाइजेशन टीम का हिस्सा हैं, और एडिटर के रूप में भी काम करती हैं। ये Gyan Prayas के लिए सामान्य ज्ञान, करंट अफेयर्स जैसे विषयों पर लिखती हैं।

Articles: 21

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *