पता:
- विरार, मुंबई,
महाराष्ट्र, भारत,
‘स्कैम 1992 (Scam 1992)’ के निर्माता हंसल मेहता की अपनी दूसरी वेब सीरीज ‘Scam 2003: The Curious Case of Abdul Karim Telgi‘ पत्रकार संजय सिंह की किताब ‘रिपोर्टर्स डायरी (Reporter’s Diary)’ पर आधारित है।
1992 से 2002 के बीच Abdul Karim Telgi के खिलाफ 25 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए, लेकिन उच्च अधिकारियों की मदद से वह 2001 तक बचा रहा। अंततः नवंबर 2001 में उसे गिरफ्तार कर था लिया गया।
वेब सीरीज ‘स्कैम 1992: द हर्षद मेहता स्टोरी’ में हर्षद मेहता स्कैम की कहानी बताई गई है। हर्षद मेहता ने करीब 5000 करोड़ का घोटाला किया था, जिसकी जानकारी मिलने के बाद हर कोई हैरान रह गया था। इसके निर्माता हंसल मेहता ने ‘स्कैम 2003: द क्यूरियस केस ऑफ अब्दुल करीम तेलगी’ नाम से एक और वेब सीरीज बनाई हैं।
इसमें उन्होंने अब्दुल करीम तेलगी (Abdul Karim Telgi) की कहानी दिखाई है, जो घोटाला हर्षद मेहता से करीब 6 गुना बड़ा है। इस घोटाले का सबसे अहम पहलू यह है कि घोटाला उजागर होने के बाद सरकार को इस घोटाले में छपे सभी फर्जी स्टाम्प पेपर्स को वैध करना पड़ा, आखिर सरकार की क्या मजबूरी थी? आइए जानते हैं कि तेलगी ने यह घोटाला कैसे किया।
अब्दुल करीम तेलगी का जन्म 29 जुलाई 1961 को, कर्नाटक के खानपुर में हुआ था। उसके पिता भारतीय रेलवे में कार्यरत थे। जब तेलगी छोटा था तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई। पिता की मौत के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी तेलगी के कंधों पर आ गई। अपनी जीविका चलाने के लिए तेलगी ने अपने परिवार के साथ स्टेशन पर मूंगफली, फल और सब्जियाँ बेचना शुरू कर दिया। साथ ही सर्वोदय विद्यालय खानपुर से बी.कॉम की डिग्री हासिल की और मुंबई आ गया।
जन्म | 29 जुलाई 1961 |
जन्मस्थान | खानापुर, बेलगाम, कर्नाटक, भारत |
निधन | 23 अक्टूबर 2017 (उम्र 56 वर्ष), बेंगलुरु, भारत |
आपराधिक आरोप | स्टाम्प पेपर जालसाजी |
सजा | 30 वर्ष का कठोर कारावास |
मुंबई में उसने कई लोगों को नौकरी के लिए खाड़ी देशों में जाते देखा, Abdul Karim Telgi भी खाड़ी देशों में गया और वहा 7 साल तक काम किया। इसके बाद वह 1990 के आसपास भारत लौट आया और यहां फर्जी पासपोर्ट और वीजा बनाकर लोगों को खाड़ी देशों में भेजना शुरू कर दिया। तेलगी इस जालसाजी से खूब पैसा कमा रहा था, लेकिन एक दिन उसका भंडाफोड़ हो गया और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
इसके बाद Abdul Karim Telgi को जेल की सजा सुनाई गई और जेल में तेलगी की मुलाकात रतन सोनी नाम के शख्स से हुई। उसने तेलगी को बताया कि स्टांप पेपर कितना उपयोगी है और इससे कितनी बड़ी धोखाधड़ी की जा सकती है। जेल में Abdul Karim Telgi को एक ऐसा आइडिया मिला, जिससे उस पर पैसों की बारिश होने वाली थी।
जेल से बाहर आते ही अब्दुल करीम तेलगी ने स्टांप पेपर घोटाले की तैयारी शुरू कर दी। तब उसे पता चला कि नासिक रेलवे स्टेशन पर जहां वह फल और सब्जियां बेचता था, वहां नासिक प्रिंटिंग प्रेस है, जहां स्टाम्प पेपर की छपाई की जाती है। तेलगी ने वहां के लोगों से अपनी पहचान बनाई और उसने नीलामी में एक पुरानी मशीन खरीद ली और उसकी मरम्मत कर नकली स्टांप छापना शुरू कर दिया।
अब इन स्टाम्प पेपर्स को पूरे देश में फैलाने की बारी थी। इसके लिए Abdul Karim Telgi ने एमबीए कर चुके करीब 300 लोगों को काम पर रखा, उनका काम जगह-जगह जाकर इन स्टाम्प पेपर्स को बेचना था। ये स्टाम्प पेपर कॉर्पोरेट, तहसील और शेयर बाज़ारों में बेचे जाते थे। इन स्टाम्प को बेचते समय भारी छूट दी जाती थी, जिससे लोग इन्हें तुरंत खरीद लेते थे।
तेलगी ने देश के करीब 70 शहरों में अपना नेटवर्क फैला रखा था। 10 साल में उसने ढेर सारे स्टाम्प छापकर बेचे और करोड़ों-अरबों रुपये की संपत्ति कमाई। उसके पास कितनी दौलत थी इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 90 के दशक में उसने एक डांस बार में एक डांसर पर करीब 93 लाख रुपये लुटाए थे, जिसके बाद वह अचानक सभी की नजरों में आ गया और उसकी चर्चा होने लगी।
साल 2000 में बेंगलुरु पुलिस को एक सूचना मिली कि ट्रकों में नकली स्टांप पेपर कहीं भेजे जा रहे हैं। पुलिस ने जब छापा मारा तो उन्हें ढेर सारे फर्जी स्टांप पेपर मिले। पूछताछ के बाद कई नाम सामने आए जिनमें से एक नाम Abdul Karim Telgi का भी था। जब उन सभी को पकड़ने की कोशिशें शुरू हुईं तो तेलगी फरार हो गया।
इसी बीच एक बार तेलगी अजमेर की दरगाह पर गया था तो पुलिस को उसके बारे में पहले ही जानकारी मिल चुकी थी। वहां पहुंचकर पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया। जब मामले की जांच की गई तो इसकी रकम हर दिन बढ़ती गई। अब्दुल करीम तेलगी पुलिस को इधर-उधर की बातों में घुमाने लगा।
जेल में भी उसे सारी सुविधाएं मिल रही थीं, इसलिए उसने जेल से भी अपना कारोबार जारी रखा। कहा जाता है कि 1992 से 2002 तक करीब 30 हजार करोड़ रुपये का स्टांप घोटाला हुआ था।
इसके बाद अब्दुल करीम तेलगी का नार्को टेस्ट भी किया गया, जिसमें उसने दिल्ली के बड़े नेताओं समेत कई पुलिसकर्मियों और नेताओं के नाम लिए। इसके बाद यह केस एसआईटी (Special Investigation Team) और सीबीआई (CBI) को सौंप दिया गया। हालाँकि, सबूतों के अभाव के कारण किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, केवल तेलगी सहित कुछ लोगों पर कार्रवाई की गई।
इस मामले में 9000 रुपये प्रति माह कमाने वाले एक हेड कांस्टेबल का नाम भी सामने आया, जब उसके यहां छापा मारा गया तो उसके पास 100 करोड़ रुपये की संपत्ति का खुलासा हुआ। एक और पुलिसकर्मी के खिलाफ जांच में उसकी 200 करोड़ रुपये की संपत्ति का पता चला। ऐसा कहा जाता था कि अब्दुल करीम तेलगी लोगों को रिश्वत नहीं देता था बल्कि बड़े-बड़े राजनेताओं और पुलिसकर्मियों को सैलरी पर रखता था।
आज तक यह पता नहीं चल पाया है कि Abdul Karim Telgi की प्रिंटिंग प्रेस कहां थी, जहां ये सभी स्टांप पेपर छपते थे। कोर्ट ने 2007 में इस मामले में सजा सुनाई। तेलगी के कई साथियों को 6-6 साल की सजा सुनाई गई और तेलगी को 30 साल की जेल और 202 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया। कोर्ट के इतिहास में पहली बार किसी पर इतना बड़ा जुर्माना लगाया गया है।
23 अक्टूबर 2017 को, शरीर के कई अंग फेल होने की वजह से अब्दुल करीम तेलगी की जेल में मौत हो गई, जिस पर कई सवाल भी उठे और साजिश के आरोप भी लगे। कहा जाता है कि तेलगी की गिरफ़्तारी के बाद हुई मेडिकल जांच से पता चला कि उसे एड्स और डायबिटीज है, हालाँकि तेलगी के वकीलों ने पुलिस प्रशासन पर तेलगी को एड्स के इंजेक्शन देने का आरोप लगाया था।
इस केस में सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि इतने सालों की जांच के बाद भी अब तक ये पता नहीं चल पाया है कि Abdul Karim Telgi का प्रिंटिंग प्रेस में किससे कनेक्शन था। और ना ही किसी भी बड़े नेता या पुलिस अधिकारी को सज़ा हुई।
देखा जाए तो इस घोटाले को वैध नहीं किया गया, लेकिन इस घोटाले के तहत बेचे गए सभी नकली स्टांप पेपर को वैध कर दिया गया। अब सवाल यह है कि सरकार की ऐसी क्या मजबूरी थी कि नकली स्टांप को वैध घोषित करना पड़ा?
दरअसल, देश में सभी कानूनी कार्यों या समझौतों के लिए स्टांप का इस्तेमाल किया जाता है। 1992 से 2002 तक देश में ज्यादातर स्टांप Abdul Karim Telgi के नकली स्टांप थे। ऐसे स्थिति में अगर इन्हें अवैध घोषित कर दिया जाता तो उस दौरान हुई सारी शादियां, सारे कॉन्ट्रैक्ट, जमीन-जायदाद के सारे समझौते, इंश्योरेंस सब कुछ अवैध हो जाता और बड़ी समस्या खड़ी हो जाती, यही कारण है कि सरकार को इस घोटाले के तहत बेचे गए सारे नकली स्टांप को वैध बनाना पड़ा।
तेलगी की 23 अक्टूबर 2017 को बेंगलुरु के विक्टोरिया अस्पताल में कई अंग फेल होने की वजह से मृत्यु हो गई। कथित तौर पर वह उच्च रक्तचाप और मधुमेह के साथ-साथ मेनिनजाइटिस सहित कई दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित था।
स्टाम्प पेपर घोटाला, जिसे तेलगी घोटाला के नाम से भी जाना जाता है, एक वित्तीय घोटाला था जो 1992 में शुरू हुआ और 2003 में सामने आया। इस घोटाले में एक नकली स्टाम्प पेपर रैकेट शामिल था जो भारत के कई राज्यों में फैला था। ये घोटाला लगभग 30,000 करोड़ रुपये का था।